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सरस्वती
था -- शंकर के समान दुराराध्य पति प्राप्त कर लिया था । सारा संसार तपस्या के सहारे टिका हुआ है । भारतीय स्वतन्त्रता के आन्दोलन में आज उसी दल का प्रभाव है जिसने कुछ तप किया है । अत्यन्त दुर्लभ पदार्थ, अमरकीर्ति बड़े-बड़े पद सत्र तपस्या के बल पर ही मिल सकते और मिलते हैं । इसी लिए कहा गया कि " जनि आश्चर्य करहु मन माँही । सुत तप ते दुर्लभ कछु नाहीं ॥ (बालकांड)” अतएव अविचलित तपस्वी का जीवन बहुत दुर्लभ जीवन है ।
(६) मनुष्य जीवन में ऐसे प्रसंग बार बार नहीं आते जब प्रत्येक परिस्थिति में हमारा हित ही हित हो - जीत में भी जीत हो और हार में भी जीत हो, लाभ में भी लाभ हो और हानि में भी लाभ हो। दोनों हाथों में लड्डू रहना बड़े भाग्य का चिह्न है, परन्तु ऐसा बहुत कम प्रसंगों में संभव होता है । भरत-वन-गमन के समय गुह निषाद को ऐसा ही सौभाग्यपूर्ण अवसर मिला था इसलिए उसने
कहा था
समर मरण पुनि सुरसरि तीरा। रामकाज क्षणभंगु शरीरा ॥ भरत भाइ नृप मैं जन नीचू । बड़े भाग्य अस पाइय मीचू ॥
युद्ध में शत्रु से लड़ते-लड़ते वीरगति प्राप्त करना बड़ा दुर्लभ है - इससे स्वर्ग मिलता है (गीता - दूसरा अध्याय ३७ वाँ श्लोक) गंगा जी के किनारे पर मरनेवालों की इस लोक में बड़ी सराहना की जाती है; फिर खटिया में न सड़कर किसी रामकाज ( पुण्य - कार्य अथवा परोपकार) के लिए इस नाशवान् शरीर का काई बलिदान कर देना चाहे तो फिर क्या पूछना है ! ऐसी दुर्लभ मृत्यु संसार में बड़े भाग्य से मिलती है - ऐसा स्वर्णसंयोग दुर्लभ है । इसी लिए निषादराज ने कहा था-- “ दुहूँ हाथ मुद मोदक मोरे ।" 'पार गये तो पार है, अटक गये तो पार' ।
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(१०) पुत्र, धन, स्त्री, सुन्दर घर और परिवार बड़े मूल्यवान् पदार्थ हैं । इनमें बड़ा आकर्षण है इनके पाश सारा संसार बँधा है । परन्तु इनके एक बार नष्ट होने पर प्रयत्न से फिर मिलने की संभावना रहती है । ये बार बार होते और मिटते रहते हैं । सगा भाई एक बार नष्ट हुआ तो फिर नहीं मिल सकता । सगे भाई का बार बार
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[ भाग ३६
मिल सकना दुर्लभ है । लक्ष्मण मूर्छा के समय विलाप करते हुए राम जी ने यही श्राशय प्रकट किया था - " सुत वित नारि भवन परिवारा । होहिं जाहिं जग बारहिं बारा ॥ अस विचारि जिय जागहु ताता । मिलै न जगत सहोदर भ्राता ।। (लंकाकांड)” सगे भाई दो प्रकार के होते हैं - एक तो एक ही माँ-बाप के और दूसरे पैसे के । 'दादा भले न भैया । सबसे भला रुपैया ।' पैसे के भाई संसार में हमेशा और सभी जगह मिल सकते हैं । रामचन्द्र जी का तात्पर्य यह है कि प्रेमपूर्ण और विश्वसनीय सहोदर भाई का मिलना दुर्लभ है।
(११) संसार में बहुत-सी चीजें दुर्लभ हैं । भक्तशिरोमणि तुलसीदास जी ने इस विषय पर बड़ा अमूल्य विवेचन किया है।
उत्तर - काण्ड में पार्वती ने महादेव से अपनी जो शंका की थी उससे मालूम होता है कि संसार में किस-किस प्रकार के जीव कितने दुर्लभ हैं। पार्वती कहती हैं
नर सहस्र मँह सुनहु पुरारी । कोउ इक होइ धर्मव्रतधारी ॥ हज़ार मनुष्यों में धर्मव्रतधारी कोई एकाध विरला आदमी होता है और
धर्मशील कोटिक महँ कोई । विषय विमुख विरागरत होई ॥
विलास से दूर रहकर सीधा-सादा जीवन व्यतीत करनेवाला और विराग प्रेमी व्यक्ति तो करोड़ धर्मशील आदमियों में कोई विरला होता है, अर्थात् ऐसा आदमी अरबों में एक-आध निकलता है। 'सौ में सती और लाखों में यती' की कहावत प्रसिद्ध ही है औरकाटि विरक्त मध्य श्रुति कहई । सम्यक ज्ञान सकृत कोउ लहई ||
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* मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये । यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वतः ॥ ( गीता - अध्याय ७ श्लोक ३ )
और कहहिं संत मुनि वेद पुराना । नहिं कछु दुर्लभ ज्ञान समाना ।
(उत्तरकाण्ड)
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