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न बजे मोटर-नौका से हम
जहाज़ पर चले आये । पाँच V बजे उसने समुद्र की अोर मुँह
फेरा । शाङ्घाई का अक्षांश
यद्यपि ३०° के आस-पास NANGI है , तो भी इस मई के महीने
में इतनी सर्दी देखकर आश्चर्य हो रहा है। कल से ही कमरे गर्म रखनेवाले यन्त्र चालू कर दिये गये हैं। बेतार से पता लगा कि जापान में कई जगह बर्फ पड़ी है।
आज (२ मई) समुद्र कुछ अधिक चंचल है । हमारा ६,५०० टन का 'अन्योमारु' भी काफ़ी हिल रहा है, जिससे कितने ही आरोही पीड़ित हैं। प्रशान्त महासागर अपने नाम से बिलकुल उलटा है। इतने भूकम्प और ज्वालामुखी दूसरी जगह कहाँ हैं ? २१ अप्रेल को फ़ारमूसा में भयङ्कर भूकम्प अाया, जिससे तीन हज़ार से ऊपर श्रादमी मरे हैं। श्राज-कल की असाधारण सर्दी से लोग अाशङ्कित हैं । और तो कुछ होनेवाला नहीं है !
मोजी (४-५-३५) ___जहाज से दो पारसी दम्पति शाङ्घाई में उतर गये थे, इसलिए अब हम अाठ भारतीय सेकंड क्लास के यात्री थे, जिनमें पाँच मदरासी भाइयों से हाङ्काङ और शाङ्घाई की सैर में अधिक घनिष्ठता हो गई थी। अभी तोकियो पहुँचने से पूर्व कोबे, क्योतो, नारा
और अोसाका श्रादि को देखना था । साथ में रहने से मोटर के खर्च में भी कमी हो जाती है और साथियों की टिप्पणियों से भी लाभ होता है, इसलिए दो मई को हमने १ पौंड (१६.६८ येन) देकर अपना टिकट योकोहामा का । करवा लिया। आज भी समुद्र अधिक चंचल रहा । ३ मई । के बारह बजे हमें जापान का तट वैसा ही मालूम पड़ा, जैसे पोर्त सईद से जाकर इटली का तट दिखाई पड़ता है। भूमि पहाड़ी, किन्तु सर्वत्र वृक्ष और हरियाली है । पास के समुद्र में मछुत्रों की बहुत-सी नावें और अग्निबोट चल रहे। थे। पूछने पर मालूम हुअा, दाहने का तट क्यूशू (जापान के चार प्रधान टापुत्रों में एक) का है, और बायें का किसी
छोटे द्वीप का। इसी वक्त लाल काग़ज़ पर छपा हुआ २३४
जापाम का बालसैनिक–मिषुधाशी
लेखक, श्रीयुत राहुल सांकृत्यायन
प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु श्री राहुल सांकृत्यायन जापान पहुँच गये । इस लेख में आपने अपने जापान पहुँचने तथा वहाँ के जगद्विख्यात वेप्पू के तप्त कुण्डों का विस्तृत वर्णन किया है। जापान के सम्बन्ध में आपके और भी कई महत्त्वपूर्ण लेख हम क्रमशः प्रकाशित करेंगे।
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