________________
सख्या ५]
जेमी
४०१
स्या करेगा। मैं कहता हूँ जो कोई इसे देखता है यही खयाल आने लगे। डाक्टर साहब क्या कहेंगे-'अच्छे चाहता है कि बस इसे अपने पास ही रख लूँ ।" हो, पहले दिन ही सैर को ले गये थे। वे शायद चुप भी हो
भौजाई की तरफ़ पीछे मुँह करके मैं बोला-"लेकिन जायँगे । मानेगी नहीं डाक्टरनी साहबा। उन्हें इतनी हिम्मत सबसे बड़ी मुसीबत तो यह है कि बड़ी भौजाई इसका बहुत तो होगी नहीं कि मुझे ऊँचा-नीचा कहें, पर बातें बनाने से प्यार करती हैं। डाक्टरनी साहबा को जब यह मालूम न रहेंगी । मेरी पीठ पर तो भर-पेट सुनावेंगी, कहेंगीहोगा कि मैंने कुत्ता गुम कर दिया है तो मुझे कभी न अपनी लापरवाही से इतने मजबूर ही थे तो उसे घर छोड़ेंगी। बस, हर वक्त इसी का किस्सा लिये बैठी रहेंगी। पर ही छोड़ जाते। अच्छी सैर करवाई ! एक दिन में डाक्टर साहब तो खैर चुप रहेंगे, लेकिन डाक्टरनी साहबा ही खो आये। इसके पीछे तो सुकेसर में सब-डिवीज़न के मेरे कानों के गिर्द हो जायँगी। आप जनाब तो वहाँ दो अफ़सर की मेम पड़ी हुई थी। कई बार कहलवाया, लेकिन घंटे ठहरेंगी, पीछे मेरी जान बवाल में पड़ जायगी।" न दिया। खुद साहब ने एक बार मुँह चढ़ कर किसी के
कुछ देर में हम पुणछ-हाउस के सामने जा पहुँचे। द्वारा कहलवा भेजा । लेकिन फिर भी न दिया । देते कैसे ? मैं बड़े ध्यान से सामने की तरफ़ देख रहा था। कुछ दूर जिस जानवर को दूध देकर पाला-पोसा और इतना बड़ा एक कुत्ता नज़र आया । वहीं ताँगा खड़ा करवा दिया। किया वह क्या दूसरों के सुपुर्द किया जा सकता है ? लेकिन जब पास पहुंचे तब एक मरियल-सा कुत्ता पाया। अब पता नहीं किसके हाथ चढ़ा है। कहीं किसी निर्दय इसको देखकर खयाल आया कि म्युनिसिपल कमेटीवाले के हाथ लग गया तो वह उसे मार ही देगा। उसे यह कहीं हलवे में ज़हर की गोलियाँ न दे रहे हों।
डर भी तो रहेगा कि अगर कुछ दिन के बाद यह पकड़ा बड़ा अफ़सोस हुअा। सिर्फ इसलिए नहीं कि जेमी गया तो वह चोर ठहराया जायगा।...... न मिला बल्कि इसलिए भी कि ताँगे को बार-बार खड़ा “पता नहीं बेचारा मर गया है या ज़िन्दा । अगर करना पड़ा। ताँगेवाला इस तरह तंग ही नहीं होता है ज़िन्दा है तो उसे सारा दिन बाँधे रखते हैं या कभी खोलते बरन उसका समय भी नष्ट होता है। अब फ़ैसला किया भी हैं ? किड और पाल तो उसको सारा दिन खिलाते थे; कि सोच-समझ कर खड़ा करूँगा। चौबुर्जी का पुल और अब नये घर में कोई उससे बात भी करता है कि नहीं। युनिवर्सिटी-ग्राउंड भी गुज़र गये। शुरू हो गई पुरानी यहाँ तो मैं उसे बाकायदा तीन बार दूध-रोटी अपने हाथों अनारकली। चौक में ट्रेफ़िक पुलिस का सिपाही खड़ा से देती। जब तक वह खा न लेता तब तक मुझे चैन था। शायद इसने देखा हो, ताँगा खड़ा करके पूछा- न पड़ता। अब क्या मालूम उसे कोई पूछता भी है "जमादार साहब, आपने कोई नस्वाकी कुत्ता तो नहीं या नहीं। ..... देखा ?"
___ “एक दिक्कत और भी है। यहाँ हमने उसे शुरू से ___पंजाब-पुलिस से श्रादमी जो चाहे उम्मीद करे, लेकिन दूध पर रक्खा था । अब क्या मालूम, वे उसे क्या गंदपता नहीं इस सिपाही को क्या खयाल आया । शा पद मुझे बला खिला देंगे। लोग डाक्टर साहब का मखौल उड़ाया इसने बहुत शरीफ़ समझा। कहने लगा- “नहीं साहब, करते थे कि आप खुद तो कालेज-पार्टी के मेम्बर हैं, लेकिन मैंने किसी कुत्ते की तरफ ध्यान नहीं दिया। आप जानते आपका जेमी धास-पार्टी का मेम्बर है। अब बेचारे को, हैं, मैं ऐसा कर भी नहीं सकता; ये ताँगे और छकड़ेवाले पता नहीं, वे मांस भी खिला दें। है तो बड़ा पक्का। मेरे ही मेरे लिए काफ़ी होते हैं।"
हाथों से उसने दूध पिया। लेकिन क्या मालूम; दूसरे के सिपाही को धन्यवाद दिया। ताँगा फिर चलने हाथों की कौन कह सकता है। फिर जानवर ठहरा । अच्छेलगा। ज्यों-ज्यों हम शहर के ज़्यादा नज़दीक होते जा रहे भले इन्सान के मुँह में कई बार पानी आ जाता है। वह थे. त्यों-त्यों मेरे दिल में डर बढ़ रहा था। कई तरह के बेचारा तो हैवान ठहरा।......
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com