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जहाँ ये जाते हैं, वहाँ के स्थानीय क्षेत्र, अनाथालय, विद्यालय, देवालय तथा बालक-बालिकाओं को दान देते रहते हैं । इस प्रकार के दान में इनका पुष्कल धन व्यय हो जाता है।
धार्मिक विश्वास - सनातन धर्मावलम्बी हैं, किन्तु लकीर के फ़क़ीर नहीं हैं। इनके धार्मिक विचार बड़े समुन्नत और गहन हैं । 'विधवा विवाह', 'अछूतोद्वार' और 'शुद्धि' के समर्थक हैं और दीर्घकाल से इन कृत्यों से इनकी सहानुभूति रही है । लगभग बीस वर्ष हुए, मेरठ में इन्होंने हरिजनों के लिए स्कूल खुलवाये थे। विद्या प्रचार, ब्रह्मचर्य्यसाधन, कला-कौशल आदि उद्योग-धन्धे और पंचायतप्रथा के पोषक, एवं बाल- बुद्ध - विवाह, कन्या-पुत्र-क्रय
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हाँ प्रेम किया है प्रेम किया है मैंने वरदान समझ अभिशाप लिया है मैंने । अपनी ममता को स्वयं डुबाकर उसमें । जित मदिरा को देवि पिया हैं मैंने ॥
सरस्वती
मैं दीवाना तो भूल चुका अपने को । मैं ढूँढ़ रहा हूँ उस खोये सपने को ।। छाया को छाया बन कर मैंने देखा । खिंच गई हृदय पर वहीं कसक की रेखा । मैं मिटा मिटा कर स्वयं मिटा जाता हूँ । पर अमिट बन गया वह विधिना का लेखा ||
अभिशापित प्रेमी
लेखक, श्रीयुत भगवतीचरन वर्मा
देकर मैं अपनी चाह आह लाया हूँ प्राणों की बाज़ी हाय हार आया हूँ ।। हैं कसक रहीं अब उर में बीती बातें । घिर आती हैं पीड़ा बन खोई रातें । मेरे जीवन में धुँधला-सा सूनापन | है उमड़ पड़ा बन आँसू की बरसातें ॥
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विक्रय, व्यर्थ ग्राडम्बर आदि सामाजिक रूढ़ियों में बहिष्कारक हैं।
संतति - ईश्वर की कृपा से इनके तीन पुत्र और कई पुत्रियाँ हैं । सबसे ज्येष्ठ पुत्र श्री चन्द्रशेखर जी उच्च शिक्षा प्राप्त हैं । ये धन-जन - शिक्षा आदि सभी सांसारिक वैभवों से युक्त हैं ।
[ भाग ३६
इतने महान् पद पर होते हुए भी ये बड़े सरल प्रकृति, अभिमान रहित तथा दयालु हैं । साधारण से साधारण पुरुष भी इनसे मिलकर अत्यन्त प्रसन्न और हर्षित हो जाता है। परमात्मा इनकी दिन-प्रतिदिन उन्नति और वृद्धि करे, जिससे देश और समाज का अधिकाधिक श्रेय और कल्याण हो ।
दिन जलता है, रजनी आहें भरती है । मुझसे मेरी लघुता खेला करती है ।
वे दिन बीते जब मैं भी अभिमानी । भ्रूपातों में उठता था आँधी पानी । अब तो मेरा धन स्मृतियों का बन्धन है । प्रत्येक साँस है मेरी करुण कहानी ||
समर्थ बन गया लो सहसा अधिकारी । देनेवाला बन गया नितान्त भिखारी ||
लेकर मस्तक पर अपनी हीन पराजय । मैं करता हूँ असफलताओं का संचय । तुम एक बार तो मुझे देखकर हँस लो । तब था पाने का अब खोने का अभिनय ॥
मिटने ही को तो मैं बन 'लुटा रहा हूँ जो कुछ
मैं
कर आया हूँ । मैं लाया हूँ ॥
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