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सरस्वती
साचित्र मासिक पत्रिका
सम्पादक
देवीदत्त शुक्ल श्रीनाथसिंह
१. नवम्बर १९३५ }
भाग ३६, खंड २ । संख्या ५. पूर्ण संख्या ४३१
कातिक १६४२
बढ़ो!
लेखक, श्रीयुत सुमित्रानन्दन पन्त बढ़ो अभय, विश्वास-चरण धर ! मोचा वृथा न भव-भय-कातर :
व्यर्थ तर्क !-यह भव लोकोत्तर, ज्वाला के विश्वास के चरण,
बढ़ती लहर, बुद्धि से दुस्तर; जीवन-मरण समुद्र मन्तरण,
पार करो विश्वास-चरण धर ! सुख-दुख की लहरों के सिर पर, जीवन-पथ तमिस्रमय, निर्जन, पग धर पार करो भव-सागर ।
हरती भव-तम एक लघु-किरण, बढ़ो, बढ़ो, विश्वास-चरण घर !
यदि विश्वास हृदय में अणुभर, क्या जीवन ? क्यों ? क्या जग-कारण ?
देंगे पथ तुमको गिरि-सागर ! पाप-पुण्य. सुख-दुख का वारण ?
बढ़ो अमर विश्वाम-चरण धर !
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