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संख्या २
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संसार की गति
मुसलमानी राज्यों की प्रबलता
मुसलमानी राज्यों में तुर्की की तरह ईरान, अफ़ग़ा निस्तान और इब्न साऊद का अरब भी उन्नति के मार्ग पर तर है । इन सभी देशों को एक बड़े ज़माने के बाद शान्ति और व्यवस्था नसीब हुई है । फलतः ये दिनप्रति-दिन उन्नति करते जा रहे हैं। पाश्चात्य देशों के अनुकरण पर इन सभी देशों में शासन प्रणाली व्यवस्थित की गई है और देश को धनधान्य से पूर्ण करने के लिए खेतीबारी और उद्योग-धन्धों को ही प्रोत्साहन नहीं दिया जा रहा है, किन्तु जनता के सामाजिक जीवन में स्वयं सरकार की ओर से ही परिवर्तन पर परिवर्तन किये जा रहे हैं । जो पुरानी बातें राष्ट्र की उन्नति के मार्ग में बाधक प्रमाति होती हैं उनका स्वयं वहाँ की सरकारें ही निषेध कर रही हैं । इस सम्बन्ध में तुर्की का आदर्श ईरान ने भी ग्रहण किया है । कहने का मतलब यह कि एशिया का यह भाग पहले की अपेक्षा अधिक प्रगतिशील हो गया है ।
परन्तु इन मुसलमानी प्रगतिशील राज्यों में भी अधिक महत्त्व पकड़ गया है अरबों का राष्ट्रीयतावाद । किसी समय अरबों का साम्राज्य बहुत विस्तृत था और प्रारम्भ के खलीफा के ज़माने में संसार में अरबों का प्रभाव सबसे अधिक बढ़ गया था । मुख्य अरब की भौगोलिकसीमाओं के बाहर पेलेस्टाइन, ईराक, सीरिया, मिस्र, यूनिस, अल्जीरिया और मरक्को में आज भी अरबी सभ्यता का व्यापक रूप से अस्तित्व बना हुआ है । और वर्तमान राष्ट्रीयतावादी अरब राजनीतिज्ञों ने यह अपना ध्येय
लिया है कि अरबों के ये देश और मुख्य अरब एक बार फिर एकता के सूत्र में बँधकर अपने ऐतिहासिक गौरव को प्राप्त करे । निस्सन्देह यह वर्तमान राजनीति का एक विकट प्रश्न है और धीरे धीरे यह भयावह रूप धारण करता जाता है। क्योंकि अब लोग अपने उद्देश की सिद्धि के लिए व्यवस्थापूर्वक अपना संगठन कर रहे हैं। समाचारपत्रों एवं आधुनिक योरपीय साहित्य को उन्होंने अपनाकर अपने रबी-साहित्य को पीछे नहीं रह जाने दिया है । यही कारण है कि उनके दिसम्बर
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१६३१ के पैक्ट तथा जेरूसलेम की उनकी महासभा का सारे अरबी भाषी देशों में स्वागत ही नहीं हुआ है, किन्तु इस सभा की शाखा सभायें भी संसार के सभी मुसलमानी देशों में क़ायम हो गई हैं । अरबी भाषी देशों में तो वर्षों से व्यवस्थापूर्वक ये सभायें अपना कार्य कर रही हैं । मिस्र, सीरिया, पेलेस्टाइन और अल्जीरिया में जो राष्ट्रीयता का उग्र प्रदर्शन होता रहता है वह सब अपना कुछ विशेष अर्थ रखता है । और जिन ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस और इटली के अधिकार में ये अरबी देश हैं वे इसी कारण अरबों के राष्ट्रीयतावाद को सन्देह की दृष्टि से देखते हैं ।
बात यह है कि ये अरब लोग पहले की तरह अपने क़बीलों के युद्धों में नहीं लिप्त हैं। उसके स्थान में वे संसार के वर्तमान स्वाधीनता के विचारों से प्रभावित होकर उन्हें आत्मसात करते जा रहे हैं। जिन तुर्कों ने आकर उन्हें उनके ऐतिहासिक गौरव से वञ्चित किया था उनको धराशायी करने में अरबों ने कुछ सोच-समझकर के ही योगदान दिया था । यह उसी प्रयत्न का परिणाम है कि आज नेज्द के सुल्तान मुख्य अरब के अधिकांश के स्वाधीन शासक हो गये हैं एवं ईराक और यमन तथा ट्रांस जारडोनिया भी एक प्रकार से स्वाधीन राज्यों के रूप में परिणत हो गये हैं । और यदि राष्ट्रसंघ की मैंडेटेरी - पद्धति के क़ानून का पालन किया गया तो एक दिन पेलेस्टाइन और सीरिया भी स्वाधीन राज्य हो जायँगे । रहे उत्तरी अफ्रीका के मुसलमानी देश सो इनमें तो मुसलमान नेता अपने कार्य में बराबर लगे ही हुए हैं। मिस्र को उन्होंने एक प्रकार से स्वाधीन बना ही लिया है। ट्रिपोली, ट्यूनिस और अल्जीरिया तथा मरक्को भी सावधान नहीं हैं और यद्यपि इन देशों के स्वामी फ्रांस, स्पेन, इटली आदि अपना कब्ज़ा उन पर से राज़ी राज़ी नहीं उठावेंगे, तो भी यह स्पष्ट है कि वे अरबी संस्कृति को किसी तरह दबा नहीं पावेंगे । इससे यह भले प्रकार प्रकट हो जाता है कि अरबाज शब्द के सच्चे अर्थ में सचमुच अरब बन रहे हैं और यह जहाँ उनके लिए प्रोत्साह जनक है, वहाँ योरप की महाशक्तियों के लिए विशेष चिन्ता का कारण भी है ।
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