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सरस्वती
[ भाग ३६
पा चुके हैं। वास्तव में ऐसा मालूम होता है कि इन दूसरा उदाहरण उससे भी ज्यादा आश्चर्यजनक गुंडों की मंडलियाँ हैं, जिनमें हिन्दू, मुसलमान, पुरुष, है ! वह भी सुनिए। एक हिन्दू उच्च कोटि के स्त्री, सभी सम्मिलित हैं। अगर मैं यह कहूँ कि परिवार में दो भाई थे। बड़े विवाहित थे और दोनों हिन्द-समाज स्वयं ही अपनी स्त्रियों का अपहरण भाइयों में काफी मेल व प्रेम था। अचानक बडे • कराता है तो शायद अनुचित न होगा । शर्मा भाई का देहान्त हो गया और घर में उनकी विधवा
जी ने स्वयं ही ऐसा एक उदाहरण अपने लेख में और छोटा भाई रह गये। भावज को वह काफ़ी दिया है, जिससे भेरी राय का समर्थन होता आदर भाव से रखता था, जो उसके लिए उचित भी है। मगर मैं खाली उसी पर दार-मदार नहीं था। मगर समाज को कहाँ चैन ? लोगों में काना फूसी करता । अगर सेवा समिति से कोई दरियाप्त होने लगी। वह भिन्न भिन्न वर्ग के दो व्यक्तियों को करे तो वह सैकड़ों उदाहरण इसके सुबूत में दे एक घर में रहते देख उनका सम्बन्ध पवित्र समझ सकती है। यहाँ मैं केवल दो उदाहरण दूंगा जो ही नहीं सकता था। काना फूसी इस दर्जे तक बढ़ी कि मुझे सेवा समिति के सेक्रेटरी श्री भारतीय जी ने भाई का विवाह होना असम्भव हो गया और उसे बताये हैं।
भावज के त्यागने पर मजबूर होना पड़ा। पर किस ___ एक १७-१८ वर्ष की लड़की जो नवविवाहिता मुँह से यह सब भावज से कहता ? उसे तीर्थ कराने थी, किसी कारण से गर्भवती हो गई । पति ने उस घर से ले चला और नैनी के स्टेशन पर जो इलाहा. गर्भ का अपने द्वारा होना स्वीकार न कर उसे घर बाद से ४ या ५ मोल पर है, उसे छोड़कर गायव हो से निकाल दिया । बिरादरी को तो मौका मिलने की गया। वह युवती इतनी बेवका न थी जितनी उसे देर थी। हमारा हिन्दू-समाज किसी सुधार में यक़ीन समाज ने समझा.था और वास्तव में बहुधा हिन्दू-स्त्रियाँ नहीं करता। बस, वह नवयौवना बहिष्कार करने होती भी हैं। वह इलाहाबाद शायद आई-गई हो योग्य हो गई, चाहे जो भी उसका परिणाम हो । उसके या कुछ अनुभव उसे प्रयाग-सेवा-समिति का था। पिता से कहा गया कि यदि वह उसे आश्रय देगा उसने इलाहाबाद-स्टेशन पर उतरकर सेवा समिति तो वह भी समाज से निकाल दिया जायगा । वह वालों को जो वहाँ तैनात रहते हैं, बुलाकर सारा इस धमकी से इतना डरा कि प्रयागराज लाकर उसे कच्चा चिट्ठा कह सुनाया। वे बेचारे उसे उसके त्याग दिया । सेवा-समितिवालों ने उसे बहुत घर ले गये और कुछ रुपया-पैसा उसे दिलसमझाया, किन्तु वह कब माननेवाला था। धारों वाकर उसके रहने-सहने का उचित प्रबन्ध कर रोता था, परन्तु लड़की को तो त्यागना ही था सो आये। त्याग गया। सेवा-समिति ने उसे आश्रय दिया, मगर और एक ताजा उदाहरण लीजिए। जबलपुर न मालूम वैसी कितनी लड़कियाँ निराश्रिता रह जाती के जिले में बेंडा नाम का एक ग्राम है। जुलाईहोंगी। समाज की हालत तो देखिए ! जो कोई उस महीने की बात है, वहाँ कुछ गोरे सैनिकों लड़की को आश्रय दे वह भी बहिष्कार के योग्य। ने धावा बोल दिया। एक आदमी जान से मारा
और यह है हमारा हिन्दू-समाज जो रात-दिन गया और कितनी ही स्त्रियाँ दिन-दोपहर बेइज्जत की अहिंसा की दोहाई देता रहता है। किसी कीड़े को गई। गाँववाले कुछ छिपकर, कुछ घायल होकर खुले जान से मारो तो वह हिंसा है, मगर अपने बाल- मैदान में अपनो स्त्रियों तथा मा-बहनों पर बलात्कार बच्चों को भूखा मारने पर मजबूर किये जाओ। यह होता देखते रहे। वाद को वे सब स्त्रियाँ जाति कैसी अहिंसा है ? वाह !
से अलग कर दी गई। ऐसा उन्होंने जज साहब के
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