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मेरी श्री बदरीनाथजी की यात्रा
लेखक, श्रीयुत रायबहादुर पण्डित राजनारायण मिश्र पी० सी० एस०
श्री बदरी धाम की यात्रा एक प्राचीन धार्मिक यात्रा है। यह यात्रा पाण्डवों के समय से अधिक प्रसिद्ध हुई है। वास्तव में हिन्दुओं के जीवन में यह एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। श्रीमान् मिश्र जी ने इस लेख में उसका ब्योरेवार वर्णन बड़े सुन्दर ढङ्ग से किया है।
सन् १६०१ में मैंने बी० ए० की परीक्षा
में पहुँचकर नाथ जी के धर्मशाला में दी थी। उस समय परीक्षा प्रयाग
ठहरा। उस समय वहाँ केवल एक ही में ही होती थी। मेरे बड़े भाई पण्डित
धर्मशाला और एक ही दूकान थी। श्रीनारायण जी ने अपने मित्र पण्डित
ऋषीकेश से एक रोज़ लक्ष्मणझूला परमेश्वर जी शुक्ल के यहाँ मेरे ठहरने का
गया। गंगा-स्नान करके जब झूला पर प्रबंध किया था। पर अभाग्यवश शुक्ल जी
पहुँचा तब बड़ा डर मालूम हुआ। झूला किसी मामले में फँस गये थे और मुझे
बहुत ऊँचा था और हिलता भी था। मैं इलाहाबाद-स्टेशन पर नहीं मिल सके ।
तो किसी तरह उसको पार कर गया, पर मैं अपरिचित जगह में अपने साथियों की
हमारे चचा अवधनारायण जी बगैर एक तलाश कर कटरे में ठहर गया । रोटी अच्छी तरह बनानी अादमी के सहारे उसके पार न जा सके। उस पार जाकर नहीं आती थी और कट्टरपन भी नहीं छोड़ना चाहता था। मैंने श्री बदरी विशाल की एक मूर्ति के दर्शन किये और कच्ची-पक्की जैसी रसोई तैयार करता था, खा लेता था। दर्शन करते समय यह प्रण किया कि यदि मैं बी० ए० पास परन्तु उसका असर तो होना ही था। मेरा पेट खराब हो हो जाऊँगा तो श्री बदरीनाथ जी के दर्शन ज़रूर करूँगा। गया और मुझे बुखार आ गया। दर्शन-शास्त्र का पर्चा १६०२ से अब तक बराबर दर्शन करने की इच्छा मैंने घोर ज्वर में किया । मुझे यह भी न मालूम हुआ करता रहा, परन्तु कतिपय कारणों से मेरी इच्छा नहीं कि मैंने क्या लिखा है। इस कारण मुझे बड़ी चिन्ता पूरी हुई। इस साल भी कुछ ऐसे काम या पड़े थे कि रहती थी। मैं किसी परीक्षा में कभी फेल नहीं हुआ था, यात्रा के होने की सम्भावना न थी, इसलिए चलने में देर इसलिए और भी फ़िक्र थी कि कहीं फेल न हो जाऊँ। हो गई। चिन्ता के कारण घर पर नहीं बैठ सकता था। भाई साहब मैं यात्रा-लाइन को अर्थात् हरिद्वार से केदारनाथ जी ने हरद्वार जाने का प्रबन्ध कर दिया। स्वर्गीय चचा होते हुए बदरीनाथ जी नहीं गया। मैं नैनीताल से चला। अवधनारायण जी भी मेरे साथ चले। हरद्वार में कई यहाँ से रानीखेत पहुँचा। रानीखेत से चमोली जाने के दो रोज़ रहकर कनखल, चंडीदेवी, भीमगोडा श्रादि स्थानों रास्ते थे-एक द्वाराहाट होकर कर्ण-प्रयाग को गया था, में देवताओं के दर्शन किये। फिर पैदल ऋषीकेश को दूसरा गरुड़ होकर नन्द-प्रयाग को।। चल दिया। राह में सत्यनारायण जी का मन्दिर पड़ा। गरुड़ तक मोटर होने के कारण दूसरे रास्ते से जाने वहाँ दर्शन करने में बड़ा आनन्द आया। मूर्ति बड़ी में २५ मील पैदल कम चलना पड़ता था। लेकिन गरुड़ सुन्दर और चित्त को आकर्षित करनेवाली थी। ऋषीकेश से ग्वालदम तक तो कुछ सीधा रास्ता था। आगे बहुत
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