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संख्या ५]
माननीय सर सीताराम
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हैंड राईटर नियत किया गया। इनका कास्टिंग वोट, व्यक्तिविशेष को अवसर नहीं मिला। वास्तव में इनकी इनकी रूलिंग और इनका निर्णय सदैव निष्पक्ष और नीति-निपुणता श्लाघनीय है। न्यायानुकूल होता है। अपनी ऐसी ही विशेषताओं के विदेश-यात्रा–सन् १९३१ में ये योरप गये। इटली, कारण ये अलीगढ़ और मेरठ से तीसरी बार निर्विरोध यू• स्विटज़लेंड, फ्रांस, इंग्लेंड, आयलैंड, स्काटलैंड, बेल. पी० कौंसिल के सदस्य चुने गये और १० जनवरी सन् जियम, जर्मनी, चेकोस्लोवेकिया, हंगरी आदि देशों का १६२७ को कौंसिल-अधिवेशन में सर्वसम्मति से पुनः भ्रमण किया। ये इस यात्रा में अपने धर्म (नित्य-कर्मादि) अध्यक्ष पद पर आसीन किये गये। ..
में दृढ़ रहे, और इनकी समस्त वेश-भूषा भारतीय रही; देशी ___ जेलों की परिस्थिति सुधारने के विषय में ये प्रायः अचकन, पाजामा, और किश्तीनुमा टोपी के अतिरिक्त जेलों की दशा का अध्ययन करते रहे हैं। बरेली, बदायँ कोट-पतलून कभी नहीं पहना, भोजन सदैव की भाँति तथा मेरठ श्रादि के जेलों का निरीक्षण करने के पश्चात् निरामिष रहा । स्थान स्थान पर इनका विशेष रूप से जो रिमार्क दिये हैं वे बड़े प्रशस्त और अधिकारियों के आतिथ्य और स्वागत हुआ। इंग्लैंड में प्रधान मन्त्री से प्रति पर्याप्त चेतावनी देनेवाले प्रमाणित हुए हैं। लेकर सभी श्रेणी के अनेक सजनों से इनकी भेंट हुई ।
सन् १९२३ में श्रीयुत चिन्तामणि के पद-त्याग करने छः मास इस पर्यटन में लगे और लगभग बारह सहस्र पर तथा सन १६२८ में भी इनको शिक्षा विभाग का रुपया व्यय हुश्रा । इस यात्रा से लौटने पर मेरठ-कालेज मिनिस्टर (मंत्री) बनाने के लिए गवर्नमेंट ने चेष्टा की थी, में छात्रों को उपदेश देते हुए इन्होंने अपनी यात्रा का परन्तु दोनों अवसरों पर इस पद को ग्रहण करने से इन्होंने विस्तृत वृत्तांत और उसके अनुभवों का वर्णन किया था । अनिच्छा ही प्रकट की। यदि उस समय ये यह पद स्वीकार योरप में एक स्थान 'कार्ल्सबाद' है। वहाँ इनका मित्रकर लेते तो अब गृह-सदस्य (होम मेम्बर) का अधिकार मंडली-सहित फ़ोटो लिया गया था। साथ में इनके बड़े इनको ही प्राप्त होता।
पुत्र चिरंजीव चन्द्रशेखर जी हैं। यह चित्र अन्यत्र दिया सन् १६३० में बरेली शहर से चौथी बार अविरोध गया है। इनका चुनाव हुआ, और अध्यक्ष पद के लिए केवल ३ तीर्थ-पर्यटन-सन् १६३४ में इन्होंने श्री बदरीनाथ वाट विपक्ष में और १०७ पक्ष में आये। इस प्रकार बह- जी तथा केदारनाथ जी के दर्शनार्थ यात्रा की। मार्ग में मत से ये.अध्यक्ष पद पर फिर सुशोभित हुए, और आज अनेक स्थानों पर इनका स्वागत हुआ, विशेषकर 'गढ़पर्यन्त राजा और प्रजा का समान रूप से हित-साधन वाल' में तो आतिथ्य-सत्कार की अपूर्व धूम-धाम रही, करते हुए अपने अधिकृत कार्य को बड़ी सुचारुता और और इनके साथ बड़ी सुजनता का व्यवहार हुआ। सुन्दरता से सम्पादन कर रहे हैं।
साथ डाँडी-यान के होते हुए भी इन्होंने २५० मील से ____ इस तृतीय बार के अध्यक्ष-पद पर आरूढ़ होने के अधिक पैदल यात्रा की । इससे पूर्व ये काशी, अयोध्या, उपलक्ष्य में सरकारी और गैर-सरकारी समस्त सदस्य हरिद्वार, ऋषिकेश, मथुरा, वृन्दावन, गोकुल, गोवर्धन, महानुभावों ने इनको एक प्रीति-भोज (पार्टी) दिया और प्रयाग, चित्रकूट और श्री जगन्नाथपुरी की यात्रा कर चुके हैं। इनके कौंसिल-कार्य से संतोष और प्रसन्नता प्रकट करते सन् १९३५ के मई मास में इन्होंने 'पिंडारी लेशियर हुए इनको एक बहुमूल्य घड़ी पुरस्कार-स्वरूप भेंट की। को यात्रार्थ प्रस्थान किया। रानीखेत, सोमेश्वर, श्रीनगर
कौंसिल में इनके स्वाभिमान, प्रतिष्ठा और योग्यता के आदि जितने भी स्थान मार्ग में पड़े, सभी में इनका साथ अपना कर्तव्य-पालन करते हुए लगभग दस वर्ष स्वागत-सत्कार होता गया। इसी प्रकार लौटते समय भी बीत गये हैं । इनकी सुजनता और सहृदयता आदि शुभ कटारमल नायक स्कूल आदि संस्थाओं ने इनको मानपत्र गुणों से इनके प्रति आक्षेप और विरोध करने का किसी दिये।
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