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संख्या ६]
नारी-अपहरण में हिन्दू-समाज की जिम्मेदारी
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सामने बयान किया है। यह दोहरा अत्याचार यदि लड़कियों के माता-पिता स्वयं उन लड़कियों हुआ ! यही तो हमारा हिन्दू समाज है !! को पञ्जाव में व्याह देते ! लड़की भगानेवालों का
समाज की ऐसी दशा में चरित्र-सम्बन्धी शिक्षा पेशा ही खत्म हो जाता। क्या करेगी? कितनी ही सञ्चरित्र, कितनी ही एक मित्र ने मुझे एक ऐसा मामला बताया है, शिक्षित कोई युवती क्यों न हो, समाज तो फर्जी जहाँ एक मित्र की स्त्री का दूसरे मित्र ने उसकी बातों पर उसका बहिष्कार करने पर कटिबद्ध है, अनुपस्थिति में अपहरण कर लिया। उन दोनों में चाहे वह गुंडों के हवाले ही हो जाय। चरित्र की रक्षा न कोई मुसलमान है, न गुंडा । मुझे एक दूसरा ऐसा की हिम्मत तो ज़रूरी चीज़ है । मगर मैं पूछता हूँ मामला मालूम है, जहाँ एक ऊँचे अफसर की स्त्री को कि वह हिम्मत ऐसे मामलों में जो श्री राधारमण दूसरे ऊँचे अफसर ने भगा लिया और थोड़े ही जी ने स्वयं लिखे हैं या बेंडा में हुए, क्या कर दिनों के बाद निकाल बाहर भी किया। ऐसी दशा में सकती है।
___ यह देखा गया है कि हिन्दू-समाज स्त्री को ही सज़ा ____ गुंडे चाहे हिन्दू हों, चाहे मुसलमान हों, अधिक- देता है और पुरुष साफ़ छूट जाता है और गुलछरें तर हिन्दू-लड़कियों पर ही अपना हाथ माफ करते उड़ाता है। हैं । क्यों ? उन्हें हिन्दू-समाज ही सहायता देता है। ऐसा भी देखा गया है कि बहुत कुछ घर के मुसलमान-समाज उन्हें सहायता नहीं देता, बरन झगड़ों से तंग आकर या सास-ननद के अत्याचारों रोक-थाम करता है । इसी से एक लड़की के अपहरण को न सहकर भी लड़कियाँ भाग खड़ी हुई हैं। में चारों तरफ से हाय-पुकार होने लगती है। जब वह अपने समाज में जब तक सुधार न होगा और जब समाज अपहृत लड़की को वचा लेता है तब उसको तक वह सामाजिक बहिष्कार के शब्दों को भूल न दोपी या कुलटा ठहराकर समाज से निकाल जायगा तब तक यह समस्या हल न होगी । हमें बाहर नहीं करता। वह गुंडों को दण्ड दिलाकर दूसरों पर इल्ज़ाम लगाने के पहले अपने घरों को उसे आदरपूर्वक घर में रखता है और आगे उसका ठीक करना है। अपहरण होने से बचाता है। हिन्दू लड़की का पिता यह न समझा जाय कि मैं राधारमण जी से पहले तो स्वयं ही उसका चोरी जाना छिपाता है, चरित्र-सम्बन्धी शिक्षा देने में सहमत नहीं हूँ। मैं क्योंकि उसे डर रहता है कि समाज उस लड़की का चरित्र-सम्बन्धी शिक्षा उसे समझता हूँ जिससे कोई बहिष्कार करावेगा ही, और अगर वह लड़की मिल व्यक्ति अपनी आत्मरक्षा या अपने सतीत्व की रक्षा गई तो क्या लाभ । यहाँ तो घर से एक दफे जाना कर सके। दूसरे शब्दों में वह शिक्षा जो अपराधी या बहिष्कार के वास्ते काफी है। वह मिली तो उसके भावी अपराधी को दण्ड दे सके। उस शिक्षा की घरवालों की और उसकी दोनों की तबाही, न न केवल स्त्रियों को जरूरत है, बरन हिन्दू पुरुषों को मिली तो कुछ हालतों में उसकी तबाही बच जाती भी। वह शिक्षा न किताबी है, न स्कूलों में ही मिल है। इस खयाल से शायद समझदार लड़कियाँ खुद सकती है। वह तो मा-बाप के उत्साहित करते रहने ही छिप रहती हो। कहते हैं, पञ्जाब में अक्सर ये में बच्चे को शुरू से ही मिल सकती है। जब अपनी भगाई हुई लड़कियाँ व्याही जाती हैं । सच-झूठ की आत्म-रक्षा का भार हम अपने ऊपर उठा लेंगे तब खबर नहीं। पञ्जाब में लड़कियाँ कम हैं, बङ्गाल में दूसरा आसानी से हमारे घरों पर आक्रमण नहीं और संयुक्त प्रांत में बहुत हैं। क्या अच्छा होता कर सकता।
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