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सरस्वती
[भाग ३६
समेट कर ले गई। यह अर्ध दण्डवत् बहुत बुरी मालूम मछली, एक प्रकार का मांस, सोया का सिरका, कुछ हो रही थी। यदि दोनों ओर से यही प्रणाम करने का चटनी और फल अच्छी तरह खाये। ढङ्ग समझा जाता तो वह दसरी बात थी. किन्तु यहाँ तो आठ बजे हम लोग तैयार हो गये। दस दस येन उसके पीछे दास और स्वामी का भाव छिपा हुआ है। पर एक बजे तक (पाँच घण्टे) के लिए दो टैक्सियाँ की जापान ने जैसे और बहुत-सी हानिकारक बातें छोड़ दी हैं, गई । हूड उठा दिये गये। अपने राम ने ड्राइवर की वैसे ही चाहता तो इसे भी छोड़ देता, किन्तु शायद इन दाहनी बग़ल अगली सीट दखल में की। हमारी दोनों मिथ्या विश्वासों से उसके ऊँची श्रेणी के लोग कुछ टैक्सियों में ड्राइवर का पहिया अगली सीट की बाई ओर फायदा समझते हैं, इसलिए उन्होंने इसे नहीं हटाया। था, जैसा कि फ्रांस और जर्मनी आदि में होता है। पाखाना हिन्दुस्तानी ढङ्ग का ही खुड्डीवाला था । हाँ, लेकिन यहाँ वहाँ की भाँति बाये चलो की जगह दायें पेशाबखाने में योरपीय ढङ्ग इस्तेमाल किया गया था। चलो का नियम नहीं है । बेप्पू बस्ती बहुत भारी नहीं है मुँह धोने के लिए नल का और चीनी का अचल पात्र बस्ती के आखिर के अगल-बग़ल खेतों, बागों, और घर था। मकान सारा लकड़ी के ढाँचे का था, जिसमें बाहरी के हातों में जहाँ-तहाँ गर्म पानी के सोते निकल रहे थे दीवारों को छोड़ कर बाकी सभी दीवारें लकड़ी के फ्रेम पर कहीं कहीं तो सिर्फ भाफ ही निकल रही थी। बेप्पू में ट्राम काग़ज़ चिपका कर बनाई गई थीं। ये फ्रेम बहुत हलके भी है। कुछ दूर तक ट्राम का रास्ता रहा, फिर हम समुद्र तथा बग़ल में खिसकाऊ थे । जापान में बिजली गाँवों तक को दायें रखते चले। फिर समुद्र छोड़कर एक जगह में पहुंच गई है, इसलिए उसका इन्तज़ाम सभी जगह रेलवे लाइन पारकर हम बाई ओर पहाड़ की ओर है । कमरे में सफ़ाई चरम सीमा को पहुँची हुई थी, किन्तु चले । प्रायः ५-६ मील चलने पर पहली जगह कामेकावा सिर्फ दो तसवीरों को छोड़ कर और कोई सजावट न थी। दोनों आई। कुछ गुफ़ायें भी थीं, बाहर कुछ स्त्रियाँ वस्तुतः यह सूफ़ियाना सजावट ही गज़ब ढा रही थी। तसवीरें रक्खे बेच रही थीं। दस सेन् (पाँच पैसा.)
मारा नहा लेने का समय था। किन्तु हमारे महसूल देकर हम गुफा के भीतर घुसे । गुफायें खोद गुजराती साथी ने गुसलखाने की जो हालत बयान की कर बनाई गई हैं, किन्तु उनके भीतर तरह तरह के रंग उससे हमें अपना इरादा छोड़ देना पड़ा। वे कह रहे थे, की गंधक तथा दूसरे पत्थरों की बनावट है। पथदर्शिका हर स्त्री-पुरुष दोनों नंगे एक ही कोठरी में नहा रहे हैं । सात एक चीज़ पर लेक्चर देती जाती थी, और श्री मेयोची हमें बजे फिर हमारी मंडली उसी कमरे में चौकी के किनारे बैठ उसे दो शब्दों में बतलाते जाते थे। कहीं सफ़ेद गंधक गई । मेयोची और हमारे लिए जापानी भोजन था, औरों थी, यह हिम-स्वर्ग है। कहीं पीली—यह कांचन-स्वर्ग है । के लिए पावरोटी, दूध, सलाद तथा फल । हमने जहाज़ इत्यादि । बीच बीच में भगवान् बुद्ध, अवलोकितेश्वरी, से ही जापानी ढंग के भोजन को अपनाना शुरू कर बोधिसत्त्व । अवलोकितेश्वर ने चीन में अपने पुरुष रूप दिया था। यद्यपि जहाज़ का सारा भोजन योरपीय ढंग को छोड़ दिया है, अब वे करुणामय न रह कर करुणाका होता है, तो भी नाश्ते में एक परकार जापानी मयी देवी हो गये हैं, तथा और कितने ही देवता । भोजन का भी होता है । तिब्बत में दो लकड़ियों से भोजन लौटकर हमने कुछ तसवीरें खरीदी, फिर आगे बढ़े। करना सीखने में हम फ़ेल हो गये थे, किन्तु अब की चाहे हमारे रास्ते में सैकड़ों स्कूली लड़कों और लड़कियों की जैसे हो सीखना था। इतने दिनों में अब हमें कुछ पार्टी पीठ पर झोलों में सामान लादे जा रही थी। श्रा भी गया है। भोजन में मसाले-मिर्च का अभाव, जापानी लोग प्राकृतिक दृश्यों के देखने के बड़े प्रेमी होते
और सभी चीजें चीनी-सी पड़ी मालूम होती हैं। खैर, हैं। जापान में एक हज़ार ततकुंड देश के भिन्न भिन्न भागों निकासाया में भात, दो तरह की तरकारी, तीन तरह की में फैले हुए हैं। हर साल दो करोड़ आदमी इन चश्मों
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