________________
मैथिल कवि श्री मँगनीराम मा
लेखक, श्रीयुत शुकदेव ठाकुर, बी० ए० (ऑनर्स)
ठाकुर महोदय ने इस लेख-द्वारा हिन्दी के प्राचीन कवि-समुदाय में एक नये श्रेष्ठ कवि की ही वृद्धि नहीं की, किन्तु यह भी प्रकट किया है कि १८ वीं सदी के अन्त में मिथिला में व्रजभाषा का यहाँ तक प्रचार था कि वहाँ के कवि अपनी हिन्दी-कविता के कारण नैपाल के राजदरबार में श्राश्रय और सम्मान प्राप्त करते थे। आशा है, लेखक महोदय मँगनीराम जी की प्राप्त कविताओं को प्रकाशित कर हिन्दी के इस श्रेष्ठ अज्ञात
कवि का हिन्दीवालों को पूर्ण परिचय देंगे।
जयन्ति ते सुकृतिनो रससिद्धाः कवीश्वराः। मंत्री ने समस्यायें रक्खी थीं—'है' और 'दामिनी'। नास्ति येषां यशःकाये जरामरणजं भयम् ॥ साहित्याचार्य पंडित सुरेन्द्र झा 'सुमन' तथा पंडित
शुकदेव शर्मा 'कर्मकांडी' के संवेदनशील पदों के कावान दिनों वीरप्रसविनी महा
गान से समिति-भवन गूंज चुका था। अंत में Chaya राष्ट्रभूमि के गिरि-कानन| प्रांत महाकवि भूषण के
चम्पारण्यनिवासी काव्यतीर्थ पंडित दिगंबर झा जि | शंखनाद से प्रतिध्वनित हो
साहित्यालंकार स्वरचित पद्यों का पाठ समाप्त कर PSII उठे थे, जब देव. घनानंद अपने पितामह स्वर्गीय श्री भुवन झा-द्वारा रचित सास और पद्माकर के रमणीय
कतिपय पद्य सुनाने लगे। उन पद्यों में भी उपर्युक्त रसवैभव से भारत की समस्याओं की पूर्ति हुई थी। सामा
समस्याओं की पूर्ति हुई थी। समिति की बैठक समाप्त राजसभायें परिमावित हो रही थीं, जब वीरकेशरी होने पर सभी सदस्य अपने कर्मों में दत्तचित हुए, गुरुगोविंदसिंह जी अपनी प्रोजस्विनी वाणी से पर 'भुवन'-रचित कवितायें मुझे अच्छी लगीं और शक्ति की आराधना एवं पंचनद की सोई हुई आत्मा उन्ह
उन्होंने मेरे हृदय पर बड़ा प्रभाव भी डाला। वे को चैतन्यपूर्ण कर रहे थे, उस समय मिथिला के
___ कवितायें ये थींएकान्त उत्तरीय अंचल में एक मार्मिक मधु-संगीत सुनाई पड़ा था। इस कोमल स्वर-लहरी ने न केवल
पुरुप अनूप एक सुरती न कहि जात, पुण्य-सलिला वागमती के रम्य तटों को ही झंकृत
अष्टचन्द्र विन्दुभाल मूरती विशाल है। किया था, किन्तु उत्तराखंड की स्वतंत्र जातियों पर स्वर्ग वो पताल मर्त्यलोक हू की गति नाहिं, भी अपनी मोहनी डाली थी। यह सुंदर स्वर-झंकार
चान न सूरज न पवन शूरपाल है। 'वागमती-तट के गायक' श्री मॅगनीराम झा का था।
बिनु मूल सहस्रकमलदल ताहि पर,
निरखत योगीजन दीन के दयाल है। सन् १९३२ ईसवी का माघ मास था। मनियारी
___यम दिकपाल है न भैरव कपालधर, (मुजफ्फरपुर) के सभी साहित्यानुरागी सजन अपनी
काल है न, मृत्यु है न, रुद्र चन्द्रभाल है। साहित्य-परिषद् 'पद्म-समिति' की एक साधारण बैठक कर रहे थे। अपने माननीय विद्वान् मित्रों के साथ बैठा मैं भी काव्य-रस का आनन्द ले रहा था। लोटती पर्यक पै ऐंडि ऐंडि चारों ओर, समस्यापूर्तियों का पाठ हो रहा था। समिति के सुन्दरी सलोनी गात मानो शक्र-भामिनी ।
२०९ फा.३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com