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सम्पादकीय नौट
योरप की परिस्थिति
__बढ़ाने को प्रवृत्त हुआ है तब यह अवस्था फ्रांस के भय का नाटली ने अबीसीनिया पर अाखिर कारण तो होगी ही और ग्रेट ब्रिटेन भी उसकी उपेक्षा ANS चढ़ाई कर ही दी। उसने नहीं कर सकता । और सा भी उस दशा में जब जर्मनी पहा ब्रिटेन के, साथ ही राष्ट्र-संघ लुथिबानिया के अन्तर्भुक्त अपने मेमल को लोभ-भरी
के विरोध की कुछ भी परवा दृष्टि से देख रहा है । यही देखकर इटली ने अबीसीनिया पर नहीं की। इससे यह एक आक्रमण किया है और यही देखकर फ्रांस ने तथा ब्रिटेन ने बार फिर प्रकट हो गया कि भी उसे ऐसा अन्यायमूलक कार्य करने दिया है। क्योंकि
युद्ध रोकने में राष्ट्र-संघ कहाँ भावी संघर्ष में फ्रांस और ब्रिटेन दोनों को इटली की तक अक्षम है और उसके साथ ही केलाग-पैक्ट श्रादि सहायता की आवश्यकता पड़ेगी और कम से कम फ्रांस अन्तर्राष्ट्रीय समझौते भी निरर्थक हैं। साथ ही यह भी कि उसे सुदूरस्थ अबीसी निया के कारण हाथ से जाने देना राष्ट्र-संघ ने योरप को जिस संगठन में रखने का प्रयत्न उचित नहीं समझता। यह सच है कि जर्मनी इस समय किया था वह कारगर नहीं सिद्ध हुआ। यही नहीं, उसके केवल अपने राष्ट्र का संगठन करना चाहता है, वह युद्ध स्थान में कतिपय राष्ट्रों का अपना अलग संगठित होना के लिए न तो उत्सुक है, न उसके लिए तैयार ही है । परन्तु शुरू हो गया है जो योरप के लिए किसी दिन घातक सिद्ध उसकी निगाह रूस पर ज़रूर है, क्योंकि हिटलर रूस के होगा। कदाचित् इसी भय से ब्रिटेन भी इटली और वर्गवादियों का घोर शत्रु है। और यद्यपि रूस उसकी अबीसीनिया के मामले से बच निकलने का भाव व्यक्त कर मंशा जानता है और उसके भय से उसने फ्रांस, इटली रहा है। यदि ऐसा न होता तो सर सेमुअल होर ने जेनेवा प्रादि से अपने सिद्धान्तों को ढीला कर के समझौता भी कर में जो गर्जन-तर्जन उस दिन किया था तथा ब्रिटेन ने लिया है, तथापि इससे अवस्था में सुधार नहीं हुआ है। भूमध्यसागर में अपने नौबल का जो प्रदर्शन किया था इधर इटली ने अबीसीनिया के ऊपर आक्रमण कर उसे वह सब अाज युद्ध छिड़ जाने पर इतना निस्सार कदापि और भी जटिल बना दिया है। न सिद्ध होता । वास्तव में ग्रेट ब्रिटेन और फ्रांस तथा इनके ऐसी दशा में यदि ब्रिटेन राष्ट्र-संघ के कानूनी दाँवसाथ राष्ट्र-संघ भी यह नहीं चाहते कि योरप में युद्ध छिड़े। पेंचों का अाश्रय लेकर उन्हीं के द्वारा इटली का विरोध
और उधर जर्मनी अपनी ऐसी गति-विधि प्रकट कर रहा करना चाहता है तो यह उसके लिए स्वाभाविक है । जापान है कि फ्रांस के लिए वह हौया हो रहा है। जर्मनी ने ने जब राष्ट्र संघ की उपेक्षा करके मंचूरिया पर आक्रमण पोलैंड से समझौता कर लिया है, उसका हंगरी से भी किया था उस समय भी ब्रिटेन ने इसी तरह के कानूनी हेल-मेल बढ़ रहा है और अब उसने अास्ट्रिया तथा दाँव-पेंच दिखाये थे। तब जो लोग यह समझते हैं कि बेल्जियम की ओर भी अपना मैत्री का हाथ बढ़ाया है। इटली और अबीसीनिया के युद्ध में ब्रिटेन भी शामिल होगा इस प्रकार मध्य-योरप में इन राष्ट्रों का एक संघ-सा बन वे भूलते हैं । योरप का राजनैतिक वायुमण्डल इस समय रहा है। ग्रेट ब्रिटेन की सद्भावना के फल-स्वरूप जर्मनी ऐसे किसी युद्ध के उपयुक्त नहीं है। ने वर्सेलीज़ के सन्धि-पत्र के विरुद्ध अपना सैनिक बल बढ़ा ही लिया है और अब वह जब इस तरह राजनैतिक बल
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