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संख्या ४ ]
" वर नहीं जायगा, कन्या ही यहाँ आवेगी । इस मकान में वर और पुरोहित उपस्थित रहेंगे। तुम कन्या को यहीं बुला लेना । विवाह में कोई विशेष समारोह न होगा, अन्यथा कोई विघ्न उपस्थित हो सकता है ।"
व्यर्थ प्रयास
"कन्या यहाँ किस तरह ग्रावेगी ?"
"यों ही मोटर पर बैठकर । तुम चिट्ठी लिखकर वनलता को यहाँ अपने पास बुलाओ। तुम्हारी चिट्ठी पाकर वह तुरन्त यहाँ चली श्रावेगी ।"
"तो क्या तुम समझते हो कि मैं चिट्ठी लिख दूँगा ?” " आसानी से लिखोगे । यदि ऐसा ही होता तो तुम्हें इस तरह रेलगाड़ी से पकड़कर क्यों ले आता ? ता, सीधे लिख दोगे या किसी दूसरे उपाय का अव लम्बन करना पड़ेगा ?"
ब
“मैं कभी नहीं लिखूँगा ।"
" इस समय चाहे यह बात कह लो; परन्तु बाद को तुम लिखोगे और खुशी से लिखोगे। तुम्हें कल तक का और समय देते हैं । कल रात को यदि तुमने चिट्ठी न लिख दी तो समझ रखना वंशी हालदार को ।"
वह उठ कर चला गया, बाहर से कमरे में ताला लगा दिया ।
मैं समझ गया कि यह मकान रामपुर स्टेशन के समीप ही | दक्षिणपाड़ा स्टेशन से यह कई कोस की दूरी पर है । वहाँ से यहाँ तक मोटर का रास्ता है 1 मैं यह भी समझ गया कि कल से मेरे ऊपर किसी न किसी प्रकार का अत्याचार प्रारम्भ होगा । उन लोगों ने समझ रक्खा है कि यन्त्रणा सहन करने में असमर्थ होकर वंशी हालदार के आज्ञानुसार मैं चिट्ठी लिख दूँगा । उनके लिए कोई भी कार्य असाध्य नहीं है ।
कमरे का द्वार भीतर से बन्द करके मैंने बाक्स से एक नोटबुक निकाली । उसी में पेंसिल भी थी। काग़ज़ फाड़ कर सारी घटना का विवरण लिखा । घर की चहारदीवारी की भी बात लिखी। यह भी लिख दिया कि यह स्थान रामपुर स्टेशन से अधिक दूरी पर नहीं है । मैंने इन सब बातों को स्पष्ट रूप से लिख दिया कि यदि मैं शीघ्र ही इन लोगों से मुक्त न कर लिया गया तो मुझे विशेष रूप से
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यातना भोगनी पड़ेगी और लोग पशुबल की सहायता से मुसे पत्र लिखा लेंगे । इसलिए पुलिस की सहायता लेकर रात्रि के समय चुपचाप चहारदीवारी फाँदकर इस मकान को घेर लो और वंशी हालदार तथा उसके अनुयायियों को गिरफ़्तार करके मुझे मुक्त करो ।
चिट्ठी लिखकर उसे लिफ़ाफ़े में बन्द किया और ऊपर मिस्टर राय के मैनेजर का नाम तथा उनके घर का पता आदि लिख दिया । एक दूसरे काग़ज़ पर लिखा कि जो कोई यह चिट्ठी पावे वह शीघ्र ही दक्षिणपाड़ा के रायबाबू के यहाँ ले जाय, नहीं तो इस मकान में एक आदमी की हत्या हो जाने की सम्भावना है ।
एक साफ़-सुथरे रूमाल के एक किनारे पर यह काग़ज़ और पाँच रुपये बाँध दिये और दूसरे किनारे पर वह चिट्ठी । इसके बाद चिराग़ बुझाकर सो गया ।
( ४ )
मेरे दरवाजे का ताला बहुत सवेरे ही खोल दिया जाता था । मैं रोज़ सवेरे चाय पीकर जिस तरह थोड़ी देर तक टहला करता था, उसी तरह उस दिन भी टहलने लगा । जो आदमी दरवाज़े के पास बैठा रहा करता था, वह मेरी तरफ़ पीठ करके मसाला पीस रहा था । बन्दूक़ दीवार के सहारे खड़ी हुई थी ।
टहलते टहलते मैं चहारदीवारी के उस भाग के पास पहुँचा, जो मकान से सबसे अधिक दूर था और फाटक से कुछ आड़ में भी पड़ता था । चारों ओर घास आदि उगी थी। नींबू के एक पेड़ की आड़ में खड़े होकर मैंने जेब से वही रूमाल, जिसमें चिट्ठी और रुपया बँधा था, ज़ोर से चहारदीवारी के उस पार फेंक दिया ।
साँझ को वंशी हालदार मेरे कमरे में श्राया । रेलगाड़ी में उसके साथ जिन और दो आदमियों को देखा था वे लोग भी साथ थे। इनके अतिरिक्त एक नया आदमी भी था । वह खूब लम्बा और मोटा-ताज़ा था । दरवाज़े के तख्ते के समान चौड़ा उसका सीना था । वह आदमी क्या था, पूरा दैत्य था । उसे देखते ही समझ गया कि मेरे साथ सख्ती की जायगी । वंशी हालदार के हाथ में कलम-दावात,
चिट्ठी लिखने
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