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संख्या ६]
जवाहरलाल नेहरू और हिन्दू-संस्कृति
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रियों की फ़िक्र में रहती है। पं० जवाहरलाल को हिन्दू हिन्दुत्व को छोड़ दें। कांग्रेस ने खिलाफ़त के हिन्दू-महासभा के बारे में थोड़ी-सी ग़लत-फहमी है। मजहबी आंदोलन को अपने अंदर घुसेड़कर इस्लामी हिन्दू-महासभा को इस बात की परवा नहीं है कि जोश भड़काया। परन्तु इसके परिणाम स्वरूप जब कोई हिन्दू नौकरी करे या न करे। जिस बात का मलाबार से शुरू होकर देश भर में हिन्दू-मुस्लिम दंगे विरोध हिन्दू-महासभा करती है वह केवल इतनी ही हुए और प्रायः हर जगह हिन्दू क़त्ल किये गये तथा है कि भारत-सरकार एक संप्रदाय या समुदाय की लूटे गये तब कांग्रेस ने हिन्दुओं के लिए सहानुभूति रिआयत करके और उसे ऊँचा उठाकर दूसरे सम्प्र- का एक शब्द भी मुँह से न निकाला। कांग्रेस ने दाय को नीचा दिखाती है और दोनों में पारस्परिक अपनी इस थियरी से कि हिन्दू-मुस्लिम एकता के बगैर घृणा एवं ईर्ष्या उत्पन्न करती है जैसा कि उसने स्वराज्य नहीं मिल सकता, मुसलमानों के दिमाग़ को सांप्रदायिक निर्णय के द्वारा किया है। हर एक आसमान पर चढ़ा दिया है। कांग्रेस के नेताओं का न्याय-प्रिय मनुष्य इस बात को पसन्द करेगा कि हाल यही रहा है कि मुसलमानों को खुश रखने के सरकारी मुलाज़मते योग्यता की मीयाद पर हर एक लिए हिन्दू अधिकारों का बलिदान करते जायें । भारतीय के लिए खुली हों। इसमें न नौकरियों की कांग्रेस की तरफ़ से जितने एकता-सम्मेलन हुए हैं उन इच्छा है, न नौकरियों की माँगः बल्कि हिन्दू- मबमें इसी बात का यत्न किया गया है कि मुसलमानों महासभा के सामने यह सिद्धांत का प्रश्न है। की दिन-प्रति-दिन बढ़ती हुई माँगों को मंज़र कर
अब रही यह बात कि कांग्रेस किस तरह से अपनी लिया जाय ताकि किसी तरह हिन्दू-मुस्लिम-एकता जातीयता को मिटाकर स्वराज्य प्राप्त करना चाहती हो जाय और गवर्नमेंट के साथ लड़ाई में कांग्रेस है। मुझे यह बताना है कि मैं इस परिणाम पर कैसे जीत जाय। कोरे चेक पेश करने की नीति के अंतपहुँचता हैं। मझे इसका सबत या प्रमाण देने के लिए तल में यही नीति काम करती है। सांप्रदायिक यह आवश्यक नहीं मालम देता कि इसके समर्थन में निर्णय जैसे प्रजासत्ता-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी मैं कांग्रेस का कोई प्रस्ताव उद्धृत करूँ। मेरा निष्कर्ष फतवे पर मौन धारण करने का कारण इसी में पाया कांग्रेस के संचालकों की नीति और उनके जीवन भर जाता है। के आचरण पर आश्रित है । हिन्दु कांग्रेसी नेता हिन्दू- कांग्रेस ने खिलाफ़त के मजहबी आंदोलन-द्वारा नाम को कायम रखना नहीं चाहते। वे कहते हैं कि इस्लामी जोश भड़काया; हिन्दू-मुस्लिम एकता पर हम न हिन्दू हैं, न मुसलमान । जो हिन्दू अपने असाधारण एवं अनावश्यक ज़ोर देकर मुसलमानों
आपको हिन्दू कहने से शरमाते हैं वे हिन्दू-संस्कृति के दिमाग को आसमान पर चढ़ाया; एकता-सम्मेके प्रेमी कैसे हो सकते हैं ? कांग्रेसी नेता दिन-रात, लनों के द्वारा तथा कोरे चेक दे-देकर हिन्दू-हितों हर घड़ी, हमें यह बताते हैं कि सांप्रदायिकता देश को कुर्वान किया; सांप्रदायिक निर्णय-जैसे को विनष्ट कर रही है। इसका मतलब क्या है ? प्रजासत्ता एवं राष्ट्र-विरोधी फतवे पर मौन धारण क्या वे यह नहीं जानते कि उनकी इस बात को किया-ये घटनायें एवं तथ्य ऐसे हैं जिनसे एक सुननेवाले केवल हिन्दू ही हैं ? मुसलमान न उनकी अंधा आदमी भी साफ़ नतीजा निकाल सकता है बात सुनते हैं, न मुसलमानों पर इसका कोई असर कि अगर कांग्रेस की नीति इसी प्रकार चलती रही होता है । मुसलमानों को कट्टर संप्रदायवादी तो हिन्दू दिन-प्रति-दिन कमजोर होते और मिटते बनते देखकर हिन्दुओं से यह कहना कि सांप्रदा- चले जायँगे। और, दूसरी तरफ़ न सिर्फ संप्रदाययिकता ज़हर है, सिर्फ यही मानी रखता है कि वादी मुसलमानों की बल्कि वर्तमान गवर्नमेंट
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