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सरस्वती
नामक चिड़िया दक्षिणी यूनाइटेड स्टेट्स में एप्रिल में पहुँचती है और एक मास बाद अलास्का द्वीप में जा उतरती है । इस प्रकार वह १३० मील प्रतिदिन के औसत से यात्रा करती है ।
कौन दिङ्-निर्णायक यंत्र (कम्पास ) इन पखेरु को मार्ग दिखाता है ? इनके पास दिशा का बोध करानेवाली जो अचूक चीज़ है उसकी बराबरी मनुष्य - निर्मित कोई भी यंत्र नहीं कर सकता । पश्चिम की सुनहरे रङ्ग की प्लोवर नामक चिड़िया अलास्का से दक्षिण-पश्चिम दिशा में उड़कर एल्यूशियन द्वीपों में जाती है, वहाँ से शून्य प्रशान्त महासागर के अन्तर्गत नन्हें से हवाई द्वीप की ओर दौड़ती है। एटलांटिक महासागर के किनारे की सुनहरी प्लोवर नोवास्कोशिया से उड़कर सीधी
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दक्षिण अमेरिका में पहुँचती है । वह रास्ते में किसी स्थान पर भी स्थल का स्पर्श नहीं करती। फिर वसन्त में वह दूसरे मार्ग से - मिसिसिपी - घाटी के ऊपर से स्थल को पार करती हुई- - सागर तट को वापस आ जाती है। सुमेरु- प्रदेश में रहनेवाली टर्न नामक चिड़िया के घोंसले उत्तर ध्रुव से केवल ४५० मील की दूरी पर मिले हैं। यह चिड़िया शरद् ऋतु बिताने के
लिए ११,००० मील उड़कर दक्षिण ध्रुव के बर्फानी समुद्रों को जाती है । यह इतनी यात्रा कैसे करती है ? आप चाहें तो इसे लोकोत्तर - क्रिया कह सकते हैं । परन्तु वैज्ञानिक लोग तो केवल इतना ही कह सकते हैं कि पक्षियों में यह अद्भुत शक्ति जन्म- सिद्ध है ।
जीवन के काँटे
लेखक, श्रीयुत श्रीमन्नारायण अग्रवाल, एम० ए०
जीवन के काँटे सुलझाओ ।
रक्त-सित, प्रति दुखित पड़ा मैं, प्रेयसि, अब तुम अपनाओ ॥
निकला था मैं शान्ति खोजने, ऊषा की लाली की ओर । चलते चलते बैठा थककर, कहीं नहीं था दुख का छोर ।। प्रकृति-रूप की सुखमा देखी, उडगरण-युत अंबर देखा । सागर की तरल तरङ्गों का, क्रीड़ामय कलरव देखा ||
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देखा ज्ञान- कुंड का गौरव, विद्या की शुचि कली खिली । किन्तु शान्ति की झलक कहीं भी, प्रेयसि ! मुझको नहीं मिली || शूलों से है हृदय-विद्धि प्रिय, अब तो तुम ही अपनाओ । मनुज - प्रीति के सुखद मन्त्र से, इन काँटों को सुलझा ॥
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