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सरस्वती
[भाग ३६
पर विधि ने कहा रहने दो, रहने दो, मैं ही इस महिलाओं के शरीर पर साड़ी की मनोहर छटा बात का प्रबन्ध किये देता हूँ और विधि ने अपना देखकर लंदन की कुछ फेशनेबल अँगरेज़ लेडियाँ भी प्रबन्ध कर दिया !
साड़ी को अपनाने के लिए उतावली हो रही हैं। __कुमारी सावित्री के पिता राय साहब वंशीधर यहाँ तक कि कुछ सम्मानित अँगरेज़ महिलाओं ने उच्च कुलोत्पन्न तथा सम्पन्न हैं। कुमारी सावित्री के उसका उपयोग भी आरम्भ कर दिया है। योरप में एक भाई श्रीयुत परमानन्द जी, आई० सी० एस०, साड़ी के भविष्य पर एक लेख श्रीमती चौधरानी जी दूसरे श्रीयुत कामताप्रसाद जी टगरैया, आई० एफ़. ने 'संडे क्रानिकल' में लिखा है जिसका सारांश यहाँ एस० हैं। उनकी एक छोटी बहन और हैं, जो बनारस- हम 'भारत' से उद्धृत करते हैंयूनिवर्सिटी में एफ़. ए. की शिक्षा पा रही हैं। योरप में कुछ भारतीय महिलायें जाकर जब उनकी भावज श्रीयुत परमानन्द जी आई० सी० योरपीय वस्त्र पहनती हैं तब योरपवाले उनका एस. की पत्नी एक प्रतिष्ठित एवं विदुषी महिला हैं। ये मजाक करते हैं। बात यह है कि योरपीय वस्त्र बी० ए०, बी-लिट०, पी० एच० डी० (ऑक्सफोर्ड) हिन्दुस्तानी शरीर पर अच्छे नहीं लगते और तथा बार एट० लॉ हैं। कुमारी सावित्री के निधन इसी तरह भारतीय साड़ी भी योरपीय महिसे इस शिक्षित तथा सम्पन्न परिवार की, एवं इस लाओं के शरीर पर नहीं फबती। इसका कारण बहुत पिछड़े हुए समाज की जो क्षति हुई है यह है कि भारतीय स्त्रियों के अंगों की गठन उनकी वह अनिर्वचनीय है। ईश्वर दिवङ्गत आत्मा को योरपीयन बहनों से भिन्न है। उनके शरीर का भेद स्वर्ग में शान्ति तथा दुखी परिवार को यह दुख केवल क्षीणांग अथवा स्थूलांग रहने तक ही परिमित सहन करने का सामर्थ्य दे।
नहीं है, किन्तु दोनों महाद्वीपों की महिलाओं के ___मदरास की स्त्रियों में हिन्दी
शरीर के आकार में भी बहुत-कुछ भेद होता है। मदरास की स्त्रियों में भी हिन्दी का प्रचार बढ़ता
यह भेद दर्शक स्पष्ट देख सकते हैं, क्योंकि इप्तका जा रहा है। आगे के चित्र में बाई ओर कुमारी एक
कारण दोनों की संस्कृति, रहन-सहन और जल-वायु
__ में निहित रहता है। पद्मिनी बी० ए० हैं, जिन्होंने पहले-पहल मदरास
भारतीय महिलाओं और योरपीय स्त्रियों की विश्वविद्यालय से हिन्दी लेकर बी० ए० की डिग्रो पाई है। दाहनी ओर कुमारी ए० सावित्री हैं, जिन्होंने
प्रकृति में कुछ मौलिक भेद होते हैं। भारतीय नारी
जिस प्रकार के वातावरण में रक्खी जाती है उसमें हिन्दी लेकर मदरास-विश्वविद्यालय की इंटरमीडिएट
उसके जीवन का उद्देश पति के द्वारा प्रेम पाने की परीक्षा पास की है।
अधिकारिणी बनना ही होता है और पति ही उसके __ ये दोनों केरल-हिन्दी-महाविद्यालय के प्रधान
जीवन का स्वामी भी होता है। चाहे यह बात कुछ अध्यापक श्री ए. चंद्रहासन, बी० ए० की बहनें हैं
नवशिक्षित महिलात्रों को भले ही बुरी लगे, पर और गत मार्च १९३५ में एरसाकुलम के महाराजा
सत्य से इन्कार नहीं किया जा सकता। भारतीय कालेज से उत्तीर्ण हुई हैं।
महिलाओं की लहराती चाल, पैरों की मन्थर गति, पश्चिम में साड़ी की लोकप्रियता
गर्दन का शील से भरा सहज झुकाव और बाँहों का योरप के बड़े-बड़े शहरों और विशेषकर लंदन संचालन साड़ी के साथ मिलकर ऐसा समाँ बाँध में साड़ी की लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है। देता है कि पश्चिम की स्त्रियाँ प्रयत्न करने पर भी लंदन की दावतों और रेसों इत्यादि में भारतीय वैसा नहीं कर सकेंगी।
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