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सरस्वती
[भाग ३६
बड़ी सतर्कता एवं चातुरी से सुरक्षित स्थानों से निकलती है कि मार्गभूला हुआ पथिक उसे झोपड़ी शिकार उठा ले जाना उसके बायें हाथ का खेल है। के रन्ध्रों से निकलनेवाली रोशनी समझ कर कभी चीता चौर-कर्म में व्याघ्र से भी अधिक निपुण होता कभी आपत्ति में फंस जाता है। भेड़िये में असाहै। वह रात्रि में भूमि और वृक्ष दोनों पर समान धारण धूर्तता होती है, जो रजनी के अँधेरे राज्य में गति से भ्रमण करता है। वनमानुष तथा अन्य ही चल सकती है। रात के समय वह तेज़ से तेज़ वृक्षचर जीव-जन्तु उससे सदा सशङ्कित रहते हैं। भागनेवाले जीवधारी को भी इस सिफ़त से पकड़ उनकी गोद से सोते हुए बच्चों को वह इस खूबी से लेता है कि बेचारा जानवर अपनी चौकड़ी भूल छुड़ा ले जाता है कि किसी को खबर तक नहीं जाता है। ऐसे जानवर का पीछा वह बड़ी होशिलगती। इसी से वनमानुप रात भर वृक्ष के नीचे यारी से करता है और उसे थकाकर खदेड़ते हुए बैठकर वृक्ष-शिखर पर सोनेवाले अपने बच्चों की उस ओर ले जाता है जहाँ उसकी पत्नी पति को चौकसी करता है।
सहायता देने के निमित्त पहले से सजग बैठी रहती हमारे गृह-साम्राज्य की प्रजाओं में भी अधि- है। यदि शिकार में तेजी बाक़ी रही और वह मादा कांश निशाचर हैं। यद्यपि वे हजारों वर्ष से हमारे भेड़िये को झटका देकर भाग निकला तो मादा साथ रह रहे हैं, तो भी रात्रि में शिकार करने की उसका पीछा करती है और उसे घुमा-फिरा कर वहाँ उनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति परिवर्तित नहीं हुई है। ले जाती है जहाँ उसका पति घात लगाये बैठा बड़ी-छोटी हर किस्म की बिल्लियाँ रात में ही शिकार रहता है। करती हैं। संसार भर के कुत्ते चाहे वे जङ्गली हों चमगादड़ जैसा अद्भुत स्तनपायी प्राणी है, वैसा या पालतू , दिन की अपेक्षा रात्रि में ही सजग और ही अनुपम निशाचर भी है। शाकभोजी और प्रफुल्ल रहते हैं। हर आकार-प्रकार के चूहे चिराग़ मांसभक्षी दोनों तरह के चमगादड़ घने से घने तम गुल होने के बाद ही मनुष्य की पगड़ी ग़ायब करने एवं मन्द प्रकाश में बड़ी तेजी से भ्रमण करते हैं। में तल्लीन होते हैं । झिङ्गरों का आमोद-प्रमोद और ऐसा कभी नहीं होता कि अन्धकार की घनता तथा झिल्लियों की झनकार अँधेरे में ही देखने-सुनने को कुहरा से वे उलूक के समान उल्लू बन जायें । वे मिलती है । साँप-बिच्छू तथा ऐसे ही अन्य विपैले बहुधा सूरज डूबने के समय निकलते हैं और रात जीवधारी रात के समय में ही प्रसन्नतापूर्वक विचरते भर कीडों-मकोड़ों का नाश करके मनुष्य-जाति का हैं। कहाँ तक कहें, हमारे घर-आँगन, बाग़-बगीचे, उपकार और उसके बाग़-बगीचे के फलों का भक्षण तालाब-पोखर, खेत-खलिहान आदि स्थानों में करके उसका अपकार करने में लगे रहते हैं। शाक असंख्य कीड़े-मकोड़े रात के समय बिलों से निकल और मांसभक्षी चमगादड़ के अतिरिक्त रुधिर पान कर घूमते-फिरते हैं, जिनमें से कितनों के अस्तित्व करनेवाला एक प्रकार का चमगादड़ और भी होता का पता प्राणिशास्त्रियों को भी नहीं है।
है। वह तिमिराच्छादित निस्तब्ध रात्रि में मनुष्य के बन्दर दिवाचर प्राणियों के वर्ग में आता है, पर शयनागार में चुपचाप प्रवेश करता है और सोनेउसका सौतेला भाई लंगूर निशाचर होता है और वाले व्यक्ति के ऊपर पंखों की तीव्र गति के कारण मनुष्य के सो जाने के बाद उसकी फसल पर धावा स्थिर रह कर इस युक्ति से उसका रक्त चूस लेता है बोलता है। यही हाल शूकर और भालू का है । भेड़िया कि उसे पता ही नहीं लगता। अँधेरे में उसका ठीक
आधी रात के समय उदर-भरण की चिन्ता में विच- ठीक देख सकना, पंखों के सहारे बड़ी देर तक वायु रता है । अँधेरे में उसकी आँखों से ऐसी दीप्ति में स्थिर रहना, शरीर के भेदने योग्य कोमल अङ्ग
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