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न् १४५७ ई० में सरदार श्रोता दोकान् ने समुद्र के पास सुमिदा नदी के कछार में अपने लिए एक गढ़ी बनाई, जिसका नाम येदो पड़ा । १५६० ई० (अगस्त) में तोकुगावा इयेयसु का यह प्रान्त जागीर में मिला और उसने येदो में अपना केन्द्र स्थापित किया । १६०३ ई० में इयेयसु ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को हटाकर अपने तोकुगावा - वंश के शोगुनन्न की स्थापना की; जिसके कारण येदो जापान के वास्तविक शासन का केन्द्र हो गया । १६६७ ई० में यद्यपि तोकुगावा वंश ने शोगुन का पद त्याग दिया; और सन्देह होने लगा था कि येदो फिर कहीं पुरानी झीलों और झाड़ियों के रूप में परिणत न हो जाय । किन्तु सम्राट् मेइजी (१८६८-१६१२) ने शासन की बागडोर सँभालते ही क्योंतो से राजधानी हटाकर येदो लाने की घोषणा की, और तभी येदो का नाम बदल कर तोक्यो रक्खा गया ।
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तोक्यो
[ तोक्यो - शिनोबाजू सरोवर
शोगुन की राजधानी होते समय भी तोक्यो (येदो) की जन-संख्या दस लाख थी, और मिकादो की राजधानी होने पर तो जापान के वैभव की वृद्धि के साथ साथ तोक्यो की भी श्रीवृद्धि होती गई । और आज तोक्यो की जन-संख्या ५४ लाख ३२ हजार है, अर्थात् लन्दन (८२ लाख), न्यूयार्क (६६ लाख ३० हज़ार) के बाद तीसरा नम्बर तोक्यो का ही है । १६२३ ई० के भयानक भूकम्प ने न सिर्फ़ एक लाख की प्राण- बलि ही ली, बल्कि उसके साथी आग ने भी आधे शहर को जलाकर राख कर दिया । उस वक्त सोचा जा रहा था कि तोक्यो फिर से आबाद किया जाय या शहर दूसरी जगह ले जाकर बसाया जाय । किन्तु भूकंप के दूसरे सप्ताह के बीतते बीतते (१२ सितम्बर को) सरकार ने पुनः निर्माण की घोषणा निकाल दी, पचासी करोड़ येन (उस समय प्रायः एक अरब तेरह करोड़ रुपये) लगा कर सात वर्ष में पुनर्निर्माण-कार्य का प्रोग्राम बना, और १६३० ई० में तोक्यो फिर तैयार हो गया। नया तोक्यो पहले से भी सुन्दर, स्वास्थ्यप्रद बनाया गया। भूकम्प के ध्वंस से लाभ उठाकर तंग गलियों की
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