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संख्या ३]
मैथिल कवि श्री मॅगनीराम झा
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से तृप्ति और विरक्ति-सी हो गई थी और अपने .. सुरमा क रथ चढ़ि तोंहीं बैसलि ग्राम में ही निवास करते हुए वे तापस-जीवन
दुर्गा नाम धराव । व्यतीत करते थे। इसी समय कवि के वार्द्धक्य- पण्डित के तो पोथी जाँचह, काल में दरभंगा के महाराज ने उनकी ख्याति सुन
सरस्वति नाम सुनाव ॥ हे मा०॥ कर उन्हें अपनी राजधानी में निमंत्रित किया।
गाइनि मुख में गान भै पैसलि, स्वाभिमानी कवि ने उत्तर में लिखा-'मॅगन के
सुस्वर गीत सुहाव । द्वार पर मैंगन कहिं अघात है ?' निमंत्रण अस्वीकार
'मैंगनीराम' चरण पर लोटथि कर दिया। सन् १७९५ ई० में १०८ वर्ष की अवस्था
भक्ति मुक्तिवर पाव ॥ हे मा०॥ में उन्होंने अपना शरीर-त्याग किया। ____ मॅगनीराम के जीवन-वृत्तान्तों से यह संभव इसके अतिरिक्त तिर्हत प्रांत में भ्रमण और खोज प्रतीत होता है कि नैपाल-राज्य के पुस्तकालय में करने के उपरान्त मुझे मॅगनीराम की लगभग २९ उनकी रचनायें अथवा स्वयं कवि के हस्तलेख सुर- कवितायें प्राप्त हुई हैं। इनमें 'श्रीकृष्ण जन्म सोहर,' क्षित हों। महामहोपाध्याय डाक्टर गंगानाथ झा 'श्री गंगास्तव' और 'द्रौपदीपुकार' शीर्षक तीन की अनुमति के अनुसार मैंने हिज़ हाइनेस नैपाल- कवितायें बड़ी हैं। ये वर्णनात्मक हैं। शेष सभी महाराज के प्राइवेट सेक्रेटरी महोदय को मॅगन कवि विविध विषयों पर सुन्दर कवित्त एवं गीत हैं और के सम्बन्ध में कई पत्र लिखे, पर वहाँ से अब तक एक . सभी कवित्त्वपूर्ण हैं। का भी उत्तर नहीं मिल सका। अतएव मैंने नैपाल जाकर मँगन के जीवन और काव्यों के सम्बन्ध में
श्रीयुत वृन्दावनदास जी बी० ए०, एल-एल० बी० खोज करने का निश्चय किया है। इधर पता लगा है कि मधुवन-दरबार में मैंगन-रचित लगभग ३०
ने 'हिंदी की उत्पत्ति और उसका विकास' शीर्षक कवित्त सुरक्षित हैं और कवि के ननिहाल वसतपुर अपने विद्वत्तापूर्ण निबंध में ठीक ही लिखा है-- (नेपाल राज्यांतर्गत) में उनका 'उषाहरण' नामक
'औरंगजेब के राज्य से मुग़ल-शासन का अंत खंडकाव्य अब भी प्राप्त हो सकता है। श्री भोल समझा जाता है। मुग़ल-शासन के अंत के साथ
साथ हिंदी की उन्नति में भी बाधा पड़ गई। इसी झा-द्वारा संग्रहीत 'मिथिला-गीत-संग्रह' के तृतीय कारण अठारहवीं शताब्दी के अंतिम काल में हिंदी भाग में भी मॅगनीराम-चित एक दर्गा-स्तति मिली के साहित्याकाश में किसी महत्त्वपूर्णे नक्षत्र का है, जो यों है
उदय नहीं हुआ।" मुझे निश्चय है कि कविवर श्री तोही घरनी तोंही करनी,तोंहीं जगत क मात। हे मा०। मंगनीराम झा के जीवनचरित और रचनाओं पर दश मास माता उदर में राखल
पूर्ण प्रकाश पड़ने पर हिंदी के इतिहास के इस दश मास दूध पियाव ।
रिक्तस्थान की बहुत कुछ पूर्ति हो सकेगी। मँगन की निरंकार निरंजनि लक्ष्मीस्वरि
प्राप्त कविताओं का रसास्वादन दूसरी बार कराऊँगा। भवघरनि तो कहाव ।। हे मा० ।।
(घ) देखिए- 'श्री रमेश्वर प्रेस' से प्रकाशित 'मिथि
लागीत-संग्रह', भाग ३, पृ० १.
(ङ) देखिए-'माधुरी' मार्गशीर्ष, ३०६ तुलसी
संवत् [१६८६ वि०] पृ० ५८६-५६२.
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