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ब्रूसेल्स से हार्बिन
संख्या ४ ]
है उसके अनुसार सोवियट में योग्यता की कोई तुला धन या सम्पत्ति के रूप में न होने से खटकती है।
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मारको से रवाना - ट्रान्स सैबेरियन स्पेशल ढाई बजे खुलने को थी, लेकिन खुली ३ बजे । श्रीगणेश ही बुरा हुआ, क्योंकि ज्यों ज्यों गाड़ी आगे बढ़ती गई, त्यों त्यां लेट होती गई और सीमा के अन्तिम स्टेशन मंचूलीस्टेशन पहुँचने तक वह पूरे दस घंटे लेट हो गई ।
सारी ट्रेन में अधिकांश लोग रूसी थे । भारतीय मैं ही अकेला था। तीन जर्मन और कुछ जापानी थे। इतने बड़े लम्बे सफ़र में लोगों को सोने की खूब सूझती थी । मेरे पड़ोस के डिब्बे में दो जापानी थे, जो दो बजे सिर्फ़ भोजन के लिए जागते थे और फिर सो जाते थे । सवेरे दस बजे उठना तो ट्रेन में मामूली बात थी ।
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सुबह से
११॥
मास्को
गाड़ी पर तीन बार भोजन मिलता था। ११ बजे तक लंच, दो से पाँच तक डिनर और ७ बजे रात तक सपर। यह लिखित टाईम था । से जब मैं ट्रेन में बैठा था तब चार बजे भोजन पाने की 'उम्मीद में भोजनालय पहुँचा था । भूख भी बड़ी कड़ाके की लगी थी, लेकिन पाँच बजे तक किसी ने कुछ पूछा ही नहीं । यही हाल हर वक्त रहा। लिखित समय से एक घंटा बाद ही भोजन नसीब होता था ।
तीन-चार घंटे के बाद गाड़ी खड़ी होती थी और तब पैर पसारने को ज़रा-सा अवकाश मिलता था और ज़मीन पर टहल लेने का मौक़ा मिलता था। स्टेशन अधिक भव्य तो नहीं, लेकिन अच्छे ही थे । जुलाई के महीने में सैबेरिया में वसन्त-काल होता है । जहाँ तक हमारी आँखें पहुँचती थीं, वहाँ तक हरे-भरे दृश्य नज़र आ रहे थे । इस प्रान्त में भेड़ों गायों के चराने का अधिक व्यवसाय है । इस प्रदेश में अब सोवियट की कृपा से लोग स्थिर होकर रहने लगे हैं, अन्यथा पहले भेड़े और घोड़े चराकर लोग घुमक्कड़ी वृत्ति के ही सहारे रहा करते थे । लेकिन अब यह प्रदेश 'धूम के साथ आबाद हो रहा है। रेलवे का जाल बिछा दिया गया है और जगह जगह फ़ैक्टरियाँ और कल-कारखाने जारी किये जा रहे हैं, जिनमें नाना प्रकार के व्यवसाय चलाये जा रहे हैं। जब से पूर्व में
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[ शिल्का नदी ]
जापान ने मंचूरिया को हड़प लिया है तब से इस प्रदेश की और सोवियट सरकार का ध्यान अधिक गया है और यहाँ फ़ौजी सिपाहियों का भी अड्डा बनाया जा रहा है । रेलवे की डबल लाइनों का भी इन्तिज़ाम होने की खबर है । सोवियट सरकार की स्कीम के अनुसार रेलवे लाइन के दोनों ओर लोग बसाये जा रहे हैं और उन्हें सम्पन्न बनाने की कोशिशें जारी हैं। फिर भी ५० लाख वर्गमील के प्रदेश को एकदम आबाद कर देना कोई हँसी-खेल की बात तो नहीं है ।
जंगलों के बीच - ट्रेन चीड़, देवदार आदि के मनोरम जंगलों में से गुज़री। रंग-बिरंगे फूलों का ऐसा सुन्दर दृश्य मैंने कहीं नहीं देखा था । अभी तक दुनिया को यही पता
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