________________
संख्या ४]
स्वदेशी में अड़चन
कहना कि इस किस्म की बातें स्वदेशी के काम में बाधा डालती हैं, ग़लत नहीं है ।
यह कौन नहीं जानता कि खादी महँगी है और जो लोग पैसा नहीं खर्च कर सकते या जिन्हें वह चुभती है, मिल का ही कपड़ा लेंगे। मगर मिल का कपड़ा फ़ैशन में दाखिल है, यह मानना जरा मुश्किल है । मैंने पहले भी कहा है कि सबको महात्मा नहीं बना सकते । चरखा-संघों की भी यह नीयत नहीं है, क्योंकि वे रेशम को खादी रेशम के नाम पर बेचते हैं, मगर जब उन रेशम पहननेवाले या पहनने वालियों को फैशनेबल बनना होता है तब सफेद मोटी खादी ही पहने दिखाई देती हैं। विदेशी कपड़ा सस्ता है। देशी मिलों का उनसे महँगा है। जब आप देशी और विदेशी मिलों को एक ही हालत में रक्खेंगे तब जो लोग मिल का कपड़ा लेते हैं व विदेशी क्यों न लें ? इस वक्त कम-से-कम वे शरमा शरमी में देशी मिल का तो ले लेते हैं। अगर मुझे पूरा अधिकार होता तो मैं क़ानून द्वारा मिलों को बन्द कर देता, मगर उस वक्त तक नहीं जब तक मैं विदेशी कपड़ों का आना न रोक सकता । वर्तमान हालत में देशी मिलों को बिरादरी से खारिज करना स्वदेशी के रास्ते में बहुत बड़ी बाधा है ।
लोग खादी के भक्त हैं और जिन्होंने शायद उसके पीछे अपनी हस्ती को मिटा दिया है वे खुद ही
में बाज़ वक्त उसकी बिक्री में अड़चन डाल देते हैं | वह कैसे ? कुछ दिनों से उन्होंने यह नियम निकाला है कि जिस स्वदेशी मेले में मिल का कपड़ा
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
३१७
बिकेगा वहाँ खादी नहीं बेचेंगे। यह अगर पराई बदशुगूनी पर अपनी नाक कटाना नहीं तो और, क्या है ? मुझे इलाहाबाद के मेले का थोड़ा-सा अनुभव है। मैंने वहाँ पिछले चार साल से यह देखा है कि कुछ खादी के भक्त [स्त्री और पुरुष, जो बहुधा बाहर भी खादी भंडार को खादी बिकवाने में सहायता दिया करते हैं] उसकी दूकान पर घंटों खड़े रहकर हजारों का उसका सौदा करा देते हैं और ऐसे लोगों के हाथ जो यों खादी के पास भी नहीं फटकते । खादी भंडार के उस मुक़ाबिले के क्षेत्र से निकल भागने से उतनी भी खादी जो वहाँ बिक सकती है, नहीं बिकेगी और उसके जिम्मेदार वही मज्जन होंगे जिन्हें वह अपने व्यक्तित्व से भी अधिक प्यारी है। खादी न पहननेवालों को दोषी ठहराना या मिल का कपड़ा पहननेवालों को बुरा-भला या देशद्रोही तक कह देना उस आर्थिक हानि को, जो रूठकर बैठ जाने से खादी को होगी, पूरा नहीं कर सकता । जब कोई उद्योग या व्यवसाय मुक़ाबिले पर आने से इनकार करेगा तब वह उसी वक्त सफल हो सकेगा जब उसके भक्तों के पीछे वाक़त होगी। इस वक्त उनके पास इतनी सी तो ताक़त है नहीं कि वे दूसरों को अपने तरफ से इक़रारनामे करने से रोक सकें, फिर खाली रूठने से वे अपने तई और नुक्सान पहुँचायेंगे । जो बात आज चरखा-संघ कर रहा है वह ही कल विलेज इंडस्ट्रीज एसोसियेशन करेगा । मैं तो इसे स्वदेशी के प्रचार में बाधा ही समझँगा ।
www.umaragyanbhandar.com