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पग-ध्वनि
लेखक, श्रीयुत बच्चन
वह पग-ध्वनि मेरी पहचानी ! नंदन-वन में उगनेवाली, मेंहदी जिन तलवों की लाली, बनकर भू पर आई आली!
मैं उन तलवों से चिर-परिचित, मैं उन तलवों का चिर-ज्ञानी ।
वह पग-ध्वनि मेरी पहचानी ! ऊषा ले अपनी अरुणाई, ले कर-किरणों की चतुराई, जिनमें जावक रचने आई,
मैं उन चरणों का चिर-प्रेमी, मैं उन चरणों का चिर-ध्यानी।
वह पग-ध्वनि मेरी पहचानी ! उन मृदु चरणों का चुंबन कर, ऊसर भी हो उठता उर्वर, तृण-कलि-कुसुमों से जाता भर,
मरुथल मधुवन बन लहराते, पाषाण पिघल होते पानी !
वह पग-ध्वनि मेरी पहचानी ! उन चरणों की मंजुल उँगली, पर नख-नक्षत्रों की अवली, जीवन के पथ की ज्योति भली,
जिसका अवलंबन कर जग ने, सुख-सुखमा की नगरी जानी !!
वह पग-ध्वनि मेरी पहचानी! उन पद-पद्मों के प्रभ रजकण, का अंजित कर मंत्रित अंजन,
खुलते कवि के चिर-अंध नयन,
तम से आकर उर से मिलती, स्वप्नों की दुनिया की रानी !
वह पग-ध्वनि मेरी पहचानी ! उन सुंदर चरणों का अर्चन, करते आँसू से सिंधु नयन, पग-रेखा में उच्छवास पवन,
देखा करता अंकित अपनी, सौभाग्य सुरेखा कल्याणी !
वह पग-ध्वनि मेरी पहचानी ! उन चल चरणों की कल छम-छम, से ही था निकला नाद प्रथम, गति से मादक तालों का क्रम
संगीति जिसे सारे जग ने, अपने सुख की भाषा मानी।
- वह पग-ध्वनि मेरी पहचानी ! हो शांत जगत के कोलाहल ! रुक जा रे जीवन की हलचल ! मैं दूर पड़ा सुन लूँ दो पल,
संदेश नया जो लाई है यह, चाल किसी की मस्तानी।
वह पग-ध्वनि मेरी पहचानी ! किसके तमपूर्ण प्रहर भागे ? किसके चिर-सोये दिन जागे ? सुख-स्वर्ग हुआ किसके आगे ?
होगी किसके कंपित कर से,
इन शुभ चरणों की अगवानी? २५६
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