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सामयिक साहित्य
आप अपने लिए पाप अथवा अनुचित समझते हैं वह दूसरों के लिए अपाप और उचित कैसे हो गया । पर उस समय आपने मेरी रुग्णावस्था के कारण इस सम्बन्ध में कुछ न लिखना ही उचित समझा। अब सामयिक परिस्थिति और कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक के कारण यह प्रश्न श्रावश्यक और प्रयोजनीय हो गया है । इसलिए यह पत्र मैं फिर आपकी सेवा में भेज रहा हूँ और इसकी प्रतिलिपि साथ ही अखबारों में छपने के लिए भी भेज रहा हूँ । आशा है, आप मेरी इस धृष्टता को क्षमा करेंगे ।
महात्मा गांधी और श्री शिवप्रसाद गुप्त का
पत्र-व्यवहार
ग्रेस की वर्तमान नीति के
14 सम्बन्ध में हाल में ही बाबू शिवप्रसाद गुप्त
महात्मा गांधी में एक महत्त्वपूर्ण पत्रव्यवहार हुआ है । वे पत्र 'आज' में प्रकाशित हो चुके हैं।
उनमें से आरम्भ के दो पत्र हम यहाँ उद्धृत करते हैं । गुप्त जी का पत्र -
कां
पूज्य बापू जी -- चरणों में सादर प्रणाम ।
मैं अपनी रुग्णावस्था के कारण बाहर-भीतर आनेजाने में समर्थ अवश्य ही हूँ, पर जिस तरह की धाँधली आजकल कांग्रेस में हो रही है वह भी देखी और सही नहीं जाती । मेरी समझ में तो यही नहीं आ रहा है कि इस समय जो नीति कांग्रेस में बरती जा रही है वह आपकी है अथवा नहीं, या यों समझिए कि आप उससे सहमत हैं या नहीं, क्योंकि यदि आप कांग्रेस के मामले में इस समय तटस्थ हैं तो घड़ी घड़ी कार्यकारिणी यानी वर्किंग कमेटी जहाँ कहीं आप रहते हैं वहीं क्यों बुलाई जाती है । यदि समिति के सदस्यों को बाहर रहकर परामर्श देने में और उनके निर्णयों में सहायक होने में कोई हानि नहीं समझते तो उसके बाहर रहने की क्या आवश्यकता है और उसमें श्राप शामिल ही क्यों नहीं हो जाते ?
आपका कदाचित् स्मरण होगा कि कुछ दिन हुए मैंने आपकी सेवा में कौंसिल प्रवेश के सम्बन्ध में एक पत्र द्वारा यह पूछने का साहस किया था कि जिस चीज़ को
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Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
सेवा - उपवन, काशी
१४ श्रावण १६६२
महात्मा जी का उत्तर
विनीत
शिवप्रसाद
भाई शिवप्रसाद,
तुम्हारा खत मिला है । रुग्णावस्था में भी तुमने कब मुझको भूला है ? कांग्रेस में से मेरे निकलने के बाद कार्यवाहक समिति इसी बखत पहली आई; लेकिन यहाँ आवे या न आवे इससे क्या ? तुम्हारा प्रश्न तो यह है। कि कांग्रेस में से निकल जाने के बाद उसमें मैं क्यों रस लेता हूँ, क्यों किसी को कुछ सलाह देता हूँ ? तुमको मालूम नहीं होगा कि निकलते समय मैंने कह दिया था कि यदि किसी बारे में मेरा अभिप्राय पूछा जायगा तो मैं अवश्य दूँगा । कांग्रेस में अधिकार रखना और मौका आने से किसी कांग्रेसवालों को सलाह देना इन दो वस्तु में मैं तो बड़ा भेद पाता हूँ । यहाँ समिति रही, मैंने कभी उसमें हिस्सा नहीं लिया। अभी भी उसकी सब कार्रवाई का मुझे पता नहीं है। लेकिन जब किसी सदस्य की इच्छा होती थी तब मुझे वे पूछ जाते थे । इसमें मैं कुछ भी अयोग्यता नहीं पाता । कांग्रेस के हित के कारण मैं बाहर
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