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संख्या ४]
मल्लियों से सिकंदर का मुकाबिला
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और ल्योनाटस के संरक्षण में अपनी ढाल पर पड़ा चीर-फाड़ में बादशाह के शरीर का रहा-सहा रक्त हुआ मृत्यु का मार्ग देख रहा था। उसकी यह अवस्था भी निकल गया और वह फिर बेहोश हो गया। कहना देखकर सैनिक मन-ही-मन रोने लगे। कोई चिकित्सक न होगा कि नदी के तट में स्थित यूनानी पड़ाव से साथ में न होने के कारण बादशाह की चिकित्सा राजवैद्य बुलाया गया और उसकी यूनानी हिकमत की व्यवस्था तुरन्त नहीं हो सकती थी। इसी बीच से सिकंदर चलने-फिरने लगा। में सिकंदर एक बार चैतन्य हुआ और अपने को सिकंदर की चढ़ाई ने तत्कालीन भारतीयों के यूनानी सेना से घिरा हुआ पाकर कराहते हुए क्षीण मन में जो प्रभाव उपस्थित कर दिया था, लगभग स्वर में बोला-असह्य पीड़ा है। जितनी जल्दी हो वैसा ही प्रभाव मुट्ठी भर मल्लियों ने सिकंदर के सके मेरी छाती से तीर निकाला जाय। तब पर- हृदयपटल पर अङ्कित कर दिया था। कहते हैं कि डिकास ने अपनी तलवार से घाव को चीर कर जब कभी बादशाह को उसका स्मरण हो आता था बादशाह की छाती से तीर को अलग किया। इस तब उसका दिल दहल जाता था।
भ्रमरी
लेखक, श्रीयुत दिनकर पी मेरी भ्रमरी, वसन्त में अन्तर-मधु जी भर पी ले, कुछ तो कवि की व्यथा सफल हो, जनू निरन्तर, तू जी ले । चूस चूस मकरन्द हृदय का संगिनि ! तू मधु-चक्र सजा, और किसे इतिहास कहेंगे ये लोचन गीले गीले !
अर्पण किया चरण पर तेरे माँग माँग जो कुछ लाया, फूल मिले तो हार बनाया, चोट लगी, छाले छीले । लते ! कहँ क्या सखी डालों पर क्यों कोयल बोल रही !
बतलाऊँ क्या अोस यहाँ क्यों ? क्यों मेरे पल्लव पीले ? पूछ न प्रिये, अर्थ आँसू के, जिसने 'अदन बारा' छीना, बन निशीथ का पवन सिसकता फिरता याद उसी की ले । किसे कहूँ, धर धीर सुनेगा दीवाने की कौन व्यथा ? मेरी कड़ियाँ कसी हुई, बाक़ी सबके बन्धन ढीले ।
मुझे रखा अज्ञेय अभी तक विश्व मुझे अज्ञेय रहा, सिन्धु यहाँ गम्भीर, अगम सखि ! पन्थ यहाँ ऊँचे-टीले । पी मेरी भ्रमरी, वसन्त में अन्तर-मधु जी भर पी ले, कुछ तो कवि की व्यथा सफल हो, जलूँ निरन्तर, तू जी ले ।
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