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सरस्वती
[ भाग ३६
सैकड़ों ऐसी वस्तुएँ थीं जो कांग्रेस के उन कड़े अपने तजरुबे पर लिखा था और मैं उसे फिर से नियमों में नहीं आ सकतीं। गत वर्ष कुछ इन्तिजामी दोहराता हूँ, इस वास्ते नहीं कि कोई शिकायत है, कारणों से इलाहाबाद-स्वदेशी लीग ने मिल का परन्तु इस वास्ते कि वैसा आगे न हो। कपड़ा अपने मेले में नहीं आने दिया था। उसमें खादी के प्रचार में जो कठिनाइयाँ हैं उनका मुझे मिल के बने फीते भी नहीं आने दिये गये थे। पर भी थोड़ा अनुभव है। मैं कोई विशेष कार्यकर्ताओं कांग्रेस ने उन्हें अपनी प्रदर्शनी में रक्खा था और में नहीं हूँ, इसका मुझे दुख है, तो भी गत पाँच-छ: बेचने की आज्ञा दी थी। दूसरी दूकान पर जो वर्ष से इलाहाबाद-चरखा-प्रचारक-मंडल से मेरा शायद किसी जूटवाले ते किराये पर ली थी, मिल थोड़ा-सा सम्बन्ध रहा है और इलाहाबाद-स्वदेशी की बनी साड़ियाँ बिक रही थीं। इन बातों की ओर लीग के प्रति थोड़ा ध्यान देने से मुझे उसका संचालकों का ध्यान आकृष्ट किया गया, जिस पर भी कुछ हाल मालूम होता रहा है। कई वर्ष की बात एक सजन ने कहा कि जो होना था हो गया। है, उस मंडल ने खादी के पचासों थान और टुकड़े ऐसी ही त्रुटियाँ और प्रदर्शनियों में भी हुई। पर मैं अपनी निगरानी में इलाहाबाद के आस-पास के यहाँ उन पर कुछ न लिलूंगा। मेरी राय यह है कि गाँवों में बनवाये थे और नीयत बाज़ार में बेचने की इस तरह की भूलें असत्व बात को हानि पहुँचाती हैं, थी, किन्तु उसके पास कोई बेचने का ज़रिया न लोग खुले-खजाने कहते हैं कि यह पैसा पैदा करने था । बहुत दिनों तक लीग के सेक्रेटरी खादी-भंडार का खाली ढोंग है। फायदे के बदले वे स्वदेशी के से उन्हें बेचने को कहते रहे, पर वह राजी न हुआ। काम में बाधा डालती हैं। यह सच है कि किसी मैंने भी सिफारिश की, फिर भी उसको राजी न कर खास संस्था को उससे नुकसान नहीं पहुँचता (सिवा पाया। मैंने खुद कहा कि वे सार्टिफिकेट दे दें तो बदनामी के), परन्तु उस काम को जिसे सभी 'देशी कारबार' के द्वारा ही बिकवा दूँ, मगर वह संस्थाओं की चलाने की नीयत होती है, बड़ा धक्का कुछ संतोषजनक उत्तर न दे सका। पुरानी बात लगता है । और बदनामी भी कैसी ! कुछ कांग्रेस- है, इससे तफ़सीलवार याद नहीं रही। डेढ़ या दो कमेटी कांग्रेस के नियमों के विरुद्ध काम करे तो वह वर्ष बाद मजूमदार बाबू ने कुछ लिखा-पढ़ी करके देवताओं और महात्माओं को भले ही समझा यह इजाजत मॅगा ली कि 'भंडार' बाजारू दामों पर सके, परन्तु सर्वसाधारण अपनी कांग्रेस-भक्ति का उस माल को ले ले। तब कुछ माल खादी-भंडार ने सबूत नहीं दे सकती। वे तो कहेंगे ही कि ये लोग ले लिया और बाक़ी आहिस्ता-आहिस्ता लीग के कहते कुछ हैं, करते कुछ हैं।
कामों में खर्च किया गया और अभी तक कुछ बाकी __मुझे यह मालूम है कि चरखा-संघ में बहुत-से ऐसे पड़ा है। चरखा-मंडल के पास अगर अनगिनत सजन पुरुष सम्मिलित हैं जिन्होंने अपने व्यक्तित्व रुपया होता तो कोई रोने की जगह न थी। उसे इस को उसमें मिला दिया है। इसमें शक नहीं कि उन्होंने किस्म की बाधा पड़ने से कपड़ा बनाने का काम बन्द लाखों कतैयों और बुनकरों को काम दिया और दे करना पड़ा और पचासों कातनेवाली स्त्रियों ने रहे हैं और अगर जनता की सहायता रही तो वे सूत न बिकने से चरखे उठा दिये। मेरे पास यह करोड़ों को दे सकेंगे। मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता रिपोर्ट है। अगर कोई सज्जन उन बेकार चरखों को हूँ कि वे इस शुभ काम में सफल हों। मुझे यह भी देखना चाहे तो अब भी शायद चरखा-मंडल के मालूम हो गया कि उन्होंने बहुत-से भंडार खुलवा असली कार्यकर्ता दिखा सकेंगे। मैं फिर यह दोहराता दिये हैं। मगर जो कुछ मैंने पारसाल लिखा था वह हूँ कि मुझे कोई शिकायत नहीं, मगर मेरा यह
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