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संख्या ५]
इंग्लैंड में विद्यार्थियों के छुट्टी के खेल और विनोद
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East Deim. 24
कठिनाई नहीं है। जैसा लगभग सभी गाँवों में होता है, यहाँ भी एक बहुत पुराना गिर्जा है। सभी मकान पक्के हैं, लेकिन कुछ घरों की छतें फूस की बनी हुई हैं। प्रत्येक मकान के सामने एक छोटा-सा बगीचा या केवल कुछ फूलों के पेड़ लगे हुए
हैं । कुल गाँव बहुत [ ईस्ट डीन के गाँव का एक दृश्य]
साफ़ और सुन्दर है।
यहाँ के ग़रीब से सकती। और लन्दन में तो अब इतने हिन्दुस्तानी ग़रीब गाँववाले भी भारत के ग्रामीणों की अपेक्षा रेस्टोरेन्ट हो गये हैं कि किसी भी प्रकार का भोजन बहुत अमीर हैं। सबके पास कोट, पतलून, टोप मिल सकता है । पूड़ी, तरकारी, रोटी, दाल इत्यादि और अन्य आवश्यक वस्तुएँ होती हैं। खाने के सब चीजें मिलती हैं। अँगरेज़ी घरों में भी रोटी, लिए भी अच्छा भोजन प्राप्त होता है। यदि किसी दाल, चावल, फल, आलू और कुछ तरकारी के पास केवल रोटी और मक्खन ही खाने को रह आसानी से प्राप्त हो सकती है। इसलिए जो लोग जाय, तो वह अपने को मरा हुआ ही समझता है। मांस नहीं खाना चाहते उनको इंग्लैंड में आने से यहाँ के गाँवों में ग्रामोफोन के सिवा कुछ रेडियो के डरने की कोई आवश्यकता नहीं है।
सेट भी रहते हैं । इस गाँव में एक सुन्दर गेस्ट हाउस शाम को सब लोग गाँव की ओर चल पड़े। है, जहाँ बेतार के तार का समुचित प्रबन्ध है। टेनिस ईस्ट डीन नामक यह छोटा-सा गाँव था । कुल खेलने के लिए भी अच्छा इन्तिज़ाम है। इसी स्थान एक अच्छी दूकान थी जिसमें सब प्रकार की चीजें पर हम लोगों ने शाम को खाना खाया। मिलती हैं। चाकलेट, शक्कर की रंगबिरंगी मिठाई यहाँ के लोग ऊपर से तो सब चीजों को बड़ी
और सिगरेटों के बिना तो यहाँ के लोगों का काम सफ़ाई से रखते हैं-साफ कपड़े, साफ़ घर और ही नहीं चल सकता । जो चीजें दूकान में नहीं होतीं सुन्दर बगीचा, सब जगह दिखलाई देते हैं, लेकिन वे शहर से मँगवा दी जाती हैं। इसी दूकान में एक शरीर की सफ़ाई में ये लोग बहुत पीछे हैं। शहर में तरफ़ डाकघर और टेलीफोन भी था। गाँव में नल- गर्मी के दिनों में भी जब पसीना आ जाता है, लोग द्वारा पानी का इन्तिजाम था, लेकिन बिजली की आम तौर पर हफ्ते में एक ही बार नहाते हैं। गाँवों रोशनी नथी। लोग गैस से ही काम निकालते हैं। गाँव में तो शायद और भी कम नहाते होंगे। इनके के पास से पक्की सड़क शहर की ओर जाती है, नहाने का प्रबन्ध भी अच्छा नहीं है। टब को एक जिस पर बराबर मोटर-बसें आती-जाती रहती हैं। बार पानी से भर के उसी में साबुन लगाकर देह इसलिए गाँववालों को सवारी की किसी प्रकार की धोते हैं। मुँह, पैर इत्यादि सब उसी साबुन से मिले
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