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सख्या ५]
जेमी
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नौकर ने साँकल खोली। उसने प्रणाम किया। मैंने तब उन्होंने मुड़कर देखा कि बलंदी तो सचमुच ही कुप्पी पूछा-'कहो जी बलंदीराम, क्या हाल है ?" लेकर दरवाज़े में तेल डाल रहा है। ___मेरे सवाल का जवाब वह अभी न दे पाया था कि "खसम नें खाणियाँ* !” कहकर वे उस तरफ़ उधर से बरामदे में खड़ी भौजाई आँगन में आ गई। दौड़ी। छोकरे के मुँह पर उन्होंने दो थप्पड़ जमाये । वह मुझे देखकर वे बलंदी को गालियाँ देने लगीं-"अरे बेचारा कुछ तो पहले ही घबराया हुश्रा था, अब थप्पड़ अंधे, कुछ बताया भी तो कर कि कौन आया है। गधे, लगे तब उसके हाथ से कुप्पी छूट गई । पटाक-से वह नीचे पहले तुझको दरवाज़े पर तेल चुत्राना था। फिर इन्हें जा गिरी। तेल का फव्वारा छूटा। बहुत-से छींटे भौजाई दाखिल होने देता। अब झटपट वहाँ जा। बैठक के के कपड़ों पर गिरे, और तेल तमाम फर्श पर फैल गया। दरवाज़े पर ही तेल चुत्रा दे यदि ये अन्दर जायँ ।" दीवार से टँगी तसवीरें खराब हो गई। खुद दीवार पर
ये बातें भौजाई ने इतनी गंभीरता से कही थीं कि मैं कई चटाख पड़ गये। हैरान हो गया। आश्चर्य हुआ कि वे तेल क्यों चुभाना मैंने यह दृश्य देखा तब हँसी आ गई । दौड़कर पास चाहती हैं । अक्सर ब्याह-शादियों में तेल चुाया जाता पहुँचा। बलंदी को पकड़कर एक तरफ़ हटा दिया (डर है, यह सुन रक्खा था। लेकिन यहाँ तो अपने राम था कि कहीं उसे और भी प्रसाद न मिल जाय)। पूछाक्वारे हैं । इसी हैरानी में मैंने प्रणाम किया। अब भौजाई "क्यों जी, इसने लसूर ही क्या किया है ? तेल ही तो ने हँसकर जवाब दिया-“भई, प्रणाम का जवाब पीछे चुनाया है न ? यही इससे कहा गया था।" दूंगी, पहले ज़रा तेल डलवा लो।"
"हाँ, यही कहा गया था ! भई, तुम भी अजीय "तेल डलवा लो ! कहाँ डलवाऊँ ?"
आदमी हो। देख रहे हो कि कालीन पर तेल का दरिया “जहाँ तुम्हारी मर्जी हो।"
बहा दिया है और मना नहीं करते । वाह-वाह !" अब समझा कि भौजाई मखौल कर रही हैं। कहने "अरे भई, मैं कैसे मना करूँ ? जब घर की मालभी लगीं-“भई, क्या किया जाय । हमारे यहाँ तो तुम किन नौकर को एक बात का हुक्म दे तब भला मैं उसे बरसों के बाद आये हो, इसलिए तेल ही चुआना ठहरा।" कैसे रोकूँ ?" इतना कहने के बाद मुझे हँसी आ गई। इसके बाद वे खिलखिला कर हँसने लगीं।
इससे भौजाई को थोड़ा गुस्सा आ गया। उहोंने इधर हम इस प्रकार बातें कर रहे थे, उधर बलंदी गुस्से को हँसी में लपेट कर कहा- "बस, अब हँसते ही जो आम तौर पर समझदारी की बातें किया करता है, जाओगे या थमोगे भी ?" रसोईघर से तेल की कुप्पी लेकर बैठक की तरफ़ गया। इस समय बाहर से अश्विन पा गया। मुझे देखकर दरवाज़े की एक तरफ़ उसने तेल गिराना शुरू किया। वह दौड़ा और आते ही टाँगों से लिपट गया। मैंने मैंने जब देखा कि यह कमबख्त सचमुच ही तेल चुश्रा पूछा-"क्यों जी, श्राज' 'काँगे' पर चलोगे ?" रहा है तब ज़ोर से चिल्लाया-"अरे, यह क्या कर उसने अपनी मा की तरफ़ देखा कि वह किसी दूसरे रहा है ?"
काम में लगी है इसलिए सिर को नीचे-ऊपर हिलाते हुए ऐसा मालूम होता है कि मेरी ऊँची आवाज़ के कारण बोला -"चलूँगा।" वह घबरा-सा गया। पहले कुप्पी का मुँह थोड़ा-सा औंधा "तो पहनो कपड़े। तुम्हारे बूट कहाँ है ?" हुआ था । अब जब आवाज़ पड़ी तब वह उलट ही गई। मैंने यह कहा तो वह मेरी टाँगें छोड़कर मा के पास बैठक में काश्मीरी कालीन बिछा हुआ था। दरवाज़े की चला गया। बोला- “भाभी जी, बूट पहनायो। चौखट से हटकर तेल कालीन पर जा पड़ा। पहले उस चाचा जी.........." तरफ़ भौजाई की पीठ थी। लेकिन जब मैंने आवाज़ दी * पंजाबी गाली-मालिक को खानेवाला।
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