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संख्या ४ ]
कवियों ने अधरों में मधुररस और नेत्रों में लवणरस माना है । रहिमन ने कहा है---
'नैन सलोने अधर मधु, कहु रहीम घाट कौन । मीठो चहियत लोन पै अरु मीठे पर लोन ।' कविता में आठ रस माने गये हैं- शृङ्गार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स और अद्भुत । साहित्यदर्पण में शान्त को मिलाकर नव
प्रकार
रस माने गये हैं। किसी किसी का मत है कि शान्त की गणना रसों में नहीं हो सकती । शायद उनकी यह राय हो कि शान्त उस दशा का बोधक है जब हृदय का भाव शून्य हो जाता है। एक उर्दू के कवि ने कहा है
" अच्छा है वह न आये मेरे खानये दिल में | म भी निकल जायँगे वीराना समझ कर ।"
यही हाल काले रङ्ग का है, इस विषय के जाननेवालों का कहना है कि काला कोई रङ्ग नहीं है, वह केवल प्रकाश की क्षयराशि है । काले को चाहे रङ्ग कहिए, चाहे प्रकाश की क्षयराशि कहिए या प्रकाश का अभाव कहिए या और जो चाहिए सो कहिए, पर इस पर भी बड़ी बढ़िया कवितायें हुई हैं। साँवला शब्द अब कृष्णचन्द्र का बोधक हो गया है । एक सखी कहती है
“बावरी वे अँखियाँ जरि जाहिं जो साँवरो छोड़ि बिलोकहिं गोरो ।” आचार्यों ने शान्तरस की गणना चाहे रसों में की हो या न की हो, लेकिन हिन्दी के कवियों ने इस पर अच्छी कवितायें की हैं। रसखानि का कितना अच्छा छन्द है—
"मानुष हों तो वही रसखानि बसौं,
व्रज गोकुल गोप गवारन । जो पशु हों तो कहा वश मेरो,
चरौं नित नन्द की धेनु मकारन ॥ पाहन हों तो वही गिरि को,
जो कियो हरि छत्र पुरन्दर धारन ।
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रस
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जो खग हों तो बसेरो करौं,
वह कालिंदी कूल कदम्ब की डारन ॥ " काव्यप्रभाकर में शान्तरस का इस प्रकार वर्णन है—
" सुरस शान्त निर्वेद है, जाको थाई भाव । सतसंगति गुरु तपोवन, मृतक समान विभाव || प्रथम रोमांचादिक तहाँ, भाषत कवि अनुभाव । धृति मति हरषादिक कहे, शुभ संचारी भाव ॥ शुद्ध शुक्ल रँग देवता, नारायण हैं जान । ताको कहत उदाहरण, सुनहु सुमति है कान ॥”
जङ्गल तो शान्ति के लिए अनिवार्य है । तुलसीदास जी ने तो बहुत आवश्यकीय समझा है
"नीति कहत स सुनहु दसानन । चौथे पन जाइय नृप कानन ॥" बिना एकान्त के और जङ्गल से ज्यादा कहाँ एकान्त प्राप्त हो सकता है, शान्ति कहाँ ? वर्ड्सवर्थ अपनी कविता जङ्गलों और पहाड़ों पर लिखते थे और उनकी निर्जनप्रियता अब एक कहावत हो गई है । जो कुछ दुनिया में कर गये हैं उन सबका विद्याध्ययन निर्जन स्थानों में हुआ था, और उसी सिद्धान्त पर विश्वभारती की स्थापना श्री रवीन्द्रनाथ जी ने की है। जो देहाती स्कूल पक्की सड़क के पास हैं उनकी दशा देखकर महान् दुःख होता है । जैसे, कोई मोटर निकली तो 'क' से कबूतर रटनेवाले लड़के उचक करके स्कूल के बाहर आ गये और उनके नवयुवक मौलवी साहब या पण्डित जी की भी वही दशा हुई । यदि उस मोटर पर कोई अँगरेज़ी वस्त्रधारी बैठा हुआ हो तो लपक करके सलाम किया और लड़कों को भी सलाम करने की आज्ञा दी और यदि कोई अभागा हिन्दुस्तानी कपड़ों में हुआ तो अगर लड़कों ने दो चार ढेले फेंक दिये या गर्द उड़ा दी तब भी ठीक है । अस्तु ।
कविता के अनुसार जो आठ रस माने गये हैं उनमें आठ स्थायीभाव उपस्थित होते हैं - “रति,
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