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का डंका बजानेवाला भूषण कवि ही है । इस कवि ने यदि छत्रपति शिवाजी का हिन्दी - कविता में यशागान न किया होता, तो शायद शिवाजी का महत्त्व केवल महाराष्ट्र-सीमा में ही सीमित रहता । विदेशी और मुसलमान लेखक जब शिवाजी को चोर और लुटेरा बतला रहे थे, और उनको एक पहाड़ी चूहा कहकर प्रकट करते थे, तब भी भूषण कवि का ही प्रभाव था कि जिससे शिवाजी का "स्वराज्य-संस्थापक" और "हिन्दू-धर्म-रक्षक" स्वरूप अपढ़ कुपढ़ हिन्दी - जनता और हिन्दी भाषियों में जगमगा रहा था । उन विदेशी ग्रन्थकारों के भ्रमपूर्ण मतों का खंडन करने के लिए दक्षिण में न्यायमूर्ति रानडे और
कल छबि ने कवि के अधरों को पुलकित होकर चूम लिया था । तृषित सिन्धु ने सखि, सरिता का मधुर प्रेम-पीयूष पिया था ।
असीम का बन्धन
लेखक, श्रीयुत बालकृष्ण राव
प्रेरित हो अपने ही सुख की पुण्य प्रचुरता से परिमल ने कुल कुलको सुमनों की स्वीकृति का सन्देश दिया था ॥ फूट पड़ी कवि की कृतज्ञता कविता के मृदु मादक स्वर में । नाच उठीं सखि, तृप्त तरंगें, बेसुध -सी होकर, सागर में ।
सरस्वती
कलिका की सुकुमार कामना, स्पन्दित करके विपुल शान्ति को, सजन, सो गई सुख से नीरव गुञ्जन बनकर आज भ्रमर में ॥
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जस्टिस तैलंग के समान प्रभावशाली व्यक्तियों को अँगरेज़ी में लेखनी उठानी पड़ी; परन्तु उत्तर-भारत में भूषण कवि पहले से ही अपनी राष्ट्रीय कविता के द्वारा उन विदेशियों को राष्ट्रीय भाषा में मुँह तोड़ उत्तर दे रहा था और इस प्रकार शिवाजी के उज्ज्वल यश और प्रताप को अक्षुण सिद्ध कर रहा था ।
मैं नहीं चाहता था कि श्री विनोदविहारी के लेख का कोई उत्तर दिया जाय, पर कई मित्रों ने मुझे विवश किया। अतएव इतना लिखना पड़ा। पाठकों को सत्यासत्य का विवेक स्वयं कर लेना चाहिए ।
[ भाग ३६
झलक रही है कान्ति स्वप्न की छविमय नयनों में जागृति के । खिले हुए हैं सुमन मनोहर आशा के उपवन में स्मृति के ।
ले कवि के संचित स्वप्नों के चित्र, अदृश्य करों से अपने सजा रहा है सजनि, सदन को पुरुष पुरातन प्रिया प्रकृति के || अद्भुत भावों से प्रेरित हो आज नियति ने नियम भंगकर, छिपा दिया सुख के जलकरण में सखि, असीम करुणा का सागर ।
संनिविष्ट करके अपनी ही पुण्य परिधि में छवि अनन्त की, व्याप्त होगया निखिल विश्व में कवि की वीणा का नीरव स्वर ॥
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