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सरस्वती
[ तोक्यो - उपेने स्टेशन]
उनका शरीर रक्खा हुआ है । उनकी असली समाधि तो क्योतो के पास है । किन्तु जापानी जाति के लिए उनका सम्राट् देवता है, इसी लिए उसके प्रति श्रद्धा दिखलाने के लिए स्थान स्थान पर पूजा-स्थान या देवालय बने हुए हैं । इस स्थान को मेइजी जिनशा कहते हैं। यदि आपके पाँच साथी हों, और पाँच-छः मील शहर में चलना हो, तो जापानी टेक्सी का इस्तेमाल न करना बुद्धिमानी का काम न होगा । ५ आदमी के लिए टेक्सीवाला ५० सेन् (सवा पाँच आने) लेगा, अर्थात् आदमी पीछे सिर्फ़ ५ पैसे। भारत में एक्का भी तो इतना सस्ता न मिलेगा, और न ट्राम ही। और टेक्सी के बारे में क्या पूछना है ? बाहर से उसका सारा शरीर वार्निश से चमाचम कर रहा है। मालूम होता है, आज ही कारखाने से बाहर निकली है । और भीतर मुलायम मखमली गद्दी भी वैसी ही साफ़ और नई । हमारे यहाँ के ड्राइवर नई गाड़ी का भी एक महीने में चौपट करके रख देते हैं, क्योंकि उनका खयाल है कि गाड़ी चलाना भर उनका कर्त्तव्य है । किन्तु जापान में जहाँ ५-१० मिनट के लिए भी गाड़ी खड़ी हुई कि ड्राइवर पाँख के झाड़ू से गाड़ी के भीतरबाहर झाड़ डालता है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
[ भाग ३६
मेइजी-देवालय एक विशाल उद्यान के बीच में अवस्थित है। उद्यान
का क्षेत्रफल १२० एकड़ है, और सारी इमारतों
के निर्माण में ८५ लाख
येन् लगे हैं, जो सभी
प्रायः जनता ने स्वेच्छा
पूर्वक दिया है। एक
खास हद तक जाकर मोटर रुक जाते हैं।
वहाँ सामने सीधा-सादा किन्तु विशाल द्वारतोरण
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है । रोड़े पड़े विशाल मार्ग से बाग़ के भीतर चलिए, फिर कुछ दूर बाद बाई और घूमिए । कुछ दूर पर फिर वैसा ही द्वारतोरण मिलता है । चलते वक्त यदि साथियों की भीड़ और नीचे के रास्ते को श्राप भूल जायँगे तो जान पड़ेगा, किसी बीहड़ जंगल में आगये हैं । आखिरी तोरण के भीतर जाने पर बहते पानी का हौज़ है, जिसमें लकड़ी के दोने पानी निकाल कर हाथ धोने के लिए रक्खे हुए हैं। किसी भी देवालय में प्रविष्ट होने से पूर्व हाथ-मुँह धो लेना जापानी सदाचार है। यहाँ सम्राट् मेइजी के देवालय में भी उसका पालन करना आवश्यक है। यह बात तो वहाँ हज़ारों श्रादमियों को वैसा करते देखकर आप ही स्पष्ट हो जाती है। आँगन से आगे बढ़कर एक छोटी ड्योढ़ी है, जिसके सामने धान के पुनाल की रस्सी लटक रही है । बीच के दरवाज़े की सीध में देखने से एक आँगन दिखलाई पड़ेगा, जिसके परली और एक और मकान है । उसी मकान में सम्राट् मेइजी की आत्मा का निवास है । आप देखेंगे, हर एक जापानी टोपी उतारकर बड़ी भक्ति से प्रणाम कर रहा है। यदि आपके भीतर वैसा धार्मिक भाव न हो, तो भी अपने मेहमान की सहानुभूति के लिए आपके अपनी टोपी उतार लेने में कोई उज्र नहीं होना चाहिए।
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