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मार्ग में
हवाई जहाज से
५ सितम्बर १९३५
छोटी हाज़िरी और चार बजे तक सामान का पहुँचाया जाना। होटल से सवा चार बजे चल देना था और चार
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने यह पत्र बज कर तीस पर जहाज की रवानगी थी। बहुत देर तक
अपनी बहन श्रीमती विजयलक्ष्मी तो मुझे नींद ही नहीं आई और उसके बाद मुझे मालूम
पंडित को लिखा है। इसके लिए हम हुश्रा, जैसे मेरी आँख झपने के कुछ ही देर के बाद मैं
श्रीमतीजी के कृतज्ञ हैं। पत्र का अनुजगा लिया गया। किसी तरह मैंने हजामत की योजना
वाद श्रीनरेन्द्र शर्मा ने किया है। की और गरम पानी से अच्छी तरह स्नान किया-यहाँ अँगरेज़ी ढंग का अच्छा स्नानगृह है। इस प्रकार में ठीक नियमित समय पर तैयार हो गया। हमारे मित्र बड़े जहाज से यात्रा करेंगे। इस जहाज़ में हम तीन ही मिस्टर पेरिन के विषय में यह बात नहीं, कई बार जगाने यात्री हैं, पेरिन के और मेरे अलावा एक और हैं, जो पर, अन्त में वे एक हाथ में कॉलर और दूसरे में टाई मेरे खयाल से आस्ट्रेलियन हैं । लिये हुए बाहर निकले, और हम लोग तुरन्त ही तारों के रात की यात्रा से हम लोगों ने समय को बहुत कुछ प्रकाश में चल दिये।
पूरा कर लिया है। कराची से 'एयरमेल' केवल एक बहुत शीघ्र ही हम सिन्ध नदी के ऊपर उड़ते हुए दिन के विलम्ब से रवाना होगा। होंगे और फिर कराची आ जायगा। वहाँ से हम इससे
नेहरूजी बमरौली एयरोडोम में इष्ट-मित्रों के साथ ।
नेहरूजी अपनी बहन श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित
और उनके बच्चों के साथ ।
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