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सरस्वती
[भाग ३६
साधारण बात नहीं है। बैंकों के असफल हो जाने के की उन्नति के लिए आवश्यक है कि देश का व्यापार मी क्या कारण थे, इसकी विवेचना करने की यहाँ पूर्णतया हमारे अधिकार में आ जाय । कोई अावश्यकता नहीं, किन्तु यह बता देना ज़रूरी है (६) चेक तथा अन्य साख के पत्रों की कमीकि लोगों का मिश्रित पूँजीवाली संस्थानों से पूरा परिचित आज भी हमारे महाजन और साहूकार जो देश के अन्दन होना ही बैंकों के असफल होने का एक मुख्य रूनी व्यापार को काफी मात्रा में आर्थिक सहायता पहुँकारण था।
चाते हैं, नकद रुपया बरतना ही अधिक पसंद करते हैं। (३) सरकार की उदासीनता-भारत की सरकार देश में सुसंगठित 'बिल मारकेट' का होना बैंकिंग की तथा सरकारी कर्मचारियों की नीति हमारे बैंकिंग की उन्नति के लिए परम आवश्यक है। और इसका अभाव उन्नति की सदा विरोधिनी रही है। वह हमेशा ऐसी संस्थानों बैंकिंग के प्रचार में एक बड़ी भारी बाधा है। तथा उनके संचालकों के प्रति शंका की दृष्टि से ही देखती (७) देश की निर्धनता-कुछ लोगों का कहना रही है। नवीन रिज़र्व बैंक इस कटु नीति का एक जीता- है कि भारतवर्ष की निर्धनता ही बैंकिंग की अधोगति का जागता प्रमाणं है।
एक कारण है। परन्तु श्री मनु सूबेदार का कहना है कि (४) विदेशी बैंकों की प्रतिद्वन्द्विता तथा विरोध- अभी देश में इतना रुपया अवश्य है कि यदि अन्य हमारे बैंकिंग संगठन में इनका बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। सुविधायें प्राप्त हों तो कम से कम एक दर्जन बैंक तो इनका हित ज्वायंट स्टॉक बैंकों की उन्नति को हर प्रकार स्थापित किये जा सकते हैं। इस वास्ते निकट भविष्य में से रोकने में ही रहा है। इस वास्ते जब तक इनका कार्य- देश की निर्धनता का बैंकिंग के प्रचार में बाधक होने का क्षेत्र किसी प्रकार से सीमित नहीं किया जायगा, ये ज्वायंट कोई भय नहीं। स्टॉक बैंकों का सदा विरोध करते रहेंगे और अपनी उचित कुछ आवश्यक बातें-हमारे देश में ज्वायंट स्टॉक तथा अनुचित प्रतिद्वन्द्विता से उनके मार्ग में एक बड़ा बैंकिंग की उन्नति के लिए किन किन बातों की आवश्यभारी रोड़ा अटकाते रहेंगे।
कता है, इसका विचार करने के पहले कुछ ऐसे प्रश्नों (५) हमारे व्यापार में विदेशियों का हाथ-किसी पर प्रकाश डालना उचित होगा जिनका बैंकिंग की देश के बैंकिंग की उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि वहाँ उन्नति से यथेष्ट सम्बन्ध है। का व्यापार देशवासियों के हाथ में हो। किन्तु भारतवर्ष में (१) पूँजी-कुछ लोगों का विश्वास है कि ज्वायंट जहाँ व्यापारिक क्षेत्र में विदेशियों का ही बोलबाला है, स्टॉक बैंकों की उन्नति के लिए यह निश्चय कर लेना यह केवल स्वाभाविक है कि विदेशी बैंकों की ही देश आवश्यक है कि कोई बैंक कम से कम एक निश्चित पूँजी के बैंकों की अपेक्षा अधिक उन्नति हो। ज्यों ज्यों विदेशी के बिना स्थापित न किया जायगा। क्योंकि अक्सर देखने कम्पनियों के प्रतिनिधि धीरे धीरे गाँव में फैलते जा रहे हैं में आया है, जैसा कि ट्रावनकोर तथा बङ्गाल में, बहुत और हमारे किसानों से व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करते से बैंक बहुत ही थोड़ी पूँजी से काम शुरू करते हैं जा रहे हैं, त्यों त्यों हमारे देशी बैंकरों के हाथ से अन्दरूनी और यह बैंकिंग के संगठन के लिए हानिकारक है। इस व्यापार को आर्थिक सहायता पहुँचाने का कार्य भी निक- विषय में किसी परिणाम पर पहुँचने के पहले स्वतन्त्रतालता जा रहा है। इसके विपरीत जिन भारतीयों के हाथ पूर्वक विचार हो जाना आवश्यक है । इस प्रश्न की जाँच में देश का थोड़ा-बहुत व्यापार है, विदेशी इन्श्योरेन्स के लिए दो-तीन योग्य सदस्यों की कमिटी यदि नियुक्त तथा शिपिंग कम्पनियों के दबाव से जिनसे सम्बन्ध रखना कर दी जाय तो बहुत उचित होगा। श्रावश्यक है वे अपनी आर्थिक माँग को पूरा करने के (२) साइज़-दूसरा प्रश्न जिस पर निष्पक्ष रूप से वास्ते विदेशी बैंकों के पास ही जाते हैं । इस वास्ते बैंकिंग विचार होना आवश्यक है, बैंकों की साइज़ का है। क्या
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