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संख्या ४]
भाष्य तथा व्याख्या को देखकर अपना कुतूहल दूर करना चाहिए |
(५) वर्ण - विचार - पृष्ठ संख्या ४६ और मूल्य = ) है |
यह पुस्तक 'हिन्दू' नामक पत्र में 'तत्त्वदर्शी' नामक पत्र पर किये गये श्राक्षेपों का पुस्तकाकार उत्तर है। इसके लेखक वर्णों की उत्पत्ति जन्म से नहीं, प्रत्युत कर्म से मानते हैं । यही सिद्ध करने के लिए यह पुस्तक लिखी गई है । लेखक ने जिस व्यंग्यपूर्ण कटुभाषा में 'हिन्दू' की कटूक्तियों का उत्तर दिया है वह साधुजनोचित नहीं है । समालोचना तथा विचार की शैली का गौरव कटुभाषा अथवा व्यंग्य शैली नहीं है । 'हिन्दू' ने गान्धी को ‘गोघातक' लिखा था, अतएव ब्रह्मचारी जी ने हिन्दू - पुस्तकों के आधार पर गोहत्या की प्रथा को सनातन सिद्ध करके उस विशेषण को निन्दा का कारण ही नहीं रहने दिया । खण्डन के जोम में जिस वस्तु को वे स्वयं 'निकम्मी' कहते हैं उसी पर पृष्ठ के पृष्ठ काले किये गये हैं । हम इस “तू तू मैं मैं” के वाग युद्ध को जनता के समय तथा सदाचार दोनों का विघातक समझते हैं । जो लोग वर्णव्यवस्था को गुणकर्मानुसार मानते हैं वे इस पुस्तक से शायद कुछ लाभ उठा सकें । ८-६ - बिहार - प्रकाशन-भवन, आरा द्वारा प्रकाशित, बाल-ग्रंथमाला की दो पुस्तकें
(१) मिठाई का दोना - बालकों की शिक्षाप्रद कहानियों और कविताओं का एक सुन्दर संग्रह है । इसके पढ़ने से बालकों का मनोविनोद भली भाँति हो सकता है । पुस्तक की भाषा समय की रुचि के अनुसार सरल और सुबोध है । इसको पढ़कर बालकों को अपने चरित्र - सम्बन्धी सहज में उत्पन्न होनेवाली बुराइयों का ज्ञान हो सकता और वे उससे बिना प्रयास बच सकते हैं । इस दृष्टि से पुस्तक की रचना बालोपयोगी है।
नई पुस्तकें
(२) भैया की कहानी - इसमें बुकर टी० वाशिंगन के जीवन-चरित का वर्णन कहानी के ढंग पर
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किया गया है। बालकों को इसके पढ़ने से अपनी उन्न की लगन पैदा हो सकती है और वे अपने को परिश्रमी तथा आदर्श बालक बना सकते हैं। अधिक से अधिक कठिनाई पड़ने पर भी उनको अपनी धुनि में लगे रहने का सदुपदेश इससे मिलता है । किन्तु विदेशी कथानक होने से उनको इस पुस्तक की वर्णित सभी बातों का ज्ञान नहीं हो सकता क्योंकि उनके लिए हब्शी गुलामों की तकलीफ़ों का जानना कठिन है । पर यह अवश्य है कि वे वर्तमान शिक्षा की कमी, और पढ़े-लिखे लोगों की बेकारी का कारण सुगमता से समझ सकते हैं । उपर्युक्त दोनों पुस्तकें श्री त्रिवेणीप्रसाद बी० ए० की लिखी हैं। प्रत्येक का मूल्य ।) है। छपी भी सुन्दर हैं ।
१० - वीर - विभूति - ( संस्कृत काव्य-ग्रन्थ ) — लेखक मुनि श्री न्यायविजयजी, न्यायतीर्थ, न्यायविशारद, प्रकाशक, श्रीजैन युवक संघ, बड़ौदा हैं।
इस पुस्तक में भगवान् महावीर के जीवनचरित की संक्षिप्त रूप-रेखा ५७ श्लोकों में अङ्कित की गई है । वैदर्भी रीति में लिखे गये ये सरस सुन्दर पद्य जहाँ एक ओर भगवान् महावीर की जीवन घटनात्रों पर प्रकाश डालते हैं, वहाँ दूसरी ओर उनसे मिलनेवाली शिक्षाओं को भी हृदयंगम कराते हैं । काव्य की भाषा सरल तथा प्रसादगुण-युक्त है । संस्कृतप्रेमी सभी नवयुवकों तथा विशेषतथा जैनियों को इस पुस्तक का संग्रह करना चाहिए । संस्कृतश्लोकों का सुन्दर अँगरेज़ी अनुवाद उनके सामने ही दाहने पृष्ठ पर छापा गया है । अनुवाद कर्त्ता हैं राजरत्न, डा० बी० भट्टाचार्य, एम० ए०, पी० एच० डी० डायरेक्टर, ओरियेन्टल इन्स्टिट्यूट, बड़ौदा । इस अनुवाद से संस्कृतानभिज्ञ अँगरेजी जाननेवाले सज्जन भी इस पुस्तक से लाभ उठा सकते हैं। पुस्तक का गेट अप, छपाई श्रादि उत्तम हैं ।
कैलाशचन्द्र शास्त्री, एम० ए०
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