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संख्या ५
जेमी
३९९
"नहीं ग़प नहीं, 'बाई-प्रार्डक्ट'।"
स्तानी औरतें भी क्या चीज़ हैं। वक्त की इन्हें कोई कद्र "अच्छा, मिठाई कहाँ है ?"
ही नहीं। ये तो बस एक ही बात जानती हैं कि इसे किस "दीवान साहब, वह आपके लिए नहीं है।" तरह ज़ाया किया जाय। मैं गुस्सा से आग-बबूला होकर "तब क्या कुत्ते-बिल्लियों के लिए है ?"
बरामदे में बैठा था कि अन्दर से आवाज़ आई “भई, ___“नहीं नहीं," मैंने हँसकर कहा -"वह उनके लिए ज़रा तकलीफ़ करके ताँगा तो ले अाओ।" है जो सोहाग-भाग का व्रत रख रही हैं। यह उन्हीं को . मैंने शुक्र किया। दरवाजे के पास गया तब उसे खुला मिलेगी। ठीक है न!"
पाया । फिर अन्दर लौटा । देखा, जेमी नदारद । आवाजें "अच्छा तो जनाब हम इसे नहीं खाते। (दो मिनट दी, मुँह से सीटियाँ बजाई। लेकिन अगर वह वहाँ हो एक कर) अाज मेरा एक काम तो करना।"
तो जवाब दे। दिल में कहा-'यह एक और मुसीबत "क्या ? कहिए।"
आई।' इस खयाल से कि कहीं वह क्वार्टर के पीछे या “करना ज़रूर है।"
इधर-उधर न हो, मैं पिछली तरफ़ गया। बहुत तलाश "लेकिन आप कहिए तो सही।"
की, आवाजें भी खूब दी और सीटियाँ भी बजाई, लेकिन "अपनी भौजाई को अाज अपने साथ लेते जाओ। उसका पता कुछ न चला। मुझसे ये कई बार कह चुकी हैं कि जब से डाक्टर साहब एक और खयाल आया-कहीं शहर की दूसरी तरफ़
आये हैं, उनके बच्चों वगैरह को नहीं देखा। मैं खुद भी उलटा नये कोट को न चला गया हो। उधर हो लिया । जाना चाहता हूँ, लेकिन मुश्किल यह है कि शाम को चलो, वहाँ से कोई ताँगा भी लेते श्रायेंगे। मील भर दफ्तर से उठता हूँ तब देर हो जाती है। और सुबह ले फ़ासला तय किया, पर वहाँ कोई ताँगा न खड़ा था, न जाना तो मुमकिन ही नहीं। इसलिए अगर जनाब को कहीं जेमी ही नज़र आया। इधर-उधर जाट-ज़मींदारों और कोई तकलीफ़ न हो तो इन लोगों को भी धकेल ले दूकानदारों से दर्याप्त किया, परन्तु कुछ न पता चला । जाओ।"
एक जगह गाँव के लड़के गुल्ली-डंडा खेल रहे थे। भाई साहब ने अपना केस इतनी अच्छी तरह और लड़के प्रायः ऐसी बातों का ध्यान रखते हैं, यह सोच कर ऐसे अन्दाज़ में पेश किया कि मेरे लिए न कहने की गुंजा- मैंने एक लड़के को पास बुलाया, पूछा- "क्या तुमने इश ही न थी। हाँ के सिवा दूसरा कोई रास्ता ही नस्वाकी रंग का कोई कुत्ता देखा है ?" न था। मैंने धीरे से कह दिया- "बहुत अच्छा। लेकिन वह अभी जवाब न दे पाया था कि बाकी लड़के एक अर्ज़ है।"
भी मेरे गिर्द जमा हो गये। उनमें से एक ने जो मेरे "फरमाइए जनाब।"
नज़दीक खड़ा था, मेरा सवाल सुन लिया था। उसने "मुझे वापस जाकर थोड़ा काम करना है, इसलिए कहा-"मैंने एक कुत्ते को देखा है। सफ़ेद है न १ थूथन नौ बजे तक लौटना चाहता हूँ।"
पर काला दाग़ है न ?......" "भई, खाना बन रहा है। बस, खाने के बाद तुम "नहीं नहीं," मैंने उसकी बात काटते हुए कहाइन्हें घसीट कर ले जानो।”
"उसका रंग सफ़ेद नहीं है, नस्वाकी है, भूरा ।" । इधर भौजाई रसोई से बोली-"हाँ हाँ, मंज़र है।" एक और लड़के ने जो कुछ बहुत अधिक चंचल
खाना खाते साढ़े नौ बज गये। भाई साहब तो मालूम देता था, आँखें और सिर कई बार दायें से बायें साइकिल पर बैठकर दफ़्तर चले गये। पीछे मैं रह हिलाने के बाद कहा-“नत्थू के खच्चर का-सा रंग है। गया। जल्दी करने के लिए जितना ज्यादा कहता, उतनी उसे मैंने यहाँ तो नहीं देखा । हाँ, कुछ देर हुई चुंगी-घर ही ज्यादा देर होती। गुस्सा आ गया कि देखो ये हिन्दु- के पास देखा था। ा तो इधर ही रहा था। धोती
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