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सरस्वती
[भाग ३६
विचार के इस कायनात को बनाया है। कवि की है। ऐसा मालूम होता है कि शायर ने जीवन के बुद्धि भी भँवर में पड़ जाती है। केवल इतना ही आदर्श को पा लिया है। अब वह नये सिरे से एक कहकर बस कर देते हैं
___नया शिवालय बनाने की धुन में है। एक कविता में आती है सब वाँ से पलट जाने की खातिर, स्नेह से सनी हुई मधुर तान में वह गाता हैबेचारी कली खिलती है मुरझाने की खातिर। सूनी पड़ी हुई है मुद्दत से दिल की बसती,
यह इन्सान का जीवन तो एक सपने के समान आ इक नया शिवालय इस देश में बनावें। है। यह केवल रामकहानी ही ठहरी। क्या इसमें पहले कवि को स्नेह नाशमान दीख पड़ता था, कोई ऐसी बात है जो सदा के लिए हो ? क्या इस मगर जबमायाजाल के अंधकार में कोई ज्योति है जो हम हर सुबह उठके गायें मन्त्र वह मीठे मीठे, थके-माँदे मंझधार में फंसे हुए इन्सानों को किनारा सारे पुजारियों को मय पीत की पिलावें । दिखा सके। इन भावों को कवि अपनी सुरीली तान कवि जिस संसार से भागता था अब वह उसी में कहता है
में बस कर बन्दों से प्यार करेगा। चश्मे हैराँ ढूँढ़ती अब और नज्जारे को है। खुदा के आशिक तो हैं हजारों, आरजू साहिल की मुझ तूफ़ों के मारे को है।
बनों में फिरते हैं मारे मारे। बुढ़ापे में
मैं उसका बन्दा बनूँगा जिसको, कवि जब हक़ीक़त की तलाश में अनन्त मार्ग पर
खुदा के बन्दों से प्यार होगा। चल चल कर चूर हो जाता है तब उसका दिल टूट शायर ने इस जीवन के मक़सद को पा लिया है। जाता है। वह स्वाभाविक तौर पर सोचता है क्या वह अपना अनुभव कहता है कि मनुष्य बिना प्रयोवह इसलिए पैदा हुआ था कि हमेशा सफर ही करता जन के पैदा नहीं हुआ, क्योंकि इन्सान हर वस्तु की रहे ? इस दुनिया की तो हर वस्तु नाश होनेवाली हक़ीक़त है, अगरहै। अब करे तो क्या करे ? किसके पीछे भागे, न सुहबा हूँ न साक़ी हूँ न मस्ती हूँ न पैमाना, किसकी तलाश करे ? वीणा के थके हुए तारों में बजने मगरकी ताक़त नहीं ? अगर उत्साह करके यह बाज़ी जीत मैं मयखाना-ए-हस्ती में हर शय की हक़ीक़त हूँ। ले और फिर से तारों को बना ले तो उसकी जीवन
अन्तिम दिन . वीणा से वह मधुर लय निकलती है जो हर दुःखी लेकिन इकबाल के दिल को अब तक चैन नहीं दिल को मोह लेती है और उसके दुःखों को भुला मिला । उथल-पुथल जारी है। जिस तरह जर्मनी देती है। महाकवि ठाकुर की तो यहो मीठी मीठी के महाकवि गेटे ने जीवन के आदर्श को पा लिया
और हलकी हलकी तान है, जिसने पश्चिम के व्यथित था, जिस तरह शेक्सपियर ने अपने अन्तिम नाटक दिलों को शान्ति दी, और उन लोगों ने मोहित होकर में जीवन के सार को समझ लिया था, और जैसे कवीन्द्र को नोबेल पुरस्कार दिया ।
रवीन्द्र ने अपनी शैली से जीवन के तत्त्व को पा कवि हारा नहीं
लिया है, इकबाल अभी उसकी तलाश में हैं। जीवन के इस घोर संग्राम में इकबाल की काव्य- शायद उन्होंने हारकर अब इस तलाश को त्याग वीणा बजते बजते थक तो गई है, लेकिन टूटी नहीं। दिया है। कदाचित् यह बाजी आदमी जीत ही अब भी कभी कभी उससे मधुर झंकार निकल पड़ती नहीं सकता।
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