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संख्या
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निशा-प्रेमी जीव-जन्तु
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धूप से बचता और सूर्यास्त के अनन्तर ही अपने
स्स्स्स्स्स्सस्स्सपरजा कार्य-क्षेत्र में आता है। वहाँ वह सूर्यास्त से लेकर अर्धरात्रि तक उदर-भरण के कार्य में व्यस्त रहता है। रजनी के राजत्व काल में संसार में और फिर वहीं घंटे दो घंटे विश्राम करके अंधकार के सन्नाटा छाया रहता है और इने-गिने अंत होने के पूर्व अपने निवासालय में दाखिल हो पशु-पक्षियों के सिवा उसे कोई नहीं जाता है। भरतखण्ड, लंका, अफ्रीका आदि स्थानों चाहता, यह कथन कितना भ्रमात्मक में जहाँ हाथी पाये जाते हैं, हाथी के सम्बन्ध में यही है यही लेखक महोदय ने इस लेख में बात देखने में आती है। इस धूर्त प्राणी को यह बात सिद्ध किया है और दिखाया है कि इस ज्ञात है कि जिनकी उपजाई हुई स्वादिष्ठ फसलों से संसार में निशा के प्रेमियों की भी संख्या वह अपना जीवन-निर्वाह करता है उनसे रात्रि में
कम नहीं है। सामना करने की उसे आवश्यकता नहीं पड़ती।।
रजनीचरों की नामावली में डील और शक्ति के विचार से हाथी के बाद बनैले भैंसे का नाम आता हुआ वनदेवी को भोजन के लिए आदेश देता है है। हाथी के समान वह भी रात्रि के समय उदर- तब हिरण, बारहसिंघा, जेबरा आदि अनेक प्रकार भरण के उद्योग में तल्लीन होता है। पर एक शिकारी के शाकभोजी प्राणियों को आँधी की गति में टापों महाशय का कथन है कि व्याघ्र के भय से उसके की ताल से उसके गर्जन का जवाब देते हुए भागते स्वभाव में परिवर्तन आरम्भ हो गया है और वह देखकर दर्शक आश्चर्य में लीन हो जाता है। अब अधिकतर दिन में ही काम करता नजर आता है। आश्चर्य उसे इस बात का होता है कि दिवाचर उनके कथन में कहाँ तक सत्यता है, यह प्राणिशास्त्री प्राणियों की सभी खूबियों से मुक्त होते हुए भी वे ही बता सकेंगे; परन्तु इतनी बात अवश्य है कि अपने जीवन को वृथा सङ्कट में डालने के लिए पशुओं के स्वभाव-परिवर्तन की बात आसानी से रजनीचर क्यों बन गये हैं ? यदि उन पशुओं में समझाई और मानी नहीं जा सकती। जंगली बोलने की शक्ति होती तो दर्शक का समाधान करने पशुओं में हाथी और भैंसे ही बाघ के दाँत खट्टे के लिए वे इतना ज़रूर कहते कि रजनी से उन्हें करने का हौसला रखते हैं। अतः उसके भय से वे अनुराग है और रात्रि के क्षणिक सङ्कट से त्राण अपना स्वभाव बदल देंगे, यह असम्भव प्रतीत पाने के लिए उनके पाँव काफी मज़बूत हैं। अतः होता है।
. दिनेश के तापदायक छत्र के नीचे जाकर तथा पशु-जाति के राजा सिंह और व्याघ्र तथा उनके दिवाचरों का सहज में शिकार बनकर वे अपने को ) दूर के सम्बन्धी चीता, तेंदुआ, लकड़बग्घा आदि भी अधिक खतरे में क्यों डालने लगे।
पूरे निशाचर हैं। इनमें से सिंह अर्धरात्रि के समय ब्याघ्र, चीता, और तेंदुआ दिन डूबने पर बाहर शिकार की टोह में निकलता है और महाप्रसाद के निकलते हैं। व्याघ्र तो पुलिस के सिपाही के समान लोभ-वश मार्ग-प्रदर्शन का कार्य करनेवाले सियार रात भर गश्त लगाया करता है। इसी से वह अपने तथा लकड़बग्घा का अनुगामी होकर तृणभक्षी इलाके की सम्पूर्ण परिस्थिति से परिचित रहता है पशुओं से सकुल किसी जलाशय या सरोवर के और भूख लगने पर आसानी से भोजन प्राप्त कर तट पर जा पहुँचता है। उस समय जब वह मेघ- सकता है। रात में दूर दूर तक की यात्रा करना, तुल्य गम्भीर गर्जन से वन-प्रान्त को कम्पित करता चौड़ी से चौड़ी नदी को तैर करके पार करना और
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