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संख्या ५]
मेरी श्री बदरीनाथ जी की यात्रा
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किनी का जल हरा है और वह पिंडर से छोटी नदी है। इस नदी का वेग रुक गया और पानी पीछे को लौट नन्दप्रयाग में कोई डाक-बँगला न होते हुए भी ठहरने की पड़ा । सारे गाँव व पुल जो इस नदी के किनारे थे, तकलीफ़ नहीं हुई । ठाकुर रामसिंह जी का नया कमरा बह गये । २ या ३ दिन बाद इस नये पहाड़ की मिट्टी बह मेरे लिए पंडित अनुसूयाप्रसाद जी, चेयरमैन डिस्ट्रिक्ट- निकली और पानी का रास्ता मिला। उससे सब नदियों बोर्ड, की कृपा से खाली हो गया। नन्दप्रयाग के नज़दीक में बाढ़ आ गई । अब उस झील का फ़ाज़िल पानी मुझे पहले-पहल एक बरगद का छोटा वृक्ष देखने में बराबर बहा करता है जो 'बिरही नदी' के नाम से पुकारा अाया। आम के पेड़ तो यहाँ बहुत हैं, पर नीम का पेड़ जाता है। यहाँ नाम को भी नहीं है। उसकी शकल का एक पेड़ चमोली में नायब तहसीलदार से यह मालूम हुअा 'वितर्ण मिला। पीपल की कमी नहीं है। नन्दप्रयाग कि वहाँ नज़दीक एक सोने की खदान है। सरकारी तौर में कुछ शहरियत है। यहाँ से श्री बदरीनाथ का सम्बन्ध से पहले उसमें काम लगा था। आमदनी से ज़्यादा खर्च बहुत रहता है।
होने की वजह से वह काम बन्द कर दिया गया। उन्होंने बहुत दिनों के बाद आज लीडर व हिन्दुस्तान टाइम्स यह भी बतलाया कि शिमली के ऊपर पिंडरगंगा की बालू अखबार देखने को मिले । पर वे दोनों २ जून के थे। से लोग सोना अब भी निकाला करते हैं और कुछ न क्वेटा की बरबादी पढ़कर सहसा आँसू आ गये । कई घंटे कुछ रोज़ पा ही जाते हैं । इसी से यहाँ यह कहावत मशहूर इन्हीं दोनों अखबारों के पढ़ने में लग गये।
है कि गढ़वाल में कुबेर का खजाना है। ७-६-३५ को चमोली पहुँच गया । इसको लोग पैदल चलने में कुछ थकावट तो ज़रूर आई, परन्तु लालसाँगा भी कहते हैं । डाँडी और कुलियों को जवाब तबीअत अच्छी रही। पीपलकोटी का बाज़ार बड़ा है। दे दिया। बँगला ऊँचे पर था। जो गर्मी की शिकायत यहाँ भोट देश की चीजें मिल जाती हैं। इस मार्ग में बाज़ार में ठहरनेवालों की थी वह मुझको नहीं थी। अभी तक इतना बड़ा बाज़ार मुझे नहीं मिला था। नन्दयह तहसील का मुक़ाम है और हाकिम परगना का प्रयाग से यह अच्छा है। वहाँ तिब्बत की चीजें जैसे इजलास भी यहाँ है । इसलिए यहाँ ७ या ८ वकील भी चमर, बकरी व हिरन की खाले, कस्तूरी इत्यादि बिकती हैं और तलाश करने से कुछ सब्ज़ी भी मिल जाती है। थीं। शिलाजीत, ब्राह्मी, जाहरमोहरा आदि भी बिक रहे यहाँ अस्पताल, डाकघर और पुलिस की चौकी भी है। थे। हमारे दफ्तर के एक बाबू बनवारीलाल मिले । चित्त चमोली से तीन कुली मेरा असबाब लेकर चले और मैं प्रसन्न हुआ। पैदल चला। ११ बजे दिन के करीब मैं पीपलकोटी के ६-६-३५ को सुबह ५१ बजे चलकर ४ मील पर बँगले पर पहुंचा और कुली १२ बजे पहुँचे। रास्ते में गरुड़गंगा पहुँचा। यह 'तीर्थ' माना जाता है। यहाँ बिरहीगंगा नाम की एक नदी मिली। यह नदी गोहना स्नान किया। रास्ते में दूध पिया और करीब ६ बजे दिन झील (डुमरी ताल) से निकली है। कहा जाता है कि यह में पातालगंगा पहुँच गया। गुलाबकोटी पर १०३ बजे नदी दूर से आई थी। गोहने में एक पहाड़ गिर गया पहुँच गया। रास्ते में एक पहाड़ टूट गया था। उसके
और उसका रास्ता बंद हो गया और एक बड़ी भारी भील ऊपर मामली रास्ता बना दिया गया था। उस पर चलते बन गई । कुछ समय बाद (सं० १८६४-६५ में) इस पहाड़ हुए कुछ डर मालूम होता था। यहाँ ।-) सेर आटा व का ऊपरी भाग टूटकर झील में गिर पड़ा, रुका हुआ मामूली चावल मिलता है और 3॥ बोतल मिट्टी का तेल पानी उछल पड़ा और इतने ज़ोर से बहा कि रास्ते में मिलता है। जगह रमणीक नहीं है । कहीं घूमने जाने की जितनी नदियाँ पड़ी उनमें बहिया अा गया । अभाग्यवश जगह नहीं है। एक पहाड़ आगे चलकर अलकनन्दा में गिर पड़ा। अब १०-६-३५ को सुबह ५ बजे चला। रास्ते में बहुत
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