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संख्या २]
साहित्य में सङ्केतवाद
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वार्य कर दिया और आज उसका स्वरूप पूर्ण प्रत्यक्ष हो देश है और अठारहवीं शताब्दी क्रान्ति का युग मानी गई गया है।
है। सङ्केतवाद भी उसी युग के क्रान्ति-जनित फ्रेंच___ शारीरिक एवं जड़ सौन्दर्य की आवश्यकताओं की साहित्य का स्वरूप है। फ्रेंच में उसने रोमेंटिक, पूर्ति मानस में आध्यात्मिक सौन्दर्य की प्यास उत्पन्न कलात्मक एवं सौन्दर्य-सम्बन्धिनी पूर्णता प्राप्त की और करती है और फिर शृङ्गार के नख-शिख-वर्णन एवं जर्मन में उसे आध्यात्मिक एवं जीवित सत्य की नायक-नायिका-भेद आकर्षण-विहीन और अचेतन बन नवीन शक्ति मिली। तदुपरान्त सङ्केतवाद की प्रतिष्ठा जाते हैं। उस समय आत्मा के सौन्दर्य-काव्य का निर्माण बढ़ती गई और रहस्यवाद, छायावाद, मायावाद, प्रतिहोता है और नर-हृदय विभूति-सृष्टि में निमग्न हो जाता बिम्बवाद आदि उसकी अनेकानेक शाखाओं-प्रशाखाओं है। उस काल का साहित्य अात्मा की अनुभूति-द्वारा के कलित कुञ्जों की छाया से संसार का साहित्य-उद्यान प्रदत्त अप्रत्यक्ष अनुसन्धान का वर्णन करता है । अात्मा आच्छादित हो गया । सच पूछिए तो सङ्केतवाद आधुनिक अप्रत्यक्ष है और सृजनहार सत्य भी अप्रत्यक्ष है। हम युग के साहित्य के श्रेष्ठतम अङ्ग का नाम है। बंगाल के अप्रत्यक्ष की ओर केवल सङ्केत कर सकते हैं । उसे सङ्केतों रवीन्द्रनाथ, यूनाइटेड किंगडम के यीट्स, इटली के जेब्राके आरोप से ही व्यक्त कर सकते हैं। उसके प्रतिबिम्ब को इल (Gabriele d' Annunzio), पुर्तगाल के यूगेन देख सकते हैं, उसकी वाणी की प्रतिध्वनि सुन सकते (Eugenio de Castro), स्पेन के केम्पोमर (Campoaहै; किन्तु उसकी वास्तविकता को नहीं पा सकते हैं। mor) वर्तमान विश्व के सर्वोत्कृष्ट कवि सङ्केतवादी ही सङ्केतवादी कवि अपने हृदय की तीव्र भावनायें अप्रत्यक्ष हैं। श्रेष्ठ साहित्य ही नहीं, साधारण कृतियों का सौन्दर्य के क्रीड़ा-क्षेत्र में विहरित करता है और अपने चिन्तनशील भी श्राज सङ्केतवाद की व्यापकता का परिणाम बन गया रसात्मक मानस में अव्यक्त सत्य को सत्य के रूप में है। संसार में ऐसा कोई साहित्य नहीं जिसमें इस नवीन देखने लगता है। उसे फिर नायिका के जड़ अाकर्षण धारा के उन्नत-पथ-गामी स्वरूप की अभिव्यक्ति न हुई में शान्ति नहीं मिलती। सारा संसार विभूतिमय हो जाता हो । हिन्दी में सङ्केत की स्पष्ट व्यंजना जायसी ने की और है । रूप और रंग की विभिन्नता नष्ट हो जाती है और उसे सुव्यवस्थित रूप कबीर ने दिया, किन्तु राज-वैभव के विमल एवं चेतन अात्माओं का दिव्य संगीत मुखरित प्रासाद-कारागारों ने अनेक शताब्दियों तक साहित्य-संसार होने लगता है। सत्य की छाया ही विभूति-तादात्म्य से के इस उज्ज्वल एवं मौलिक स्वरूप को बन्दी कर दिया। सत्य हो जाती है और यही सत्य-शक्ति उसकी कविता को आज पुनः वह काव्य देश और काल की गति पाकर अमरत्व प्रदान करती है । आत्मा का विकास और सौन्दर्य प्रस्फुटित हुआ है। ही उसकी अनुभूति और काव्य के विषय होते हैं।
मूल सङ्केतवाद यद्यपि अनादि और अनन्त है, तथापि ___ वर्तमान संसार जड़ एवं निर्जीव वैज्ञानिक शक्तियों- उसका स्पष्ट स्वरूप क्रमागत सोपानों पर चढ़कर श्राता द्वारा शिथिल हो गया है । इन्द्रियों की तृप्त पिपासा जल है। आधुनिक सङ्केतवाद की झलक हमें कल्पनावादी चुकी है और जीवन की सुधा अात्मा में उतर रही है। साहित्य (Romanticism) में मिलती है। वास्तव में यही कारण है कि सङ्केतवाद वर्तमान जीवन का साहित्य अनुभूति-प्रदत्त कल्पना-साहित्य ही उसका श्राधार है। बन गया है। आज प्रत्यक्ष-सृष्टि अलीक प्रतीत हो रही वह सङ्केतवाद को स्वरूप-दृढ़ता और स्थिरता प्रदान करता है और अप्रत्यक्ष लोक-सम्बन्धिनी भावना का स्वप्न-स्वरूप है। इस प्रकार सङ्केतवाद रोमेण्टिसिज़म की एक शाखा नष्ट होकर प्रत्यक्ष हो गया है।
का नाम है। रोमेण्टि सिज़्म कल्पना-प्रदत्त मूर्तिमत्ता के अाधुनिक काल में सङ्केतवाद प्रत्यक्ष रूप में सबसे स्वाभाविक सौन्दर्य का नाम है । यह रूढ़ि-बन्धन पहले फ्रेंच साहित्य में व्यक्त हुआ। फ्रांस क्रान्ति का एवं जड़ता से परे आत्मानुभूति की अभिव्यक्ति है।
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