________________
% 3D
-
-
-
-
-
- -
यद्धों की अनिवार्यता
लेखक,
प्रोफेसर इन्द्र वेदालङ्कार,
एम० ए०
द्ध कब बन्द हो सकते हैं ? विक्षोभ है, कहीं अन्तर्जातीय वैमनस्य है और कहीं मनुष्य का स्वभाव है राष्ट्रों का पारस्परिक विरोध है। लड़ना । संसार के इतिहाम रोमन रोलॉ के सहश महान आत्मायें तथा में कौन-सा ऐमा काल है लेखक जैमी महस्रों क्षुद्र आत्मायें विश्व की शान्ति जब युद्ध न हाए हों, लड़ाइयाँ के लिए कितनी ही मूक प्रार्थनायें करें, परन्तु युद्ध
न हुई हों ? सत्ययुग में कब रुक सकते है ? संसार की सव आध्यात्मिक ....... भी देवासुर-संग्राम हाए, चेष्टायें, सब नैतिक प्रयत्न, सब धार्मिक उपदेश विफल त्रेता में मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम को युद्ध करना हैं, व्यर्थ है । युद्ध नहीं रुक सकत, न कभी रुक और पड़ा, द्वापर में प्रलयकारी महाभारत-ममर हुआ। न कभी मकेगे। मनुष्य में छिपा हुआ पशु अपनी कब युद्ध नहीं हए ? मानवीय प्रकृति में लड़ना कूट कूट पाविकता का नहीं छोड़ सकता । पशु-जगत में कर भरा हुआ है। मनुष्य का शरीर म्वयं निरन्तर सदाचार का कोई नियम नहीं, अन्तर्राष्ट्रीयता का लड़ाई का अवशेष-मात्र है। प्राणि-संमार में बुद्धि- कोई प्रयोग नहीं, धार्मिकता का कोई भाव नहीं। शील होने के कारण-परमात्मा की उत्कृष्ट सृष्टि उसमें बुद्धिशीलता की आशा करना मूखता है, नैतिक होने के कारण-मनुष्य, सत्ता के संघप में, विजयी आचार की कल्पना करना अनभिज्ञता है। उस होकर जीवित है। मनुष्यों में भी बलवान का जगत् का केवल एक नियम है, एक ही कानून है, एक निर्बल के साथ संघर्ष है-संग्राम है, और प्रत्येक ही कोड और एक ही आचार-परिमाण है। वह है अपने जीवित रहने के लिए युद्ध कर रहा है। वस्तुत: जंगल का नियम–अथवा प्राच्य राजनैतिक परिविश्व में सर्वत्र युद्ध का कोलाहल है । कहीं परिवारों भाषा में वह है मात्स्य न्याय । जैसे एक तालाब में का कलह है, कहीं भिन्न भिन्न समाज-श्रेणियों में या नदी में बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती
३८६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com