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गाल्ज़वर्दी और
सामाजिक
क्रांति
प्रोफ़ेसर इन्द्रनाथ मदन, एम० ए०
[ श्रीगाल्ज़वर्दी ]
वे
नये विचारों के प्रवर्तक थे और
जान गाल्ज़वर्दी को स्वर्गगत हुए अभी बहुत समय नहीं हुया । साहित्य में संसार के दलित प्राणियों के साथ उनकी बड़ी सहानुभूति थी । वे अमीर ग़रीब के लिए एक ही क़ानून चाहते थे, किसी प्रकार का भेदभाव नहीं । अपने नाटकों और उपन्यासों के रूप में वे अपना यह अमर संदेश छोड़ गये हैं । इस लेख में विद्वान् लेखक ने इस महान् साहित्यकार का बड़े सुन्दर ढङ्ग से परिचय दिया है।
कोमल हृदय जवी ने अपनी जिस भेज पर अपने संसार प्रसिद्ध नाटक लिखे हैं, उस पर एक सिद्धान्तवाक्य लगा रहता था ।
उसका अर्थ यह है- "मुझे इस जीवन-मार्ग से एक ही वार गुज़रना है; यदि किसी की भलाई कर सकता हूँ या किसी के प्रति दया का भाव दिखा सकता हूँ, तो अभी कर लूँ, कल पर कभी न छोड़ें, क्योंकि मुझे इस मार्ग से फिर नहीं गुज़रना है ।" ये पंक्तियाँ उनके जीवन का आदर्श बतलाती हैं ।
गा
उन्होंने मोटर को रोक दिया, उनका मुँह पीला पड़ गया। वे धीरे से बोले -"कोई मोटर के नीचे आ गया है।" उन्हें भय हुआ कि कोई जीव कुचल गया है। शीघ्र ही नीचे उतर पड़े, देखा, जान बच गई है । तब मन शांत हुआ और वे चल पड़े। यह छोटी-सी घटना उनके जीवन और उनकी रचनाओं पर काफी प्रकाश डालती है । मनुष्य का जीवन उनको सबसे अधिक प्यारा था । उसको कुचलने की जो भी कोशिश करता है, चाहे वह समाज हो, चाहे धर्म हो, उसके विरुद्ध वे अपनी कलम उठाते थे । यही कारण है कि उनके सव उपन्यास, नाटक और निबन्ध समाज की कुरीतियों का ही दर्शन कराते हैं। उन्होंने एक सम्पन्न घर में जन्म लिया था, परन्तु वे दीन और दुखियों की आहों को खूब पहचानते थे । इन सबके लिए उन्होंने समाज को ही अपराधी ठहराया है ।
उनका समस्त जीवन सचमुच इसी आदर्श के अनुसार व्यतीत हुआ है। एक बार वे मोटर में बैठ कर सैर के लिए जा रहे थे । एकाएक
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