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सरस्वती
[भाग ३६
निजी मोटर या मोटर साइकिलों का अत्यन्त अभाव । साइकिल शायद दस हज़ार में एक के पास हो। साधारण भोजनालय गंदे तथा गंदे आदमियों से भरे । जहाँ-तहाँ डबल रोटी हाथ में लिये तथा उसे खाते जाते भिखारियों की तरह जन-समूह देखकर तबीयत भिन्ना उठी। मुझे दुनिया भर के प्रायः सभी शहरों को देखने का मौका प्राप्त हुआ है। लेकिन शंघाई के बाद यह दूसरा मौका था, जब तबीयत इस तरह से खिन्न हो गई।
स्टेट का क़ब्ज़ा-सारी सम्पदा और मकान आदि स्टेट के हैं। स्त्री-पुरुष सभी को काम करना पड़ता है। काम की हैसियत से तनख्वाह मिलती है। कम तनख्वाहवाले को रहने के स्थान का कम किराया और उसी स्थान का ज़्यादा तनख्वाह देनेवाले को अधिक किराया देना पड़ता है। रूस में मैंने सम्पत्ति के विश्लेषण को और अधिक अच्छे रूप में देखने की आशा की थी, लेकिन मुझे निराश होना पड़ा। मेरे साथ एक अमेरिकन सैलानी थे, जो सिर्फ रूस का सम्पत्ति का विभाजन देखने के लिए
आये थे। प्रारम्भिक दृश्यों ने ही उन्हें विचलित कर दिया। उन्होंने कहा कि जिस देश में प्रतिस्पर्धा के लिए कोई स्थान नहीं है, वहाँ शान्ति कैसे हो
सकती है। [अंगरा की एक सहायक नदी]
व्यक्तिगत उन्नति-रूस में व्यक्तिगत उन्नति आदमी
पढ़कर ही कर सकता है और थोड़ी-सी आर्थिक दशा सुधार प्रकाशित हुआ करती हैं। किसी में वह स्वर्ग चित्रित किया सकता है। सोवियट के कायदे लोगों को घोल घोलकर जाता है और किसी में नरक । मुझे वहाँ तक ही दिलचस्पी पिलाये जाते हैं। लेकिन व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के अभाव है, जहाँ तक कि उसकी आर्थिक दशा के प्रभाव की बात के कारण आदमी निश्चेष्ट-सा हो जाता है। एक वाक्य है । अतएव मैंने अपने अनुभवों को इसी धरातल से लिखा में रूस के लोगों को काम से प्रेम नहीं, तनख्वाह से है। भारत में बम्बई, कलकत्ता और कानपुर इत्यादि मतलब। रूस को स्वर्ग की उपमा तक देने के हाल औद्योगिक शहरों में जिस तरह का वातावरण मिलता है, हम पढ़ा करते हैं, लेकिन ये सब अतिशयोक्तियाँ हैं। वह यहाँ मौजूद था। सारा शहर श्रमजीवियों से भरा बोलशेविज़्म के सिद्धान्तों का यह सबसे बड़ा व्यावहारिक था। यह कोई बुराई की बात नहीं थी। लेकिन कपड़े- प्रयोग है। इस कारण उस पर कोई रायज़नी फ़िलहाल तो लत्ते भद्दे, हँसी मज़ाक का अभाव और चेहरे पर विकट की ही नहीं जा सकती। जो मैंने कुछ प्रत्यक्ष देखा वही संघर्ष की छाप । विशाल अमेरिकन स्टाइल के भवन, मैंने लिखा है । लेकिन इतना अवश्य है कि व्यक्तिगत लेकिन निर्जीव । दूकानों पर सजावट का अभाव । ट्राम व प्रतिस्पर्धा के अभाव में लोगों की तबीयते मुर्भाई नज़र गाड़ियाँ भेड़ों और बकरियों की तरह खचाखच भरी। आई। दुनिया जिस तरह के वातावरण में चल रही
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