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संख्या ४]
व्यर्थ प्रयास
खुले थे। दूसरे कमरे भीतर से बन्द थे, और वे शायद सवेरे और साँझ को ज़रा देर तक बगीचे में टहल • दूसरी ओर से खुलते थे । जरा देर तक विश्राम करने के आया करता। इसके लिए कभी कोई किसी प्रकार
बाद चार-पाँच बजे साँझ को कुछ खाकर मैं बाहर की आपत्ति नहीं करता था। सूर्य का उदय और निकला । मुझे यह जानने की इच्छा थी कि मैं कैसा अस्त देख कर दिशा का निर्णय किया । श्राकाश पर बन्दी हूँ।
चीले चारों ओर उड़ा करती थीं। उन्हें इस प्रकार स्वच्छन्द बाहर बगीचा था, किन्तु वह बेमरम्मत पड़ा था, रूप से विचरण करते देखकर मन में बहुत ही विषाद जगह जगह पर जङ्गल-सा हो गया था। बाहर का फाटक उत्पन्न होता था। उस समय मैं यह अनुभव करता कि बन्द था । वहाँ एक एक पहरेदार बैठा था, जिसके हाथ मुझ और बन्दी में क्या अन्तर है। मध्याह्न की निस्तमें भरी बन्द थी। बन्दक देखने पर मेरी समझ में पा गया ब्धता में कबूतर गुटर गॅ'गुटर गू किया करते, कठफोड़ा कि मैं सचमुच बंदी हूँ। यदि भागने का प्रयत्न करूँगा भी लगातार ठक ठक करता रहता। बगीचे में नेवला, तो मुझे यह गोली मार देगा। चारों ओर घूमकर देखा। जंगली खरगोश आदि दिखाई पड़ते। एक दिन टहलते कहीं दीवार फांदकर निकलने योग्य नहीं थी। या तो सीढी टहलते मुझे साही के कई काँटे पड़े हए मिले। सेाचा कि से उस पर चढ़ा जा सकता था या किसी रस्सी आदि रात को साही भी यहाँ पाया करती है । चहारदीवारी में का सहारा मिलने पर उस पर से होकर निकला जा उसने कहीं बिल खोद रक्खा होगा । खोज कर देखा, सकता था । आसानी से निकल भागना सम्भव नहीं था। दीवार में एक स्थान पर बहुत सङ्कीर्ण मुँह का एक बिल
यह स्थान कहाँ था, किस स्टेशन पर मैं गाड़ी से दिखाई पड़ा । चौड़ा करने पर उसके द्वारा सम्भवतः मनुष्य उतारा गया था, यह तो मैं नहीं अनुमान कर सका, पर भी बाहर निकल सकता था, परन्तु उसके लिए परिश्रम मुझे जहाँ उतरना था वहाँ मैं नहीं उतारा गया, यह और समय की आवश्यकता थी। मेरे पास खोदने के लिए मैं अनायास ही समझ गया था। क्योंकि यदि मैं अपने कोई औज़ार नहीं था और यदि होता भी तो मुझे कोई स्टेशन पर उतारा गया होता तो वहाँ मेरे आदमी होते, खोदने ही क्यों देता ? रात को मेरे कमरे में बाहर से
और जो लोग मुझे इस रूप में ले आये हैं वे सब पकड़ ताला लगा रहता था। लिये जाते।
छुटकारे का काई भी उपाय मैं नहीं सोच पाया । ___मैंने हिसाब लगाने का प्रयत्न किया। गाड़ी से उतारे जाने के बाद स्टेशन पर मैंने घड़ी देखी थी। इससे कुछ
(३) कुछ स्मरण था कि उस समय रात को तीन बजे थे। दो दिन तक मुझसे किसी ने कुछ नहीं कहा । केवल रेलवे का टाइम-टेबिल निकालकर देखा। ठीक उसी नाटे आदमी से एक-अाध बार मुलाक़ात भर हो जाती समय रामपुर नामक एक छोटे से स्टेशन पर गाड़ी रुका थी। पर उन दो आदमियों को नहीं देख पाया था। करती थी । यदि वह वही स्टेशन था तो वहाँ से यह घर वे लोग इस मकान में हैं या नहीं, यह भी मुझे मालूम कितनी दूर है, यहाँ मैं इस तरह क्यों पकड़ कर लाया गया नहीं था। हूँ, ऐसा करने का इन लोगों का क्या उद्देश है, ये सब तीसरे दिन वह नाटा आदमी भोजन आदि के बाद बातें किसी तरह भी मैं न समझ सका। किसी किसी देश मेरे कमरे में आया। वह मेरे पास न बैठ कर ज़रा कुछ में इस तरह पकड़कर लोग पकड़े हुए श्रादमी से रुपये दूर बैठा । उसका हाथ जेब में था। मैं यह जानता था वसूल करते हैं, बाद का उसे छोड़ देते हैं। तो क्या इन कि उसकी जेब में पिस्तौल है। लोगों का भी यही उद्देश है ? नाटे श्रादमी ने दो दिनों उसने व्यङ्गय के स्वर से कहा - यहाँ तुम निमन्त्रण तक मुझसे कोई भी बात नहीं कही।
में नहीं लाये गये हो । समझे ?
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