________________
सरस्वती
[भाग ३६
इसका मतलब यह है कि कर्जदार की जायदाद ३-४
किस्तें कैसे मुकर्रर होंगी? से ज्यादा रहन नहीं हो सकती।
__परिशिष्ट २ में जिसे हम अन्यत्र प्रकाशित कर रहे हैं, ____ अब प्रश्न यह होता है कि कितने कर्ज के लिए यह दिखाया गया है कि ४, फ्री सदी सूद के हिसाब से कितनी जायदाद रहन रखी जायगी। इसके वास्ते यह १) अमुक वर्ष में कितना अदा कर देगा। इस नशे के नियम बनाया गया है कि छूट के बाद जायदाद का जो अनुसार कलक्टर हिसाब लगाकर तथा कर्ज की मात्रा मुमाफ़ा है उसे 'औसत किस्ती अंक' से गुणा कर देंगे। और जायदाद की किस्ती कीमत को देखकर अदायगी की फिर जितने वर्ष के लिए रहन की दरख्वास्त हुई है किस्तें मुकर्रर करेंगे। मान लीजिए १०,०००) का कर्ज है उतने वर्ष के सामने परिशिष्ट नं० २ में जो अंक और जायदाद की किस्ती कीमत १,०००) है। अगर लिखा हुश्रा है उसे '१५ से गुणा करके सबको गुणा कर कर्ज की अदायगी के लिए हम एक एक हज़ार रुपये की दे । गुणा करने से जो आयेगा वह वह रकम है जितने के सालाना किस्त बाँध दें तो इस नक्शे के अनुसार १३ लिए उक्त जायदाद रहन रक्खी जा सकती है। उदाहरण वर्षों में १००० x १० ३६१ अर्थात् १० ३६१) अदा हो के लिए मान लीजिए कि लछिमनपुर गाँव को कोई महा- जाते हैं। इसलिए कलक्टर १,०००) की तेरह सालाना जन रहन रखना चाहता है। इस गाँव का छूट के बाद किस्तें मुकर्रर कर देगा। लेकिन अगर वह यह देखेगा कि का मुनाफ़ा १,०००) है और महाजन ने १० वर्ष के लिए एक हज़ार रुपये की सालाना अदायगी में ज़मींदार को रहन रखने की दरख्वास्त दी है। लछिमनपुर का औसत कठिनाई होगी तो वह १३ किस्तों के बजाय १५ किस्ते विक्रयांक ७ है । परिशिष्ट २ में १० के सामने ८०११ कर सकता है, २० किस्तें कर सकता है। ज़ाहिर है कि लिखा है। इस कायदे के अनुसार मुनाफ़े को परिशिष्ट के किस्तों की संख्या अर्थात् मियाद जितनी बढ़ेगी, किस्तों की अंक से किस्ती अंक से और '१५ से अगर गुणा करेंगे तो मात्रा उतनी ही कम होती जायगी। वह रकम मालूम हो जायगी जितने के लिए वह जायदाद यद्यपि कायदा यह है कि अधिक से अधिक मात्रा की रहन रक्खी जा सकती है, अर्थात् १००० x ८०११x किस्तें जो क़र्ज़दार की रक्षित और अरक्षित जायदाद से '१५४७ =८४११.५५) यानी ८४११.५५ के लिए वह दिलाई जा सकती हैं, दिलाई जायँ, लेकिन कलक्टर को इस जायदाद रहन रक्खी जा सकती है।
बात की हिदायत है कि वह ज़मींदार की हालत देखकर अगर केवल ५००के क़र्ज़ पर महाजन ८४११) के किस्त ऐसी मुकर्रर करे जिसकी वसूलयाबी में दिक्कत न हो। रहनी कीमत की जायदाद लेने की दरख्वास्त करेगा तो अगर कोई महाजन रईस की जायदाद रहन रखने दरख्वास्त नामंज़र हो जायगी, क्योंकि ५००) के लिए को तैयार नहीं और कर्ज़ इतना ज्यादा है कि जायदाद ८४११) की जायदाद रहन करने की कलक्टर इजाज़त की किस्ती कीमत से अदा नहीं हो सकता, अर्थात् एक्ट नहीं देगा।
की दफा २८ के अनुसार कार्रवाई ज़रूरी मालूम होती है, ___ अगर कोई महाजन ऐसा नहीं मिलता कि कर्जदार तो उस हालत में दो सूरतें पैदा हो सकती हैं --पहली यह की जायदाद रहन रक्खे तो उस हालत में कलक्टर दफ़ा कि अरक्षित जायदाद की बिक्री कीमत और रक्षित २७ के अनुसार किस्तें बाँध देगा। उसका तरीका यह है जायदाद की किस्ती कीमत जोड़ने से कर्ज अदा हो जाता कि वह सूद-सहित सम्पूर्ण कर्ज की मात्रा जोड़कर एक है। दूसरी यह है कि क़र्ज़ इतना ज्यादा है कि इनके अोर रक्खेगा और रक्षित और अरक्षित जायदाद की जोड़ने पर भी अदा नहीं होता। क़िस्ती कीमतें जोड़कर दूसरी ओर। अगर किस्ती पहली सूरत में भी तीन बातें पैदा हो सकती हैंकीमत क़र्ज़ की मात्रा से ज़्यादा है तो वह किस्तों की (क) कर्जदार रईस के पास कोई रक्षित जायदाद नहीं, मात्रा और संख्या इस ढंग से बाँध देगा
सारी जायदाद अरक्षित ही है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com