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__ संख्या ४]
सम्पादकीय नोट
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रखते हुए उसकी प्रशंसा नहीं की जा सकती । यद्यपि अपने देखना है कि वे अपनी इस घोषणा के अनुसार कार्य विशेषाधिकार के बल से वायसराय महोदय उसे कानून करने में कहाँ तक समर्थ होंगे। का रूप दे देंगे, तथापि असेम्बली ने अपने बहुमत से इसमें सन्देह नहीं है कि राष्ट्रीयतावादी भारतीयों में से उसे अस्वीकार करके उसके विरुद्ध लोकमत का ही नरम दलवालों में से कुछ लोग सहयोग करने की सलाह प्रमाण दिया है। ऐसी दशा में इस सम्बन्ध में दे रहे हैं। यहाँ तक कि जो लोग अभी तक निरपेक्ष तक सरकार को लोकमत की अवहेलना नहीं करनी थे वे भी उनके कथनों का समर्थन कर रहे हैं। सबसे चाहिए थी। इस कानून के पास हो जाने से और जो ताज़ा उदाहरण श्रीयुत केतकर का वह भाषण है जो असुविधायें होंगी सा तो होर्वेगी ही, सबसे बड़ी असुविधा अभी हाल में उन्होंने नागपुर में किया है। यह होगी कि इसके कारण समाचार-पत्र समुचित रूप से नये शासन-सुधारों के सम्बन्ध में राष्ट्रीयतावादी लोकअपने कर्त्तव्य का पालन न कर सकेंगे और उनकी उन्नति नेता इतना अधिक कह चुके हैं कि अब उनके लिए कुछ के माग में इससे बड़ी बाधा पहुँचेगी, जिसका कटु अनुभव कहना बाकी नहीं रह गया है। परन्तु भारत में अकेले पत्र-संचालकों को गत कई वर्षों के भीतर काफ़ी हो चुका इन्हीं लोकनेताओं को सुधारों के सम्बन्ध में कुछ कहने का है। इसके विरोध-स्वरूप २७ सितम्बर को भारतीय पत्रों अधिकार प्राप्त नहीं है। इनके सिवा और लोग भी हैं ने पूरी हड़ताल मनाकर अपना उचित असन्तोष प्रकट जो उन्हीं की तरह सुधारों के सम्बन्ध में अपनी स्वतन्त्र किया है। परन्तु सरकार अपने निश्चय पर दृढ़ है। वह राय दे सकते हैं। ऐसे लोगों में हाल में उपर्युक्त महाजब भारत में भारतीयों को शासन-सम्बन्धी अधिक से नुभाव ने भी अपना नाम लिखाया है। श्राप प्रसिद्ध महाराष्ट्र अधिक अधिकार देने जा रही है तब वह अपनी सत्ता कोशकार हैं । आपने अपने भाषण में यह घोषित किया है बनाये रखने के लिए अपने हाथों में अमोघ अस्त्र भी कि कानून से अब भारत स्वाधीन हो गया है। रहा व्यवहार बनाये रखना चाहती है। ऐसी दशा में भावी सुधारों से में स्वाधीन होना सो इसका सारा दोष महात्मा गान्धी लोकहित की कैसे और कहाँ तक अाशा की जा सकती है, तथा यहाँ के राजनैतिक अान्दोलकों पर है। अन्यथा यह वास्तव में विचार करने की बात है।
शासकों को विशेषाधिकार न दिये जाते और भारत व्यव
हारतः भी स्वाधीन हो जाता । श्रीमान् केतकर जी की __ भावी-शासन-व्यवस्था और लोकनेता इस घोषणा से उनके जैसे विचारवालों का काफ़ी परितोष
देश में नई शासन-व्यवस्था प्रचलित करने के लिए हो जायगा, पर सर्वसाधारण उनकी इस कानूनी स्वाधीनता सरकार तत्परता के साथ व्यस्त है, परन्तु प्रश्न यह है कि का कैसे उपभोग कर सकेंगे, यह समझना सचमुच टेढ़ी यहाँ के राजनैतिक नेता उसे कार्य में परिणत करने में खीर है। वे लोग तो अपने लोकनेताओं के ही स्वर में सहयोग करेंगे या नहीं। इस सम्बन्ध में अब तक जो कुछ स्वर मिलाये रहना अपने लिए हितकर समझेंगे। कहा गया है उससे इतना तो प्रकट ही है कि मुसलमान, अछूत और धनिक वर्ग उससे सहयोग करेंगे, परन्तु राष्ट्री
हिमालय की चढाई यतावादी भारत के सम्बन्ध में निश्चयपूर्वक नहीं कहा दुर्गम हिमालय के उत्तुंगभंग अभी तक अजेय बने जा सकता, यद्यपि वह आज दिन तक नये शासन-विधान हुए हैं। उन पर चढ़ने के विफल प्रयत्न अनेक योरपीय को अग्राह्य ही घोषित कर रहा है। लंदन में हमारे भावी आरोही कर चुके हैं। हिमालय की ओर इन साहसी वायसराय लार्ड लिनलिथगो ने अपने भाषण में कहा है अारोहियों का ध्यान पिछले महायुद्ध के बाद से ही गया कि शासन-विधान भारत की सब जातियों तथा सब धर्मों है और गत २० वर्षों के भीतर उनके कई दल हिमालय के लोगों के सहयोग में ही कार्य में परिणत किया जायगा। की भिन्न भिन्न चोटियों पर चढ़ने का प्रयत्न कर चुके हैं,
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