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संख्या ४]
गया है । रामपुर का औसत क़िस्ती अंक जैसे ऊपर हिसाब लगाकर निकाला गया है, ३२ अर्थात् ६४ है, इसलिए उसकी क़िस्ती क़ीमत हुई १३०० x ६४, अर्थात् ८३२०) । जायदाद चाहे रक्षित हो या अरक्षित, औसत क़िस्ती कीमत निकालने का ढंग यही है ।
निम्नलिखित अवस्था में क़िस्ती क़ीमत कलक्टर द्वारा बढ़ाई घटाई जा सकती है
क़िस्त मुकर्रर करते समय कलक्टर को इस बात का खयाल रखना चाहिए कि क़िस्त इतनी अधिक न रक्खी जाय कि ज़मींदार उसको अदा ही न कर सके । लेकिन अगर कर्ज़दार रईस के पास कृषि और ज़मींदारी के अलावा ग्रामदनी का दूसरा ज़रिया मौजूद है या बहुत ज्यादा सीर और खुद काश्त है या मुनाफ़े का कोई फ़ारम है तो क़िस्त बढ़ाई जा सकेगी । ( २८ ) कलक्टर क़िस्त की मात्रा हिसाब से आये हुए अंक से गुना से ज्यादा घटा-बढ़ा नहीं सकता ।
ऋणग्रस्त रियासत-सम्बन्धी कानून
कलक्टर एक नक़्शा तैयार करेगा, जिसमें दिखाया जायगा कि क़र्ज़दार रईस की (१) हर एक रक्षित और रक्षित जायदाद की क़िस्ती कीमत क्या है, (२) रईस की सारी रक्षित जायदाद की बिक्री की क़ीमत क्या है, (३) रईस की सारी रक्षित जायदाद की क़िस्ती क़ीमत क्या है, (४) रईस की सारी अरक्षित जायदाद की क़िस्ती कीमत क्या है । (कायदा नं ३० )
अगर रईस ने दो महीने के अन्दर सारे क़र्ज़ की रकम अदालत में जमा नहीं कर दी तो कलक्टर एक्ट की दफ़ा २४ के अनुसार रईस के पास जितनी ग़ैर काश्तकारी की जायदाद है उसे बेचने की कोशिश करेगा । लेकिन कलक्टर किसी भी हालत में रईस की और उसके
*बढ़ाने के कारण
(१) उस हलके की अन्य जायदादों की अपेक्षा लगान आसानी से और समय पर वसूल हो जाता है । (२) इन्तिज़ामी खर्च कम है ।
(३) जायदाद अपेक्षतः बढ़िया है ।
फा. ७
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खानदान की उतनी जाती जायदाद को न बेचेगा जो उसकी राय में रईस की हैसियत कायम रखने के लिए आवश्यक है, बशर्ते कि वह जायदाद किसी क़र्ज़ की जमानत में मक़फ़ूल न हो ।
लेकिन जब तक जायदाद की श्रमदनी से किस्तें बँधकर क़र्ज़ की अदायगी सम्भव है, दफा २४ काम में नहीं लाई जायगी, अर्थात् कर्जदार रईस की चल सम्पत्ति और ग़ैर काश्तकारी जायदाद नीलाम नहीं की जायगी।
गर क़र्ज़दार रईस नक़द रुपया क़र्ज़ की अदायगी में नहीं दे सकता और दफ़ा २४ के अनुसार कर्ज़दार रईस की चल सम्पत्ति और ग़ैर काश्तकारी बेच कर भी क़र्ज़ से छुट्टी नहीं मिलती, उस हालत में अगर कोई महाजन क़र्ज़दार की काश्तकारीवाली सम्पत्ति रहन रखना चाहेगा तो कलक्टर रहन की इजाज़त दे देगा |
कर्ज की अदायगी रहन द्वारा कैसे होगी ?
अगर कोई महाजन अपने क़र्ज़ की अदायगी में किसी रईस की जायदाद रहन रखने को तैयार है तो उसे अदालत में दरख्वास्त देनी होगी। महाजन को अपनी दरख्वास्त में यह साफ़ कर देना होगा कि वह कौन कौन-सी जायदाद और कितनी मियाद के लिए रहन रखना चाहता है । अगर दरख्वास्त में महाजन ने २० वर्ष से ज्यादा मियाद चाही तो कलक्टर उस दरख्वास्त को नामंजूर कर देगा । अगर दरख्वास्त के अन्दर २० वर्ष से कम मियाद माँगी गई तो कलक्टर पहले इस बात को तय करेगा कि उक्त जायदाद से अब (छूट के बाद) कितना मुनाफ़ा होता है । अगर दरख्वास्त में बताई हुई जायदाद या मुनाफ़ा क़र्ज़दार की सारी जायदाद के मुनाफ़े के तीन-चौथाई से ज्यादा है तो कलक्टर दरख्वास्त नामंजूर कर देगा ।
घटाने के कारण
उस हलके की अन्य जायदादों की अपेक्षा लगान कठिनाई से और अनियमित रूप से वसूल होता है।
(२) इन्तिज़ामी खर्च ज्यादा पड़ता है । जायदाद अपेक्षतः घटिया है ।
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