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. लेखक, श्री भाई परमानन्द जी, एम० ए०,
एम० एल० ए०
हमें एक-दूसरे के विचारों पर चाहे वे कितने ही कला आदि सम्मिलित हैं)। परंतु इसके साथ-साथ परस्पर-विरोधी हों, बड़ी गंभीरता से ध्यान देना हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हर जातीयता के चाहिए ताकि हम किसी मही नतीजे पर पहुंच सकें। बनने के लिए इन सभी तत्त्वों का होना ज़रूरी नहीं
पं. जवाहरलाल का पहला प्रश्न यह है"स्वराज्य में स्व (सेल्फ) क्या है ? (और अगर
कांग्रेस ने खिलाफ़त के मजहबी अांदोलनइसका संबंध 'हिन्दू' शब्द से है तो) भाई जी की
द्वारा इस्लामी जोश भड़कायाः हिन्दू मुस्लिमराय में हिंदूत्व क्या है ?"
एकता पर असाधारण एवं अनावश्यक ज़ोर वास्तव में यह एक मौलिक प्रश्न है। इससे पूर्व
देकर मुसलमानों के दिमाग़ को सिर पर कि इस बात का जवाब दिया जाय कि हमारा
चढ़ाया; एकता-सम्मेलनों के द्वारा तथा कोरे 'सेल्फ' क्या है और हमारा हिन्दुत्व क्या है, मैं यह
चेक दे-दे कर हिन्दू-हितों को कुर्बान किया; . बताना आवश्यक समझता हूँ कि वर्तमान जातीयता
सांप्रदायिक निर्णय जैसे प्रजासत्ता एवं राष्ट्र(नेश्नेलिटी) का विचार यारप में करीब दो सौ वर्ष
विरोधी फ़तवे पर मौन धारण किया-ये पूर्व से पैदा हुआ है और विभिन्न अवस्थायें या
घटनाएँ एवं तथ्य ऐसे हैं जिनसे एक अंधा मंज़िलें तय करता हुआ वतमान रूप में हमारे सामने
अादमी भी साफ़ नतीजा निकाल सकता है आया। जान स्टुअट मिल तथा अन्य विद्वानों ने
कि अगर कांग्रेस की नीति इसी प्रकार चलती जातीयता की परिभाषा करते हुए बतलाया है कि
रही तो हिन्दू दिन-प्रतिदिन कमज़ोर होते वह कई बातों के मिलने से बनती है। उदाहरणार्थ
और मिटते चले जायेंगे। खून या नस्ल का एक होना, देश का एक होना, भाषा का एक होना, मजहब और गवर्नमेंट का एक
दू परमाला होना, और, इन सबसे बढ़कर, संस्कृति का एक होना (संस्कृति में इतिहास, परंपरायें, त्योहार, दर्शन,
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