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सरस्वती
[भाग ३६
• ही कदम पर तामजाम से उतरे जहाँ से १६ उमरा की बैठक प्रारम्भ होती है। उनके उतरते ही सब उमरा खड़े होगये । श्रीमान् महाराना साहब के आगे आगे चोपदार दो सुन्दर शाही शमादान लिये हुए चल रहे थे। उनके पीछे पंचोली घरानेवाले चँवर डोलाते चल रहे थे। महाराना साहब के आते
ही उमराने झुककर अभि[खास प्रोडी, जहाँ से जंगली सूअरों को रोज़ कई मन मक्की खाने को डाली
वादन किया। महाराना जाती है । यह वहाँ का एक अपूर्व दृश्य है]
साहब के गद्दी पर विराजने प्राचीन पद्धति के अनुसार ये दरबार में बैठाये जाते हैं। पर सब अपने अपने स्थान पर बैठ गये। दरबार बड़ा जिनको जिस वर्ष पधारने का हुक्म होता है वे उसी वर्ष भव्य मालूम होता था । महाराना साहब की गद्दी के पीछे ।
आते हैं । शाहपुरा, बेगूं , बनेड़ा, बेदला, कानौड़, बदनोर, दो एक-से कद के जवान डाढ़ीवाले एक-सी दरबारी वर्दी बीजोलिया, सादड़ी, देलवाड़ा, गोगुंदा, भींडर, बान्सी, पहने बड़े बड़े चँवर डोला रहे थे । गद्दी के पीछे मुसद्दी, कोठारियाँ, पारसोली, सलूम्बर, भैंसरोड़गढ़, कुराबड़, देवगढ़, करेड़ा, आमेट, मेजा, सरदारगढ़ आदि औवल दर्जे के सरदार माने जाते हैं। ये सब सरदार अपनी अपनी पोशाकों में सुसजित वीरता-पूर्वक तलवारें धारण किये हुए बहुत ही शोभायमान प्रतीत होते थे।
तत्पश्चात् श्रीमान् महाराना साहब तामजाम में बैठकर ठीक उतने
[झील के तटवर्ती राजमहल, उदयपुर]
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