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संख्या ३]
गाल्जवर्दी और सामाजिक क्रांति
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पुरुष की क्या मजाल है ? यह तो उसके सामने की ताक़तों के सामने ठहर सके। इसलिए जहाँ खिलौना है, जिस तरह चाहे कठपुतली की तरह नचा शेक्सपियर के पात्र प्रशंसा और दया के अधिकारी सकता है । यह मनुष्य की भूल है, यदि वह समाज हैं, वहाँ गाल्जवर्दी के पात्र केवल अनुकम्पा के को अपने हृदय के मुताबिक ढालने का यत्न करे। अधिकारी हैं। उनकी अवस्था को देखकर रोना जो करता है वही कुचला जाता है। हैमलेट ने ऐसा आता है और कठोर समाज को धिक्कारने के लिए चाहा था; नैपोलियन की कहानी सबको विदित ही जोश आता है। ऐसे पात्रों का निर्माण करके है। यही तो उस अपरम्पार की लीला है। यह नाटककार ने समाज में परिवर्तन लाने का यत्न किस तरह हो सकता है कि एक व्यक्ति सारे समाज किया है। यही गाल्जवर्दी की कला की सफलता है।
पावस लेखक, श्रीयुत नर्मदाप्रसाद खरे [१]
[४] रिमझिम-रिमझिम-सी बूदें,
वन-उपवन पनप गये सब, जग के आँगन में आई।
कितने नव अंकुर आये ! अपने लघु उज्ज्वल तन में,
वे पीले-पीले पल्लव, कितनी सुन्दरता लाई !
फिर से हरियाली लाये । [२] मेघों ने गरज-गरजकर,
अब अपना घूघट खोले, मादक संगीत सुनाया।
कलिकायें झाँक रही हैं ! इस हरी-भरी सन्ध्या ने,
वसुधा पर मन्द हँसी से, हमको उन्मत्त बनाया ।।
सुन्दरता आँक रही है। [३] सूखी सरिताओं ने फिर,
वन में मयूर अब नाचें, सुन्दर नव जीवन पाया।
हँस-हँस आनन्द मनायें। लघु लहर-लहर पर देखो,
उनकी छबि देख रही हैं, सौन्दर्य नाचने आया।
नभ से घनघोर घटायें।
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प्रतिपल हम नाचे-खेलें, जग-जीवन मधुर बनावें। अपने छोटे-से घर में, सुख का संसार बसावें ॥
फा.६
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