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संख्या ५]
भारत में औद्योगिक उन्नति का प्रश्न
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कार्य करती हैं, जैसे सूत कातने तथा कपड़ा बुनने के कार• धंधों को नष्ट न कर दे। अस्तु, अप्रत्यक्ष रूप से जनता खाने; दूसरी मौसमी फ़ैक्टरियाँ जो वर्ष में केवल कुछ वस्तुओं का अधिक मूल्य देकर पूँजीपतियों की थैली ही महीने कार्य करती हैं । उदाहरण के लिए शक्कर के भरती है। प्रारम्भ में प्रत्येक धंधों को संरक्षण की आवकारखाने तथा कपास के पेंच । ऊपर लिखे आँकड़ों में श्यकता पड़ती है, किन्तु एक बार संरक्षण मिल जाने पर दोनों प्रकार की फैक्टरियों में काम करनेवाले मजदूरों की बहुधा वह स्थायी हो जाता है। क्योंकि जब संरक्षण संख्या दे दी गई है। भारतवर्ष की सब खानों में लगभग हटाये जाने का प्रश्न अाता है तभी पूँजीपति यह कहकर १,७०,००० मज़दूर कार्य करते हैं। फैक्टरियों और कि ऐसा करने से यह जातीय धंधा नष्ट हो जायगा, उसका खानों के अतिरिक्त चाय. कहवा तथा रबर के बागों में विरोध करते हैं। लगभग दस लाख पचास हज़ार मज़दूर कार्य करते हैं। यहाँ बड़े बड़े कारखानों के विषय में कुछ विचार
ऊपर लिखे हुए आँकड़ों से स्पष्ट ज्ञात होता है कि कर लेना आवश्यक है। मैं यहाँ इन कारखानों की लगभग ८५ वर्षों की औद्योगिक उन्नति के उपरान्त हमारे गंदगी, स्वास्थ्य को हानि पहुँचने की बात, मज़दूरों से देश के सब प्रकार के कारखाने, खाने और प्लांटेशनस (बाग़) एक यन्त्र के समान काम कराने की बात, औद्योगिक केन्द्रों केवल २६ लाख मज़दूरों को काम दे सके हैं । दूसरे शब्दों में नरक के समान गंदे तथा स्वास्थ्य और चरित्र को नाश में यह कहना चाहिए कि देश की समस्त जन-संख्या की एक करनेवाले स्थानों पर श्रमजीवियों के रहने तथा दुर्व्यसनों प्रतिशत जनसंख्या भी इनमें काम नहीं पा सकी । भविष्य में पड़ने आदि के विषय में कुछ नहीं कहूँगा । ये तो प्रत्यक्ष में चाय और कहवे के बाग़ों और खानों के बढ़ने की कोई हैं और इन कारखानों में कार्य करने का अवश्यम्भावी सम्भावना नहीं है। हाँ, फ़ैक्टरियों की संख्या अवश्य परिणाम हैं। हम पाठकों का ध्यान उस समस्या की ओर बढ़ाई जा सकती है। कोई भी बुद्धिमान् मनुष्य ऊपर के याकर्षित करना चाहते हैं जो आधुनिक औद्योगिक
आँकड़ों को देखकर यह कहने का दावा नहीं कर सकता उन्नति के कारण उपस्थित होती है। वह है एकाधिकार कि फैक्टरियाँ कभी देश की समस्त जन-संख्या की और ट्रस्ट की समस्या। पाँच प्रतिशत जनसंख्या को भी काम दे सकेंगी। वास्तव बात यह है कि यन्त्रों और शक्ति का उपयोग पूरी तरह में भारत की आर्थिक समस्या बड़े बड़े कारखानों के . तभी हो सकता है जब बड़ी मात्रा में उत्पादन-कार्य किया खोलने से हल नहीं हो सकती। हमें तो बेकारों को काम जाय । यही कारण है कि फैक्टरियाँ हाथ से काम करनेवाले देना है और वह फ़ैक्टरियाँ नहीं दे सकतीं।
कारीगरों की अपेक्षा सस्ते दामों पर माल तैयार कर सकती ___बड़े बड़े कारखानों और फैक्टरियों से कुछ पूँजीपति हैं । यही नहीं, बड़ी फैक्टरियाँ छोटी फैक्टरियों की अपेक्षा तो धनवान् हो सकते हैं, किन्तु निर्धन जनता को काई सस्ते दामों पर माल तैयार कर सकती हैं। फल यह होता विशेष लाभ नहीं होगा । यही नहीं कि फैक्टरियाँ हमारी है कि औद्योगिक उन्नत देशों में बड़े-बड़े कारखाने माल बेकार जन-संख्या को काम नहीं दे सकेंगी, बरन हमें उनके को सस्ते दामों पर बेचना प्रारम्भ करते हैं और उनकी द्वारा तैयार किये हुए माल का मूल्य भी अधिक देना प्रतिद्वन्द्विता में छोटे कारखाने बन्द हो जाते हैं । . पड़ता है। देश की औद्योगिक उन्नति के लिए संरक्षण जब देश में थोड़े-से बहुत बड़े कारखाने बच जाते की नाति स्वीकार की गई है। हमारे व्यवसायी और हैं तब वे भीमकाय कारखाने एक संघ बना लेते हैं और पूँजीपति विदेशी माल पर आयात-कर लगाने के लिए उस वस्तु पर अपना एकाधिकार स्थापित कर लेते हैं । घोर आन्दोलन करते हैं । उनके पास पत्र और नेटफार्म हैं, देश में एक ही कारखाना उस वस्तु को तैयार करता है। साथ ही राष्ट्रीय भावना भी उनके पक्ष में है। संरक्षण अस्तु, वे जो मूल्य भी चाहें ग्राहकों से वसूल कर सकते इसलिए दिया जाता है कि विदेशी माल देश के नये हैं। यही नहीं, इनके द्वारा कतिपय पूँजीपतियों के हाथ
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